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मैदानी संगीत की परंपरा को नया जीवन

रा.स्व.संघ के अखिल भारतीय घोष संग्रहालय एवं अभिलेखागार में विभिन्न वाद्य यंत्रों और इससे संबंधित सामग्री उपलब्ध

by पाञ्चजन्य ब्यूरो
Dec 27, 2024, 10:44 am IST
in विश्लेषण, संघ, धर्म-संस्कृति, महाराष्ट्र
दीप प्रज्ज्वलित कर घोष संग्रहालय एवं अभिलेखागार का उद्घाटन करते रा.स्व.संघ के सरसंघचालक
श्री मोहनराव भागवत

दीप प्रज्ज्वलित कर घोष संग्रहालय एवं अभिलेखागार का उद्घाटन करते रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत

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गत दिसंबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने पुणे स्थित ‘मोतीबाग’ कार्यालय में अखिल भारतीय घोष संग्रहालय और अभिलेखागार का उद्घाटन किया। इसमें संघ के घोष से संबंधित वाद्यों को विस्तृत जानकारी के साथ संग्रहित किया गया है। साथ ही, इस संग्रहालय में घोष से संबंधित ग्रंथ, पुस्तकें, लेख और विभिन्न प्रकार की सामग्री उपलब्ध है। इसके अलावा, यहां घोष विषय के अध्ययनकर्ताओं तथा इस विषय के विशेषज्ञों के लिए शोध कार्य एवं अध्ययन की भी सुविधा है। संघ घोष की शुरुआत आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार के कार्यकाल में हुई थी।

सरसंघचालक ने कहा कि उचित बातें समाज की समझ में नहीं आए तो अनुचित बातें समाज के सामने आती हैं। इस पृष्ठभूमि में संघ के घोष का संपूर्ण इतिहास एक ही स्थान पर उपलब्ध कराने वाले घोष अभिलेखागार का काफी महत्व है। अभिलेखागार के कारण घोष का उचित इतिहास नई पीढ़ी के समक्ष जाएगा। सभी आवश्यक चीजें इस अभिलेखागार में संग्रहित हो चुकी हैं। सभी प्रकार की अचूक, सार्वत्रिक और आधिकारिक जानकारी यहां हर तरह से उपलब्ध हो, इस तरह से यह अभिलेखागार होना चाहिए।

संघ के घोष विभाग का इतिहास नई पीढ़ी को पता होना आवश्यक है। पूर्व में घोष विभाग कैसा था और वह कैसे विकसित होता गया, इस जानकारी का एक ही स्थान पर संग्रहित होना आवश्यक था। यह कार्य इस अभिलेखागार के कारण संभव हुआ है। उन्होंने कहा कि प्रांगणीय संगीत की परंपरा भारत से लुप्त हो चुकी थी। प्रांगणीय संगीत भारतीय संगीत के गलियारे में फिर से संघ के कारण ही आया है। प्रांगणीय अथवा मैदानी संगीत का पुनर्जीवन संघ के घोष की विशेषता है।

उन्होंने बेंगलुरु स्थित देश के पहले इंटरेक्टिव संगीत संग्रहालय ‘भारतीय संगीत अनुभव संग्रहालय’ का उल्लेख किया। 50,000 वर्ग फीट में फैले 3 मंजिलों और 9 प्रदर्शनी दीर्घाओं वाला यह संग्रहालय कला और संस्कृति के रूप में भारत की विविधता और इसके प्रति प्रेम और सम्मान को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि इस संग्रहालय में साम गायन से लेकर फिल्मी संगीत तक, हर प्रकार के संगीत की पूरी जानकारी उपलब्ध है। संगीत में रुचि रखने वालों को एक बार वहां जाना चाहिए। मैं वहां गया तो वहां के व्यवस्थापकों को बताया कि मार्शल बैंड बार की रचना नहीं है। यह हमारे देश की रचना है। इसे संघ में बजाया जाता है।

इस पर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। संयोग से दूसरे ही दिन बेंगलुरु में संघ के घोष वादन का कार्यक्रम था। उन्हें निमंत्रण दिया गया, तो वहां से 5-6 लोग आए। इस प्रकार एक जानकारी जो रह गई थी, उसे भी उन्होंने शामिल किया। संघ के घोष की विशेषता यह है कि इसने भारत के मैदानी संगीत की परंपरा को नया जीवन दिया है। हम जगह-जगह से जानकारी एकत्र करते हैं, इसलिए सब जानकारी आ जाए, ऐसा भी नहीं है।

जैसे- पहाड़ी नाम से जो रचना हम बजाते हैं, वह कोलकाता में तैयार की गई थी। इसी तरह, ग्वालियर और दिल्ली जैसी जगहों से भी रचनाएं एकत्र कीं। हमारे पास पूरे भारत की इस तरह की पूरी जानकारी हो, अखिल भारतीय घोष अभिलेखागार की संकल्पना यही है। इस अवसर पर अभिलेखागार के प्रमुख मोरेश्वर गद्रे ने परियोजना की जानकारी दी। संघ के पश्चिम क्षेत्र के शारीरिक शिक्षण प्रमुख सुनील देसाई मुख्य रूप से उपस्थित थे। सुहास धारणे ने कार्यक्रम का संचालन किया।

Topics: संघ के घोष वादनnew generationराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघdiversity of IndiaRashtriya Swayamsevak Sanghsloganeering of the SanghसरसंघचालकSarsanghchalakमोहनराव भागवतनई पीढ़ीMohanrao Bhagwatपाञ्चजन्य विशेषभारत की विविधता
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