मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चाहते हैं कि जल्द से जल्द अवैध मदरसों पर लगाम लगाई जाए और जो मदरसे पंजीकृत है उनमें बच्चों की शिक्षा के मापदंडों को सुनिश्चित किया जाए। इस बारे में शासन स्तर से दिए गए आदेशों को जिला स्तर पर फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया प्रतीत होता है और इसके पीछे स्थानीय निकाय चुनाव का बहाना दिया गया है।
उत्तराखंड में 415 पंजीकृत मदरसे है जिनमें करीब 46 हजार बच्चे भर्ती है। इन बच्चों को राष्ट्रीय अथवा राजकीय शिक्षा नीति के तहत शिक्षा दी जा रही है या नहीं ? यहां सफाई, पेयजल, भवन आदि की क्या व्यवस्था है? इस बारे में जांच पड़ताल की जानी है। इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि राज्य में अवैध मदरसों की जांच पड़ताल की जानी है, जिनकी संख्या दो हजार से ज्यादा बताई जा रही है। ये अवैध इस लिए है, क्योंकि इनका पंजीकरण नहीं है और न ही यहां शिक्षा नीति के अनुसार शिक्षा दिए जाने का प्रयास हो रहा है।
ऐसी जानकारी भी सामने आ रही है कि यूपी में योगी सरकार की सख्ती के बाद मदरसा संचालकों मौलवियों ने उत्तराखंड के बॉर्डर जिलों का रुख कर लिया है और बड़ी संख्या में यहां मदरसे खुल गए हैं और कई मदरसे ऐसे हैं, जहां असम, बंगाल, बिहार, झारखंड के बच्चे इस्लामिक तालीम ले रहे हैं। ये साक्ष्य इस समय भी मिले थे जब देहरादून के आजाद कालोनी के एक मदरसे में बाल संरक्षण सुधार आयोग ने छापा डाला था। जानकारी देने की बात ये भी है कि ये मदरसे ज्यादातर सरकारी जमीनों पर कब्जे कर बनाए गए है, कुछ झोपड़ियों में चल रहे हैं, कुछ किराए के मकानों में चल रहे है। इन्हें फंडिंग कहां से मिल रही है ये भी जांच का महत्वपूर्ण विषय है।
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उत्तराखंड सरकार ने इस विषय को गंभीरता से लिया है क्योंकि यहां बाहरी राज्यों से लाए हुए हजारों मुस्लिम बच्चों की कोई पहचान नहीं है कोई सत्यापन नहीं है, ये भी कहा जा रहा कि इनमें बहुत से बच्चे रोहिंग्या, बांग्लादेशी भी है और ये कल मदरसा दस्तावेजों के आधार पर उत्तराखंड के मूल निवासी होने का दावा करेंगे तो कोई हैरानी नहीं होगी। उत्तराखंड वैसे ही डेमोग्राफी चेंज समस्या से जूझ रहा है और ये मदरसे कल के दिन और भी समस्या खड़ी कर सकते हैं।
स्थानीय चुनाव बने जांच में बाधक
सभी मदरसों की जांच के लिए अल्प संख्यक मामलों के सचिव एल, फेनई ने सभी जिलाधिकारियों को एक हफ्ते का समय देते हुए एक पत्र जारी किया था। किंतु उक्त पत्र को एक दो जिलाधिकारियों ने गंभीरता से लिया है, शेष ने अपने जिलों में समिति तक नहीं बनाई। जांच के लिए एक एडीएम को नोडल अधिकारी, जिला समाज कल्याण अधिकारी और शिक्षा विभाग के अधिकारी को रखा गया, निरीक्षण जांच पड़ताल के लिए, तहसील एसडीएम को रखा गया है। इस समिति को पंजीकृत, अपंजीकृत मदरसों को जांच, उनके बैंक खाते की जांच, शिक्षा के स्तर, सफाई, पेयजल और भवन स्वामित्व संबंधी रिपोर्ट देने के लिए निर्देशित किया गया है।
जिला स्तर पर जांच पड़ताल लंबित होने के पीछे कारण, स्थानीय निकाय चुनाव की नामांकन प्रक्रिया है, जो कि कल 2 जनवरी को समाप्त हो गई है। सम्भावना ये व्यक्त की गई है कि अब प्रशासनिक अधिकारी इस पर गंभीरता दिखाएंगे।
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देहरादून में बनी समिति
डीएम देहरादून ने मदरसों की जांच के लिए एक बैठक करके समिति गठित कर दी है और प्रशासनिक अधिकारियों को जांच बिंदुओं पर तत्काल रिपोर्ट देने को कहा गया है।
पुलिस प्रशासन भी करेगा जांच
डीजीपी दीपम सेठ ने भी सभी थाना क्षेत्रों में चल रहे मदरसों की रिपोर्ट एक माह में दिए जाने का निर्देश दो सप्ताह पहले दिया हुआ है,इस पर कितना काम हुआ इस बारे में आई जी लॉ एंड ऑर्डर डॉ निलेश भरणे को समीक्षा करने को कहा गया है।
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