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होम भारत उत्तर प्रदेश

‘साक्ष्यों पर आधारित है राम मंदिर का निर्णय’

अयोध्या में रामलला के प्राकट्य दिवस पर एक गोष्ठी आयोजित

by WEB DESK
Jan 3, 2025, 02:05 pm IST
in उत्तर प्रदेश
दीप प्रज्ज्वलित कर गोष्ठी का उद्घाटन करते अतिथि। बाएं से दिख रहे हैं श्री चंपत राय, श्री रामविलास वेदांती और अन्य

दीप प्रज्ज्वलित कर गोष्ठी का उद्घाटन करते अतिथि। बाएं से दिख रहे हैं श्री चंपत राय, श्री रामविलास वेदांती और अन्य

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गत दिसंबर को अयोध्या में रामलला के प्राकट्य दिवस (22-23 दिसंबर, 1949) पर एक गोष्ठी आयोजित हुई। इसका विषय था-‘रामलला का प्राकट्य और ठाकुर गुरुदत्त सिंह।’ इसके मुख्य वक्ता थे राम मंदिर पर निर्णय देने वाले लखनऊ उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल। उन्होंने कहा कि श्रीराम जन्मभूमि का निर्णय विश्व का अविस्मरणीय न्यायालय वाद है, जिसमें एक धार्मिक संरचना को तोड़ कर बनाए गए ढांचे पर पुन: अधिकार पाने और निर्माण करने के लिए पूरी तरह से संवैधानिक और न्यायिक प्रक्रिया से निर्णय किया गया।

22-23 दिसंबर, 1949 की रात्रि को भगवान रामलला की मूर्ति के गर्भ गृह में प्रतिष्ठित होने के बाद उसे वहीं बने रहने जैसा साहसिक कार्य ठाकुर गुरुदत्त सिंह ने न किया होता तो जिस निर्णय पर आज राम मंदिर का निर्माण हो रहा है, उसे आने में अभी समय लग सकता था। हो सकता है कि यह निर्णय कभी न हो पाता। उन्होंने कहा कि इस मुकदमे में केवल इस बिंदु पर लंबे समय तक बहस चली कि क्या भगवान राम अयोध्या में जन्मे? तब मैंने हस्तक्षेप कर विपक्ष के अधिवक्ता से ही पूछ लिया कि क्या उनको इस विषय पर कोई संशय है और न केवल पूछा, बल्कि वादियों की शंकाओं के समाधान के लिए उनसे सीआरपीसी की धारा 10(2) के तहत लिखित भी ले लिया और सबके हस्ताक्षर करवा लिए।

इसके बाद मुख्य बिंदु तय करने का समय आया कि भगवान रामलला का जन्म उसी गुंबद के नीचे हुआ था, जिसे गर्भगृह बताया जाता है। इसके भी अनेक साक्ष्य, उन्हीं बयानों, पुस्तकों के संदर्भों और साक्ष्यों में मिले, जो पहले से उपलब्ध थे। उन्होंने कहा कि धर्म आस्था का प्रश्न है, यह बात बिल्कुल ठीक है, लेकिन यह निर्णय केवल आस्था के आधार पर नहीं किया गया। निर्णय हवा में नहीं लिखा गया था। यह साक्ष्यों पर आधारित निर्णय था। इसमें विदेशी यात्रियों के संस्मरण भी उपयोग में लाए गए।

उन्होेंने कहा कि यह विश्व के इतिहास का अनोखा मामला है, जिसमें 500 साल पहले हुई घटना पर निर्णय किया गया हो। एक समुदाय 500 वर्ष तक एक अधिकार पाने के लिए संघर्ष कर सकता है, और शांतिपूर्ण उस विवाद का हल होता है, यह भी एक मिसाल है। संगोष्ठी के अध्यक्ष और श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव श्री चंपत राय ने कहा कि जवाहर लाल नेहरू जैसे प्रधानमंत्री के आदेश को न मानने जैसा कोई प्रश्न ही नहीं उठता है। कौन उस समय ऐसे प्रधानमंत्री के निर्णय को न मानने का साहस कर सकता था।

ठाकुर गुरुदत्त सिंह ने 23 दिसंबर, 1949 को नेहरू जी के निर्णय को नहीं माना। यह साधारण घटना नहीं है। उन्होंने कहा कि श्रीरामजन्मभूमि प्रकरण ऐसे ही असाधारण घटनाओं के आधार पर निर्णय तक पहुंचा। यह एक ऐसा निर्णय है, जिसमें विज्ञान, आस्था, इतिहास, धर्मशास्त्र सबको आधार बनाया गया। यह कोई किसी कपोल कल्पना और केवल किताबी आधार पर हुआ निर्णय या कोई कथा या उपन्यास नहीं है। इसमें जिन प्रश्नों के उत्तर दिए गए, वे सरल नहीं थे। पुरातात्विक उत्खनन का समर्थन करना भी कठिन परिस्थिति थी। परिणाम कुछ भी हो सकता था।

उन्होंने कहा कि यह केवल राम मंदिर का प्रश्न नहीं था। यह हमारी अस्मिता, हमारे सम्मान और प्रतिष्ठा का भी प्रश्न था। यह हमारे राष्ट्र के सम्मान का संघर्ष था। इसलिए मैं रामजन्मभूमि आंदोलन से जुड़ा, क्योंकि हमें एक परकीय द्वारा किए गए अपमान को सम्मान में बदलना था। राष्ट्र की संप्रभुता को 500 साल पहले जो क्षति पहुंचाई गई थी, उसकी पूर्ति करनी थी। गोष्ठी का आयोजन ‘ठाकुर गुरुदत्त सिंह स्मृति संस्थान’ ने किया था।

Topics: FEATUREभगवान रामलला की मूर्तिठाकुर गुरुदत्त सिंहidol of lord ramlalaAyodhyathakur gurudutt singhअयोध्याLord Ramभगवान रामराम मंदिर का निर्माणconstruction of Ram templeपाञ्चजन्य विशेष
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