गोवा में पाञ्चजन्य के सागर मंथन संवाद में राम माधव जी ने नया विश्व और भारत उदय पर बात की। उनसे वरिष्ठ पत्रकार अनुराग पुनेठा ने बात की।
सवाल- पिछले 10 सालों में भारत में दो बड़ी चीजें देखने को मिली हैं।। एक तो यह कि भारत सरकार ने पिछले कुछ सालों में अपनी एक ऑटोनोमी को मेंटेन किया है। बड़ी स्ट्रेटेजी का एक ऑटोनोमी है कि हमारी अपनी विचारधारा, हम हमारे अपने हित रहेंगे और उसके तौर पर बड़ा क्रिटिसिज्म भी देखने को मिलता है। भारत इस नीति को कितना सही और कितना दूरगामी मानते हैं कि आज के दौर में जब इतनी ज्यादा क्रिएटेड हो ये बाइनरी ऐसे में भारत की ये पहल ने कितना भारतीय नीति को, भारतीय कूटनीति को और विदेश नीति को प्रभावित किया है?
जवाब- भारत ने आज विश्व में अपनी विशेष पहचान बना ली है। पिछले 10 वर्षों के शासन में सरकार ने इसमें बहुत बड़ा योगदान दिया है। ऐसा नहीं है कि अभी जब कुछ हो रहा हो, तभी विदेश नीति का सवाल उठता है। ये लगातार चलने वाली प्रक्रिया है लेकिन पिछले 10 वर्षों में इसका बड़ा परिणाम आज विश्व में भारत के संबंध में देखा जा सकता है। स्ट्रेटेजिक ऑटोनॉमी का परिचय दुनिया में भारत ने दिया। जो लोग आजादी के बाद भारत का इतिहास जानते हैं, उन्हें पता होगा कि नॉन अलाइनमेंट का मतलब होता है कि हम दुनिया में किसी के पीछे नहीं जाएंगे। नॉन अलाइनमेंट एक पैसिव एक्टिविटी था। उसमें हमारा कुछ नहीं है। हम न तो आपके पीछे हैं और न ही उनके पीछे। आज हम जो कर रहे हैं जिसको कहते हैं, स्ट्रेटेजिक ऐटॉनमी। स्ट्रेटेजिक ऐटॉनमी केवल नान अलाइनमेंट नहीं है, मल्टी अलाइनमेंट है। मतलब हम हमारे देश के इंट्रेस्ट के आधार पर दुनिया में किसी भी देश के साथ साथ संबंध रखेंगे। किसी भी देश के साथ संबंध को किसी तीसरे देश के चश्मे से नहीं देखेंगे।
सवाल- आप भविष्य में भारत-चीन संबंधों और भारत की नीति को किस प्रकार देखते हैं?
जवाब- चीन हमारा पड़ोसी देश है। हम अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं। अंग्रेजी में एक कहावत है यू कैन नॉट चूस योर नेबर्स। आप यह तय नहीं करेंगे कि आपका पड़ोसी कौन है, आपको पड़ोसी के साथ रहना होगा। आपके पड़ोसी के घर कोई भी आ सकता है। उनके साथ रहते हुए आपको उन्हें समझना होगा। हमारा पड़ोसी कैसा व्यवहार करता है? उसका आचरण क्या है, उसकी स्टाइल क्या है, उसका चरित्र क्या है, उसका इतिहास क्या है? हमें इसे समझना होगा और ये समझ कर रहना पड़ेगा। चीन एक विशेष स्वभाव वाला देश है। उस स्वभाव को समझकर चलो झगड़ा मत करो। हम झगड़ा नहीं चाहते हैं।
वैसे दुनिया में कभी भी भारत ने युद्ध नहीं चाहा। युद्ध भारत पर थोपा गया था, हमेशा संघर्ष थोपा गया था। अन्यथा भारत बहुत शांतिपूर्ण देश है। पर पहले क्या होता था हम बहुत रोमेंटिक होते थे। अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों के बारे में हम अपनी तरह ही सोचते थे, हम सबको हमारे जैसा सोचते थे, सब हमारे जैसे नहीं है। चीन का अपना स्वभाव है। उस स्वभाव को समझ कर उसके साथ हैंडल करना है। पहले ऐसा नहीं था, हमें इसके परिणाम भुगतने पड़े। जब 1962 में युद्ध हुआ तो हम बुरी तरह पराजित हुए। क्योंकि 1962 तक हमारी सोच क्या थी? 1955 में चीन के पंतप्रधान भारत आए थे। उनके साथ जवाहरलाल नेहरू जी दोनों मिलकर कबूतर उड़ाये थे, उस समय घोषणा हुई थी हिंदी, चीनी भाई-भाई और हमने फाइव प्रिन्सिपल ऑफ़ पंचशील बनाए तो हम को लगा कि अब तो हम दोनों मित्र हो गए तो कोई झगड़ा ही नहीं है। कोई समस्या ही नहीं है तो हमने सेना पर खर्च भी नहीं करना आवश्यक समझा।
1962 में एक दिन चीन के सर्वोच्च नेता ने भारत को सबक सिखाना चाहा। उन्होंने कहा- भारत हम बराबर नहीं है, इनको दिखाना है तुम बहुत छोटा देश हो तो उन्होंने अपने सेना को आदेश दिया कि जाओ, जाके भारत पर आक्रमण करो। उस समय पंत प्रधान चीन के सर्वोच्च नेता के साथ थे और उन्होंने कहा कि सर, 6 साल पहले हमने नेहरू जी के साथ मिलकर यह घोषणा की थी कि हिंदी-चीनी भाई-भाई हैं और पंचशील पर हस्ताक्षर भी किए थे और शांतिपूर्ण अनुभव की बात की थी। तो मावो हंसते हुए पंत प्रधान से कहा कि जाओ जाके तुम्हारा दोस्त है ना नेहरू तो नेहरू को समझाओ हम तो आर्म्ड को एग्ज़िस्टन्स पर विश्वास करते हैं। हमने ना हथियार रखा ना कोई तैयारी रखी। चीन आया हमारे 40,000 वर्ग किलोमीटर की भूमि 40 थाउज़न्ड स्क्वायर किलोमीटर की भूमि को कब्जा कर लिया। आज भी वह जमीन चीन के कब्जे में है।
सवाल- बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार हो रहे हैं, मंदिर तोड़े जा रहे हैं, ऐसे में आप बांग्लादेश के डेवलपमेंट को कैसे देखते हैं?
जवाब- एक बात जो बांग्लादेश के लोगों को याद रखनी चाहिए वह यह है कि जब मुक्तिवाहिनी संगठन ने बांग्लादेश के निर्माण की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया था, तो पाकिस्तान के तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान नेतृत्व ने स्वतंत्र बांग्लादेश के आंदोलन को दबाने और उसे समाप्त करने के लिए सेना को ढाका भेज दिया था। मार्च 1971 में सेना ने पहली बार आजादी की मांग कर रहे लोगों पर अत्याचार करना शुरू किया। आर्मी के आक्रमण में 5000 लोगों को मारा गया था। वे 5000 हिंदू थे। बांग्लादेश के निर्माण के लिए पहला बलिदान देने वाले हिंदू थे। बांग्लादेश के उस आंदोलन में पूरी तरह हिंदू लगे रहे। लेकिन जब पाकिस्तानी सेना ने दमन जारी रखा तो 1,00,00,000 हिंदू भागकर भारत आ गए। इसलिए जब 1972 में बांग्लादेश बना तो उस समय उसके प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान थे। मुजीबुर्रहमान और इंदिरा गांधी के बीच एक समझौता हुआ। मुजीबुर्रहमान ने लिखित में दिया कि हम इन हिंदुओं की रक्षा करेंगे। फिर 1,00,00,000 हिंदू शरणार्थी जो भारत भाग आए थे, बांग्लादेश वापस चले गए। प्रशासन को याद रखना चाहिए कि दुर्भाग्यवश पिछले 50 वर्षों में बांग्लादेश में समय-समय पर अत्याचार होते रहे हैं। आज हम उस तरह का दौर देख रहे हैं। आज वहां पर अस्थिर सरकार है और इस कारण कुछ लोग जो कट्टरपंथी इस्लामवादी तत्व हैं, हिंदुओं को परेशान करने की कोशिश कर रहे हैं। इसलिए हमारी सरकार प्रयास कर रही है कि इस समय वहां का प्रशासन कार्रवाई करे। ये उनके नागरिक ही हैं जिन्होंने उस देश के निर्माण में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनकी रक्षा करने की कोशिश करें।
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