महाकुंभ, जो हर बारह वर्ष में आयोजित होता है, भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। इस आयोजन की भव्यता और इसके साथ जुड़ी चुनौतियां, जिसे आनंद महिंद्रा ने 1977 में एक छात्र फिल्म निर्माता के रूप में ‘यात्रा’ के लिए शूट किया था। वह समय, जब उन्होंने महाकुंभ का अनुभव किया, आज से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण था।
The Mahakumbh holds a special place in my heart.
In 1977, as a student filmmaker, I went to the Mahakumbh that year for shooting footage for my thesis film, which I named ‘YATRA’
I was amazed to see, even then, how the administration managed such an incredible logistical… pic.twitter.com/hH9Mdmbqq7
— anand mahindra (@anandmahindra) January 3, 2025
महाकुंभ का आयोजन विश्व के सबसे बड़े धार्मिक समागमों में से एक है, जिसमें करोड़ों लोग सम्मिलित होते हैं। इस आयोजन में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। आनंद महिंद्रा ने यह माना कि प्रशासन का इस विशाल जनसमूह का प्रबंधन करना एक अत्यधिक चुनौतीपूर्ण कार्य है, लेकिन इसके बावजूद यह समागम बेतहाशा सफलता प्राप्त करता है।
महाकुंभ का आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह प्रशासनिक कौशल, तकनीकी समायोजन और मानव संसाधनों का कुशल उपयोग भी दर्शाता है। महिंद्रा का यह भी कहना है कि इस आयोजन के पीछे जो गुमनाम नायक होते हैं, जिनका समर्पण और मेहनत अनदेखी रहती है, उनका योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
इस आयोजन की सफलता एक संकेत है कि जब पुरानी परंपराएं आधुनिक प्रबंधन और समर्पण के साथ जुड़ती हैं, तो किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है। महाकुंभ न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि यह सामाजिक समरसता और एकता की मिसाल भी है। यह प्राचीन और आधुनिकता का संगम है, जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखता है।
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