पुरखों के समरसता के सूत्रों को फिर से आत्मसात कर समरस बनेगा समाज : अनिल जी
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पुरखों के समरसता के सूत्रों को फिर से आत्मसात कर समरस बनेगा समाज : अनिल जी

"सामाजिक समरसता: भारतीय परिप्रेक्ष्य" पर शंख ने आयोजित किया संवाद कार्यक्रम

by WEB DESK
Dec 23, 2024, 10:58 pm IST
in उत्तर प्रदेश
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प्रयागराज। शंख संस्था द्वारा सोमवार को सिविल लाइंस स्थित इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन के सभागार में “सामाजिक समरसता: भारतीय परिप्रेक्ष्य” विषय पर गोष्ठी एवं संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय प्रचारक अनिल जी तथा विशिष्ट वक्ता के रूप में सामाजिक चिंतक अनुभव चक उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य स्थाई अधिवक्ता विजय शंकर मिश्र ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. कीर्तिका अग्रवाल एवं डॉ. संतोष सिंह की उपस्थिति रही। इस कार्यक्रम में भारतीय समाज को एकात्मकता के सूत्र में पिरोकर समरस बनाने पर सार्थक चर्चा-परिचर्चा की गई। कार्यक्रम का संचालन विश्वास नारायण तिवारी ने किया।

मुख्य वक्ता अनिल जी ने कहा कि समरसता केवल भाषण का विषय नहीं है, बल्कि इसे जीवन में उतारने की आवश्यकता है। भारत को एकात्मकता के सूत्र में बांधे रखने के लिए हमारे पूर्वजों द्वारा बनाई गई व्यवस्थाओं को पुनः आत्मसात करना होगा। आज कुछ राजनीतिक दल जातीय विद्वेष फैलाकर राजनैतिक लाभ उठाने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे आदर्श विमर्श से हम दूर होते जा रहे हैं। विदेशी शक्तियां भी भारतीय समाज को तोड़ने के लिए ऐसी संस्थाओं को पोषित कर रही हैं, और सोशल मीडिया के युग में इन विघटनकारी ताकतों को बढ़ावा मिल रहा है। भारतीय समाज में समरसता सदैव से विद्यमान रही है, और हमारे पूर्वजों ने सामाजिक व्यवस्थाओं के माध्यम से समाज को समरस बनाने का कार्य किया है। भारत वही देश है, जहां विश्व के सबसे बड़े आयोजन, कुंभ में, सभी हिंदू बिना किसी जातीय भेदभाव के एक साथ रहते हैं और प्रयागराज के संगम में स्नान करते हैं। यदि किसी को भारत का सच्चा दर्शन करना हो, तो कुंभ अवश्य देखना चाहिए। समरसता की शुरुआत हमें अपने परिवार से करनी होगी, तभी समाज में समरसता स्थापित हो सकेगी।

विशिष्ट वक्ता अभिनव चक ने कहा कि शंख द्वारा ऐसे विषयों को उठाने का निरंतर प्रयास सराहनीय है। आज केवल समरसता पर चिंतन करने की नहीं, बल्कि प्रभावी प्रयास करने की आवश्यकता है। भारतीय परंपरा में समरस समाज की संकल्पना अनादिकाल से विद्यमान रही है, जिसे आज पुनः आत्मसात करने की आवश्यकता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विजय शंकर मिश्र ने कहा कि कुछ राजनीतिक दलों की प्रवृत्ति समाज को विभाजित करने की है, और वे सोशल मीडिया का उपयोग कर समाज को बांटने का प्रयास कर रहे हैं। हमें इन विभाजनकारी ताकतों को रोकना होगा, तभी समरस भारतीय समाज की संकल्पना पुनः साकार हो सकेगी।

कार्यक्रम की संयोजिका डॉ. कीर्तिका अग्रवाल ने सभी को शुभकामनाएं दीं और संक्षेप में विषय को प्रस्तुत किया। उन्होंने भारतीय मूल्यों पर आधारित बेहतर समाज की स्थापना की बात कही।

विशिष्ट अतिथि डॉ. मृत्युंजय राव परमार, सहायक आचार्य, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, ने कहा कि भारतीय दर्शन सदैव समरसता का पक्षधर रहा है। भारत ने सम्पूर्ण विश्व को समरसता का पाठ पढ़ाया है, और आज हमें अपने ही देश में इस पर चर्चा करनी पड़ रही है। भारतीय संस्कृति को पुनः आत्मसात करने की आवश्यकता है। कार्यक्रम के संरक्षक डॉ. संतोष सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम में शंख संस्थान के अध्यक्ष आलोक परमार, सदस्य डॉ कुंवर शेखर एवं अभिनव मिश्र भी उपस्थित रहे।

Topics: समरसताSocial harmonyIndian perspectiveशंख संस्थासंवाद
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