जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में एक हिजाब पहनकर और चेहरा ढाककर आई वकील की बात सुनने से इनकार कर दिया गया। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने यह कहा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया के ड्रेस कोड के अनुसार महिला वकील चेहरा नकाब से ढाककर न्यायालय में जिरह के लिए नहीं आ सकती है। 13 दिसंबर को न्यायालय द्वारा यह टिप्पणी की गई।
मामला नवंबर का है। 27 नवंबर को न्यायालय में मोहम्मद यासीन खान बनाम नाज़िया इकबाल” मामले में घरेलू हिंसा से संबंधित मामले की सुनवाई चल रही थी। उसमें एक महिला वकील की पोशाक में न्यायालय में प्रस्तुत हुई और उसने खुद को सैय्यद ऐनेन कादरी बताया। उसने कहा कि वह याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हो रही है। वह महिला आई तो वकील की पोशाक में थी, मगर उसने अपना चेहरा पूरा नकाब से ढाककर रखा था। मामले की सुनवाई जस्टिस राहुल भारती कर रहे थे। और जब जस्टिस राहुल भारती ने महिला से कहा कि वह चेहरा ढाककर इस तरह जिरह नहीं कर सकती हैं तो महिला का कहना था कि कोई भी उससे नकाब हटाने को नहीं कह सकता है।
चेहरा ढाकना उसका मौलिक अधिकार है। इस पर न्यायाधीश राहुल भारती ने 27 नवंबर के अपने आदेश में यह कहा था कि यह अदालत याचिकाकर्ताओं के वकील के रूप में सैयद ऐनेन कादरी की उपस्थिति पर विचार नहीं करता क्योंकि न्यायालय के पास ऐसा कोई भी आधार नहीं है कि वह व्यक्ति और एक पेशेवर के रूप में उनकी उपस्थिति पर विचार कर सके।
इस घटना के बाद न्यायालय ने अपने रजिस्ट्रार जनरल से यह पूछताछ की कि क्या कोई ऐसा नियम है जो महिला को चेहरा ढककर पेश होने या ऐसा न करने के न्यायालय के अनुरोध को अस्वीकार करने का अधिकार देता है। और इसके बाद 5 दिसंबर को रजिस्ट्रार जनरल ने अपनी रिपोर्ट को प्रस्तुत किया। इस रिपोर्ट को देखने के बाद जस्टिस मोक्ष खजूरिया काज़मी ने 13 दिसंबर को यह कहा कि ड्रेस कोड पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया के जो नियम हैं वह इस बात की अनुमति नहीं देते हैं कि महिला अपना चेहरा ढाक सकती है। उन्होनें कहा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्याय 4 के भाग vi में ड्रेस कोड के विषय में लिखा है।
न्यायालय ने यह कहा कि “इन नियमों के अंतर्गत महिला अधिवक्ताओं को काले रंग की पूरी आस्तीन वाली जैकेट या ब्लाउज, सफेद बैंड, साड़ी या अन्य मामूली पारंपरिक पोशाक के साथ-साथ काला कोट पहनने की अनुमति है। हालांकि, न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि निर्धारित अदालती पोशाक में चेहरा ढंकना शामिल नहीं है और इसकी अनुमति भी नहीं है।“ हालांकि महिला वकील ने खुद को इस मामले में जिरह से अलग कर लिया था। और इसी दौरान इस मामले में दूसरे वकील याचिकाकर्ताओं की तरफ से उपस्थित हुए।
टिप्पणियाँ