शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास कुम्भ के व्यापक अर्थ की अवधारणा को पूरे विश्व के समक्ष स्थापित करने हेतु प्रतिबद्ध है। 12 वर्ष में आने वाले 12 कुंभों के बाद एक महाकुम्भ का अवसर आता है। 144 वर्ष में एक बार यह अवसर विक्रम संवत 2081 में होगा। न्यास के राष्ट्रीय महासचिव आदरणीय अतुल भाई कोठारी ने पूरे देश के शिक्षाविदों का आह्वाहन किया है। ये शिक्षाविद तीन मुख्य विषयों भारतीय ज्ञान परम्परा, शिक्षा से आत्मनिर्भरता एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति का क्रियान्वयन पर गहन चिन्तन करके एक शैक्षिक घोषणापत्र तैयार करेंगे, जो कि भारत केन्द्रित शिक्षा के स्वरूप का आधार बनेगा।
आदरणीय अतुल कोठारी जी का कहना है कि 144 वर्षों के अंतराल में आने वाला महाकुम्भ स्वयं में ऐतिहासिक है और हम सभी अत्यन्त सौभाग्यशाली हैं जो इसके साक्षी बनेंगे।कुम्भ के व्यापक अर्थ का महत्व बताते हुए उनका कहना है कि कुम्भ का केवल धार्मिक या पांथिक महत्व मात्र नहीं है, अपितु यह प्राचीन ऋषियों की एक व्यापक सोच का परिणाम है । एक नक्षत्र विशेष में संगम स्नान का ज्योतिष परक महत्व तो है ही साथ साथ कुम्भ का पर्व देश की विविध आधिदैविक, आधिभौतिक एवं आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान भी सामूहिकता के साथ करने का माध्यम है। भारत के कोने कोने से एक स्थान पर एकत्रित होकर लोग अपनी ऐसी समस्याओं का समाधान भी प्राप्त कर लेते हैं जिनका समाधान वे स्थानीय स्तर पर नहीं कर पाते।
कुम्भ केवल एक मेला या स्नान तक सीमित नहीं, यह पूरे विश्व को वसुधैव कुटुंबकम् का संदेश देने वाला पर्व भी है। यहां आने वाला व्यक्ति किसी भी जाति, लिंग, स्थान अथवा पंथ का हो, सभी साथ मिलकर ही भंडारे का भोजन करते हुए एक ही घाट पर स्नान करते हैं। उनके भोजन की व्यवस्था में किसी प्रकार का कोई भेद भाव नहीं रहता। अनेक शोधार्थियों ने महाकुम्भ के इस प्रबन्धन पर शोध पत्र भी प्रस्तुत किए हैं। ऐसे सकारात्मक वातावरण में शिक्षा की भारतीय दृष्टि पर चिन्तन करना शिक्षाविदों के लिए परम सौभाग्य का विषय होगा।
भारत के ऋषियों ने प्राचीन काल से अपनी मेधा से विश्व को आश्चर्यचकित किया है। चेतना का अध्ययन, चरक का भैषज विज्ञान, सुश्रुत की शल्य चिकित्सा, कणाद का परमाणु और गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त, बौधायन की भुज कोटि कर्ण प्रमेय, पिंगल का छंदशास्त्र और अन्य अनेक विषय जो आधुनिक वैज्ञानिकों को भी चमत्कृत कर देते हैं, ऐसे ऋषियों का ज्ञान भारतीय ज्ञान परम्परा के रूप में हमारे पास हजारों वर्षों से विद्यमान है। इस ज्ञान के विस्तार से धारणीय विकास, समाधान परक दृष्टि एवं साथ चलने की भावना का उदय होता है, अतः भारतीय ज्ञान परम्परा पर व्यापक चिन्तन आवश्यक है। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास है। शिक्षा यदि सार्थक हो तो रोजगार एवं आत्मनिर्भरता के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता। शिक्षा की भारतीय पद्धति सदैव आत्मनिर्भर छात्र से आत्मनिर्भर राष्ट्र का मार्ग प्रशस्त करती है अतः देश में सकारात्मक शैक्षिक वातावरण निर्माण के लिए चिन्तन आवश्यक है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति उपर्युक्त दोनों उद्देश्यों को पूर्ण करने का सबसे उपयुक्त साधन है, अतः शिक्षा नीति के सफल क्रियान्वयन को लेकर इस महाकुम्भ में व्यापक चर्चा भी नितान्त आवश्यक है। ये चर्चाएं शिक्षाविदों के साथ साथ छात्रों एवं अभिभावकों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं, अतः शिक्षाविदों के साथ साथ अभिभावक एवं छात्र भी इस ऐतिहासिक ज्ञान महाकुंभ में आमंत्रित हैं।
ज्ञान महाकुंभ को व्यापक स्वरूप देने के लिए आदि शंकराचार्य को आदर्श मानकर भारत की चारों दिशाओं में एक एक ज्ञान कुम्भ का आयोजन इस ज्ञान महाकुम्भ के पूर्व किया जा चुका है। नालन्दा (बिहार), कर्णावती (गुजरात), पुद्दुचेरी एवं हरिद्वार में ज्ञान कुम्भ के आयोजन में शिक्षा सम्बन्धी क्षेत्रीय विषयों पर व्यापक चर्चा के साथ साथ ज्ञान महाकुम्भ में उनकी सहभागिता का आह्वाहन किया जा चुका है। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा 10 जनवरी से 10 फरवरी 2025 के बीच आयोजित होने वाला ज्ञान महाकुम्भ ऐतिहासिक मानक स्थापित करने वाला शैक्षिक पर्व होगा।
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