विश्लेषण

सुनीता और बुच की वापसी में देरी : अंतरिक्ष मिशन की नई चुनौती, अनिश्चितताओं पर उठते सवाल

सुनीता विलियम्स और बैरी बुच विल्मोर का 8 दिनों का अंतरिक्ष मिशन स्टारलाइनर में तकनीकी खराबी के कारण 10 महीने तक खिंच गया है। माना जा रहा कि नासा और बोइंग की चुनौतियों के बीच उनकी वापसी अब मार्च 2025 के अंत तक संभव है।

Published by
योगेश कुमार गोयल

भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और उनके साथी बैरी बुच विल्मोर लंबे समय से अंतरिक्ष में फंसे हुए हैं। दोनों केवल 8 दिनों के अंतरिक्ष मिशन पर गए थे किन्तु तकनीकी खामियों और सुरक्षा के चलते उनकी वापसी में लगातार देरी हो रही है। अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन से दोनों की वापसी एक बार फिर टल गई है और इसी के साथ अंतरिक्ष मिशन में अनिश्चितताओं पर दुनियाभर में सवाल उठ रहे हैं।

उम्मीद थी कि करीब 8 महीने लंबे इंतजार के बाद दोनों अंतरिक्ष यात्री फरवरी में पृथ्वी पर वापस लौट आएंगे लेकिन अब यह इंतजार कम से कम एक महीना और बढ़ गया है। पिछले दिनों नासा द्वारा यह घोषणा की जा चुकी है कि सुनीता और बुच अब कम से कम मार्च के अंत तक अंतरिक्ष में ही रहेंगे और उनकी वापसी मार्च के अंत या अप्रैल की शुरूआत तक हो सकती है।

नासा के मुताबिक, क्रू-10 मिशन अब फरवरी के बजाय मार्च 2025 में नए अंतरिक्ष यात्रियों के साथ लांच होगा, उसी के बाद हैंडओवर प्रक्रिया पूरी होगी और सुनीता और बुच वापस लौट सकेंगे। माना जा रहा है कि यह विलंब नए स्पेसएक्स क्रू ड्रैगन कैप्सूल की तैयारियों के कारण हो रहा है, जिसमें नासा और स्पेसएक्स ने जल्दबाजी के मुकाबले ज्यादा सुरक्षा को प्राथमिकता देने का विकल्प चुना है।

नासा के वाणिज्य क्रू कार्यक्रम के प्रमुख स्टीव स्टिच के अनुसार, नए अंतरिक्ष यान का निर्माण, संयोजन, परीक्षण और अंतिम एकीकरण एक मुश्किल प्रकिया है, जिसके लिए विवरण पर बहुत ध्यान देने की जरूरत होती है। उनके मुताबिक किसी नए स्पेसक्राफ्ट का फैब्रिकेशन, असेंबली, टेस्टिंग और फाइनल इंटीग्रेशन एक थका देने वाली प्रक्रिया होती है, जिसके लिए काफी डिटेल में देखने की जरूरत होती है।

सुनीता और बुच पहले अंतरिक्ष यात्री हैं, जो निजी कंपनी ‘बोइंग’ के स्पेसक्राफ्ट ‘स्टारलाइनर’ स्टारलाइनर के जरिये अंतरिक्ष यात्रा पर भेजे गए थे और इस मिशन के दौरान उन्हें इस स्पेसक्राफ्ट को मैन्युअली उड़ाना था। दोनों को अंतरिक्ष भेजने का मुख्य उद्देश्य स्टारलाइनर का परीक्षण करना था और उन्हें अंतरिक्ष स्टेशन पर 8 दिन रिसर्च तथा कई परीक्षण करके वापस लौटना था लेकिन स्टारलाइनर कैप्सूल की 25 घंटे की उड़ान के दौरान इंजीनियरों ने स्पेसशिप के थ्रस्टर सिस्टम में पांच अलग-अलग हीलियम लीक का पता लगाया था, उसके बाद थ्रस्टर फेल्योर भी देखा गया, जिसके बाद अंतरिक्ष यान की वापसी को स्थगित करने का निर्णय लिया गया था।

एक रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ था कि नासा और बोइंग दोनों ही ‘स्टारलाइनर’ में हीलियम लीक के बारे में पहले से ही जानते थे लेकिन फिर भी नासा ने अपने इस मिशन के लिए हीलियम की लीकेज को मामूली खतरा माना और 5 जून को मिशन को लांच कर दिया गया। पहले नासा का यह मिशन 6 मई को लांच होने वाला था लेकिन हीलियम की लीकेज के कारण लांचिंग को उस समय टाल दिया गया था। नासा ने तीन बार मिशन रोकने के बाद बोइंग को अंतरिक्ष में भेजा था।

उल्लेखनीय है कि बोइंग का स्टारलाइनर कार्यक्रम वर्षों से सॉफ्टवेयर गड़बड़ियों और डिजाइन समस्याओं से जूझ रहा है और यह बोइंग के स्टारलाइनर कैप्सूल की पहली मानव युक्त उड़ान थी। 2019 में स्टारलाइनर की पहली मानवरहित उड़ान हुई थी, तब भी इसमें सॉफ्टवेयर की दिक्कत आई थी, जिसके कारण यान गलत ऑर्बिट में पहुंच गया था। दूसरी उड़ान में फ्यूल वॉल्व में गड़बड़ी आई थी और अब तीसरी उड़ान में स्टारलाइनर में हीलियम लीक हुआ, थ्रस्टर्स (प्रोप्लशन सिस्टम) में गड़बड़ी आई।

विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक बोइंग के इस कैप्सूल में एक-दो नहीं बल्कि कई प्रकार की समस्याएं थी और सबसे बड़ी समस्या थी स्टारलाइनर में उस हीलियम गैस का लीक होना, जो इस यान के प्रोपल्शन सिस्टम को प्रैशर देती है। बोइंग ने स्टारलाइनर स्पेसक्राफ्ट को नासा के कमर्शियल क्रू प्रोग्राम के तहत ही बनाया है ताकि अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा तक पहुंचाया जा सके। नासा और बोइंग के बीच स्टारलाइनर प्रोजेक्ट के लिए 2014 में करीब 4.2 बिलियन डॉलर (33 हजार करोड़ रुपये) की डील हुई थी। उसी अनुबंध के तहत बोइंग के स्टारलाइनर के जरिये पहली बार अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस ले जाया गया।

बोइंग अपने सीएसटी-100 स्टारलाइनर को ‘स्पेस कैप्सूल’ कहती है, जिसे नासा ने अपने ‘कमर्शियल क्रू प्रोग्राम’ के तहत बोइंग के साथ मिलकर बनाया है। इस स्पेसक्राफ्ट में एक साथ अधिकतम सात अंतरिक्ष यात्री रह सकते हैं या फिर कुछ अंतरिक्ष यात्री और कुछ सामान इसमें एक साथ भेजा जा सकता है। इस स्पेस कैप्सूल को अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की ‘लो-अर्थ ऑर्बिट’ (एलईओ) में बने अंतरिक्ष स्टेशन तक ले जाने और वहां से वापस लाने के लिए डिजाइन किया गया है। एलईओ पृथ्वी के चारों ओर की वे कक्षाएं हैं, जिनकी दूरी पृथ्वी से दो हजार किलोमीटर होती है। इतनी दूरी से पृथ्वी तक स्पेसक्राफ्ट का ट्रांसपोर्टेशन, कम्युनिकेशन और सामान की री-सप्लाई आसान मानी जाती है।

‘स्टारलाइनर’ अपनी काबिलियत साबित करने के लिए मानवयुक्त अपने पहले मिशन के तहत सुनीता और बुच को लेकर अंतरिक्ष गया था लेकिन यान में आई खराबियों ने बोइंग के मंसूबों पर पानी फेर दिया और नासा को एलन मस्क की ‘स्पेसएक्स’ पर भरोसा जताना पड़ा है। स्पेसएक्स अभी तक कई अंतरिक्ष मिशन को अपने ‘ड्रैगन क्रू’ कैप्सूल के जरिये पूरा कर चुकी है। स्पेसएक्स का एक बार में सात अंतरिक्ष यात्रियों के बैठने की क्षमता वाला 7700 किलोग्राम वजनी ड्रैगन क्रू कैप्सूल अपने बनने के बाद से अब तक 46 बार लांच हो चुका है, 42 बार इसने आईएसएस की यात्रा की है, 25 बार रीफ्लाइट हुई है। यह दुनिया का पहला निजी स्पेसक्राफ्ट है, जो लगातार अंतरिक्ष स्टेशन पर अंतरिक्ष यात्रियों और सामान को लेकर आता-जाता रहा है। इसमें आमतौर पर 2-4 अंतरिक्ष यात्री बैठते हैं जबकि आपात स्थिति में इसमें सात अंतरिक्ष यात्री बैठ सकते हैं। ड्रैगन क्रू कैप्सूल की बड़ी विशेषता यह है कि केवल अपने दम पर पृथ्वी की निचली कक्षा में उड़ान भरने पर यह 10 दिन तक अंतरिक्ष में रह सकता है जबकि अंतरिक्ष स्टेशन से जोड़ दिए जाने पर यह 210 दिनों तक अंतरिक्ष में रह सकता है। ड्रैगन क्रू कैप्सूल की पहली मानवरहित उड़ान 2 मार्च 2019 को और मानवयुक्त पहली उड़ान 20 मई 2020 को हुई थी जबकि पहली कार्गो उड़ान 6 दिसंबर 2020 को हुई थी। आमतौर पर इसे स्पेसएक्स के फॉल्कन 9 ब्लॉक 5 रॉकेट से लांच किया जाता है। स्पेसएक्स द्वारा अभी तक कुल 12 डैग्रन कैप्सूल बनाए जा चुके हैं, जिनमें 6 क्रू, 3 कार्गो तथा 3 प्रोटोटाइप हैं और इनमें से एक क्रू और दो प्रोटोटाइप सहित तीन कैप्सूल रिटायर हो चुके हैं।

प्रश्न यह है कि आखिर तमाम खतरों के बावजूद अंतरिक्ष यात्रियों को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर क्यों भेजा जाता है? अंतरिक्ष स्टेशन पर लगातार मरम्मत और रिसर्च का कार्य चलता रहता है, इसीलिए नासा को समय-समय पर अपने अंतरिक्ष यात्रियों को वहां भेजना पड़ता है, जिनकी बारी रोटेशन के जरिये आती है। दरअसल अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन दो दशकों से भी ज्यादा समय से कभी खाली नहीं रहा, वहां कोई न कोई अंतरिक्ष यात्री हर समय मौजूद रहता है, इसलिए वहां अंतरिक्ष यात्रियों को लगातार रोटेशन में भेजा जाता रहा है। दुनिया को मौसम की सही जानकारी मिलती रहे, इसके लिए अंतरिक्ष स्टेशन पर लगातार रिसर्च होती रहती है। फिलहाल अंतरिक्ष स्टेशन पर एक्सपेडिशन-71 का क्रू काम कर रहा है, जिसमें अब सुनीता और बुच भी शामिल हैं। सुनीता और बुच का अंतरिक्ष मिशन अब 8 दिन की फ्लाइट टेस्ट से बढ़कर 9 महीने से ज्यादा का हो गया है, इसीलिए वे अंतरिक्ष स्टेशन पर अब फुल टाइम स्टेशन क्रू मेंबर बन चुके हैं। मिशन के तहत सुनीता और बुच अब आईएसएस पर रहते हुए कई तरह के टास्क को पूरा कर रहे हैं, जिनमें स्पेसवॉक और रोबोटिक्स सहित कई तकनीकी कार्य शामिल हैं।

सुनीता और बुच ने नासा के एक महत्वपूर्ण मिशन के तहत फ्लोरिडा के केप कैनावेरल स्पेस फोर्स स्टेशन से 5 जून 2024 को बोइंग के ‘स्टारलाइनर’ स्पेसक्राफ्ट से उड़ान भरी थी, जो लांचिंग के 26 घंटे बाद 6 जून को अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन के साथ जुड़ गया था। दोनों को आईएसएस पर एक सप्ताह बिताने के बाद 13 जून को वापस लौटना था लेकिन स्टारलाइनर में खराबी आ जाने के कारण उनकी वापसी लगातार टलती रही और उसके कई दिनों बाद नासा द्वारा पुष्टि की गई थी कि दोनों की वापसी पृथ्वी पर फरवरी 2025 से पहले नहीं हो पाएगी। आमतौर पर अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर मिशन छह महीने तक चलते हैं लेकिन देरी के कारण सुनीता और बुच अब करीब 10 महीने अंतरिक्ष में बिताएंगे। स्पेसएक्स के क्रू-10 मिशन के जरिये अंतरिक्ष यात्रियों का अगला दल मार्च के अंत में भेजे जाने की उम्मीद है, जिसमें नासा के अंतरिक्ष यात्री ऐनी मैकक्लेन और निकोल एयर्स, रूसी अंतरिक्ष यात्री किरिल पेसकोव और जापानी अंतरिक्ष यात्री ताकुया ओनिशी शामिल होंगे।

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