"प्रकृति भी प्रगति भी": सागर मंथन 3.0 में पर्यावरण संरक्षण पर हुई चर्चा, गोपाल आर्या ने बताया आगामी संकट का समाधान
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“प्रकृति भी प्रगति भी”: सागर मंथन 3.0 में पर्यावरण संरक्षण पर हुई चर्चा, गोपाल आर्या ने बताया आगामी संकट का समाधान

सागर मंथन 2024 में पर्यावरणविद् गोपाल आर्या ने 'प्रकृति भी प्रगति भी' सत्र में सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण के लिए अपने विचार साझा किए।

by SHIVAM DIXIT
Dec 24, 2024, 03:29 pm IST
in भारत, पर्यावरण
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विगत दो वर्षों की भांति, इस वर्ष भी पाञ्चजन्य ने अपने प्रथम संपादक और भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर एक विशेष आयोजन किया। गोवा में नोवाटेल होटल के डोनासेल्विया बीच पर आयोजित सागर मंथन के तीसरे संस्करण में “प्रकृति भी प्रगति भी” नामक सत्र के दौरान पर्यावरणविद् एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पर्यावरण गतिविधियों के प्रमुख श्री गोपाल आर्या ने अपने विचार साझा किए। इस संवाद कार्यक्रम का उद्देश्य सुशासन और सतत विकास जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करना था।

गोपाल आर्या ने अपने विचार रखते हुए कहा कि भारत वह देश है, जहां प्रकृति को मां का दर्जा दिया गया है। पहाड़ों, नदियों और वृक्षों की पूजा करना हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है। लेकिन आज, जब हम प्रकृति और पर्यावरण की बात करते हैं, तो यह सोचना जरूरी है कि हम कहां गलत हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि कभी जिस धरती पर भगवान भी जन्म लेने के लिए तरसते थे, आज उसी धरती पर यदि भगवान से पूछा जाए कि क्या वे यहां जन्म लेना चाहेंगे, तो शायद उन्हें भी सोचना पड़ेगा।

दिल्ली का पर्यावरणीय संकट

गोपाल आर्या ने दिल्ली का उदाहरण देते हुए कहा कि दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index) 50 से 70 के बीच होना चाहिए, लेकिन वर्तमान में यह 400 से 500 के बीच है। दिल्ली में सांस लेना तक मुश्किल हो गया है। विश्व का सबसे बड़ा कचरे का पहाड़ दिल्ली में है, जो कुतुब मीनार से मात्र 10 मीटर छोटा है। यहां पीने का पानी दूषित है, भोजन अशुद्ध है, और लोग बेहतर जीवन की तलाश में शहर छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं।

प्रगति और प्रलय के बीच संतुलन

गोपाल आर्या ने कहा कि जब हम प्रगति और प्रकृति की बात करते हैं, तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रगति प्रलय का कारण न बने। उन्होंने कहा कि अगर प्रगति सही दिशा में न जाए, तो वह पर्यावरण के लिए विनाशकारी हो सकती है। आज अस्पतालों में भर्ती मरीजों का एक बड़ा हिस्सा जल और वायु प्रदूषण के कारण बीमार है। हमें सोचना होगा कि क्या यह विकास सही दिशा में जा रहा है।

सतत विकास के लिए सुझाव

गोपाल आर्या ने सतत विकास के लिए पांच प्रमुख कदम सुझाए-

  • पर्यावरण अनुकूल योजनाएं : विकास की सभी योजनाओं को पर्यावरण के अनुकूल बनाना चाहिए। चाहे वह उद्योग हों, कृषि हो, या शहरी विकास।
  • ग्रीन टेक्नोलॉजी : ग्रीन टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाना चाहिए, जो न्यूनतम ऊर्जा और प्रदूषण के साथ कार्य करे। उन्होंने कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाना होगा।
  • वृक्षारोपण : भारत में प्रति व्यक्ति 422 पेड़ होने चाहिए, लेकिन वर्तमान में यह संख्या केवल 28 है। दिल्ली के पास बहादुरगढ़ में यह आंकड़ा केवल 1 पेड़ प्रति व्यक्ति है। उन्होंने “एक पेड़ मां के नाम” अभियान का समर्थन किया और कहा कि वृक्षारोपण से न केवल ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ेगी, बल्कि यह इकोसिस्टम के संतुलन में भी मदद करेगा। उन्होंने पेड़ों के महत्व को एक कविता के माध्यम से व्यक्त किया- “जब तलक जिंदा रहेगा पेड़, आशिया दे जाएगा। कत्ल होगा पेड़ तो, लकड़ियां दे जाएगा।“
  • कचरा प्रबंधन : प्लास्टिक और पॉलिथीन का उपयोग कम करना होगा। उन्होंने कहा कि कचरा उत्पन्न करना हमारी मानसिकता का हिस्सा बन गया है। इसे बदलना होगा।
  • स्थानीय परंपराओं का पुनर्स्थापन : स्थानीय जरूरतों के अनुसार पारंपरिक प्रथाओं को पुनर्जीवित करना होगा।

व्यक्तिगत और सामाजिक जिम्मेदारी

गोपाल आर्या ने व्यक्तिगत जिम्मेदारी पर जोर देते हुए कहा कि यदि हर व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में छोटे बदलाव लाए, तो बड़ा फर्क आ सकता है। उदाहरण के तौर पर, एक दिन बिना साबुन के नहाने से 10,000 टन केमिकल प्रदूषण को रोका जा सकता है।

उन्होंने कहा कि यह समय है जब हम अपने जीवन को प्रकृति के अनुकूल बनाएं। हर व्यक्ति को अपने परिवार, समाज और कार्यस्थल पर पर्यावरण संरक्षण के उपाय अपनाने चाहिए।

हरित प्रथाओं का महत्व

गोपाल आर्या ने “हरित घर” का उदाहरण दिया, जिसमें घर के सभी कार्यों को पर्यावरण के अनुकूल तरीके से किया जाता है। उन्होंने कहा कि पूरे देश में 3 लाख से अधिक हरित घर बनाए जा चुके हैं।

प्रयागराज कुंभ का उदाहरण

उन्होंने प्रयागराज कुंभ मेले में “थैला और थाली” अभियान का जिक्र किया, जिसमें पॉलिथीन और डिस्पोजेबल कचरे को कम करने का प्रयास किया गया। इस पहल के माध्यम से 20,000 टन कचरे को रोका गया।

पानी की प्राथमिकता

गोपाल आर्या ने पानी के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्होंने उदाहरण दिया कि पेट्रोल और दूध के बिना जीवन संभव है, लेकिन पानी के बिना नहीं।

एएमसी (Avoid, Minimize, Create) सिद्धांत

उन्होंने “एएमसी” का महत्व बताया-

  • अवॉइड (Avoid) : पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाली चीजों का उपयोग न करें।
  • मिनिमाइज (Minimize) : संसाधनों का न्यूनतम उपयोग करें।
  • क्रिएट (Create) : पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण को बढ़ावा दें।

विकास का सही मार्ग

गोपाल आर्या ने कहा कि हमें विकास के सही मार्ग पर चलना होगा। उन्होंने कहा कि छोटे-छोटे प्रयास बड़े बदलाव ला सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, गुरुग्राम की एक फैक्ट्री ने प्लास्टिक रैपिंग कम करके 6 करोड़ रुपये प्रति माह की बचत की।

अपने संबोधन के अंत में, गोपाल आर्या ने कहा कि यदि हम प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखेंगे, तो न केवल प्रलय से बच सकते हैं, बल्कि सतत विकास की ओर बढ़ सकते हैं। उन्होंने कहा, “प्रकृति हमारी मां है। हमें इसे नुकसान पहुंचाने के बजाय संरक्षित करने की दिशा में काम करना चाहिए।”

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