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पूर्वोत्तर में विकास का अरुणोदय

कभी भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र उपेक्षित और विकास से कोसों दूर था। लेकिन बीते दस वर्ष में इस क्षेत्र में शांति स्थापना के साथ विकास कार्यों में तेजी आई है। यह सब मोदी सरकार की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति का सुपरिणाम है

by पाञ्चजन्य ब्यूरो
Dec 19, 2024, 02:36 pm IST
in भारत, असम, ओडिशा, मणिपुर
भारत का पहला अंतरराष्ट्रीय मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक पार्क असम में बन रहा है

भारत का पहला अंतरराष्ट्रीय मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक पार्क असम में बन रहा है

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स्वतंत्रता के बाद कई वर्षों तक भारत के उत्तर-पूर्व क्षेत्र को अजायबघर के रूप में देखा गया। किसी के लिए पूर्वोत्तर जादू-टोना का केंद्र था, किसी के लिए ‘हेड हंटिंग’ और ‘स्टोरी फॉर नेफा’ था। इन सबके कारण पूर्वोत्तर के लोगों को ही नहीं, बल्कि देश को भी खामियाजा भुगतना पड़ा। भारत का यह महत्वपूर्ण क्षेत्र लंबे समय तक मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहा। आकंठ भष्ट्राचार में डूबे राजनेता-अधिकारी और मूलभूत सुविधाओं के लिए मरते हुए लोग पूर्वोत्तर भारत का सच था।

जीवन की विकल्पहीनता ने बंदूक की गोली को विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया। हथियार और नशा जीवनशैली बन गई। आज से एक दशक पहले तक स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर पूर्वोत्तर में बम धमाके होते थे। ऊपर से यह नैरेटिव गढ़ा गया कि पूर्वोत्तर के लोग तो ‘असभ्य’ हैं। यह कुछ और नहीं, अकर्मण्यता को तार्किक बनाने के बहाने थे। लेकिन जब केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा नीत राजग की सरकार बनी, तब ‘लुक ईस्ट’ की बजाए ‘एक्ट ईस्ट’ नीति पर काम किया गया। इसके बाद क्षेत्र में शांति स्थापित हुई तथा अरुणाचल प्रदेश ने 2014, जबकि मणिपुर ने 2022 में पहली बार ट्रेन देखी।

परंपरा पर ग्रहण

ईशान क्षेत्र से भारत भाव के सांस्कृतिक संवाद-सूत्र प्रबल रहे हैं। वैष्णव चेतना और कृष्ण भक्ति का पूरा पूर्वोत्तर केंद्रित पाठ उपलब्ध है। असम से लेकर मणिपुर तक, इस पाठ के सूत्रों की व्याख्या है। माधव कंदली, श्रीमंत शंकरदेव, महापुरुष माधवदेव, नाथ संप्रदाय, वैष्णव भक्ति, सत्र परंपरा, प्रदर्शनकारी कलाएं जैसे अनगिनत संवाद स्वर पढ़े जा सकते हैं। सांस्कृतिक सातत्यता के स्वर मद्धिम क्यों हुए? यह विचारणीय है। दरअसल, पूर्वोत्तर की समस्या शुरू होती है 1873 के बंगाल ‘फ्रंटियर रेगुलेटिंग एक्ट’ से। अविभाजित बंगाल के पूर्वोत्तर भारत संदर्भित क्षेत्रों को संस्कृति संरक्षण के नाम पर इनर लाइन परमिट व्यवस्था (आईएलपी) के अंदर लाया गया। इन क्षेत्रों में आने-जाने के लिए आईएलपी को आवश्यक बनाया गया।

यह ईसाई मिशनरियों और औपनिवेशिक ताकतों के लिए वरदान था। देश आजाद हुआ तो हैरी बेरियर एल्विन को पूर्वोत्तर मामलों में प्रधानमंत्री का सलाहकार नियुक्त किया गया। एक ईसाई प्रचारक प्रधानमंत्री को क्या सलाह दे सकता है, इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है। भारत के संविधान की धारा 371ए (नागालैंड), 371बी (असम), 371सी (मणिपुर), 371एफ (सिक्किम), 371जी (मिजोरम) और 371एच (अरुणाचल प्रदेश) में इस संरक्षण के नाम पर संवादहीनता को बढ़ावा दिया गया। बंगाल फ्रंटियर रेगुलेटिंग एक्ट 1873 और धारा 371ए से 371एच ने पूर्वोत्तर भारत को ईसाई मिशनरियों और अलगाववादी ताकतों का अभयारण्य बना दिया था।

बदल रही तस्वीर

अब पूर्वोत्तर के हालात बदल रहे हैं। बीते एक दशक में क्षेत्रीय परिषदों की बैठकों में पूर्वोत्तर के विकास के लिए लगभग 1,000 से अधिक मुद्दों पर विचार-विमर्श हुआ और 93 प्रतिशत का समाधान भी हुआ है। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 15वें वित्त आयोग की शेष अवधि (2022-23 से 2025-26 तक) के लिए कुल 12,882.2 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (डोनियर) की योजनाओं को जारी रखने की मंजूरी दी है। इससे रेलवे, वायु संपर्क, सड़क निर्माण, कृषि और पर्यटन की 202 से अधिक परियोजनाओं पर जो काम चल रहा है, उसे गति मिलेगी। 2014 के बाद से पूर्वोत्तर के बजट आवंटन में भारी वृद्धि हुई है। 2014 से अब तक इस क्षेत्र के लिए 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक धनराशि आवंटित की गई है। पहले इन राज्यों में 9 हवाईअड्डे थे, जो बढ़कर 17 हो गए हैं। पूर्वोत्तर राज्यों में निजी भागीदारी बढ़ाने के लिए निवेशकों को आकर्षित करने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

परिवहन संपर्क पर जोर

रेल संपर्क बढ़ाने के लिए 2014 से अब तक 51,019 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं और 77,930 करोड़ की 19 नई परियोजनाएं मंजूर की गई हैं। सड़क संपर्क में सुधार के लिए 1.05 लाख करोड़ की 375 परियोजनाओं पर काम चल रहा है। सरकार अगले तीन वर्ष में 1,06,004 करोड़ की लागत से 209 परियोजनाओं के तहत 9,476 किलोमीटर सड़क बनाएगी। इसी तरह, 9,265 करोड़ रुपये की नॉर्थ ईस्ट गैस ग्रिड परियोजना पर काम चल रहा है, जिससे पूर्वोत्तर की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा।

सरकार ने बिजली आपूर्ति के लिए 2014-15 से 37,092 करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं, जिनमें से 10,003 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। 2014 से पहले पूर्वोत्तर में मात्र एक राष्ट्रीय जलमार्ग था, जो 18 हो गए हैं। हाल ही में राष्ट्रीय जलमार्ग 2 और राष्ट्रीय जलमार्ग 16 के विकास के लिए 6,000 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं। इसी तरह, दूरसंचार पर अब तक 3,466 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। 193 नए कौशल विकास केंद्रों की स्थापना के साथ 16 लाख से अधिक लोगों को प्रशिक्षित किया गया है। विभिन्न योजनाओं के तहत एमएसएमई को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग के अनुसार, पूर्वोत्तर से 3,865 स्टार्टअप पंजीकृत हुए हैं।

पूर्वोत्तर राज्यों में उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए 14,009 करोड़ रुपये खर्च कर 191 नए शैक्षिक संस्थान खोले गए हैं। 2014 से अब तक विश्वविद्यालयों की संख्या में 39 प्रतिशत, जबकि केंद्रीय उच्च शिक्षा संस्थान 40 प्रतिशत बढ़े हैं। परिणामस्वरूप, उच्च शिक्षा में नामांकन 29 प्रतिशत बढ़ा है।

उग्रवाद से मुक्ति

केंद्र सरकार के प्रयासों से पूर्वोत्तर के राज्यों में शांति बहाली के बाद उग्रवाद की घटनाओं में 74 प्रतिशत, सुरक्षा बलों पर हमलों में 60 प्रतिशत और नागरिकों की मौत में 89 प्रतिशत की कमी आई है। लगभग 8,000 युवाओं ने उग्रवाद छोड़कर आत्मसमर्पण किया है। इसके अलावा, 2019 में त्रिपुरा के राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा, 2020 में बीआरयू व बोडो समझौता तथा 2021 में कार्बी समझौते हुए। असम-मेघालय और असम-अरुणाचल सीमा विवाद भी लगभग समाप्त हो चुके हैं।

पूर्वोत्तर का ‘प्रवेश द्वार’ कहे जाने वाले असम में अब ऐसा एक भी विद्रोही गुट नहीं बचा है, जिसने सरकार से समझौता न किया हो। बीते वर्षों के दौरान पूर्वोत्तर में अफस्पा का दायरा भी सिमटा है। त्रिपुरा से अफस्पा को 2015 में ही हटा लिया गया था। 2018 में मेघालय भी इससे पूरी तरह मुक्त हो गया। इसके अलावा अरुणाचल प्रदेश, असम, नागालैंड, मणिपुर आदि राज्यों में भी अफस्पा के प्रभाव-क्षेत्र में लगातार कमी आई है। असम में इसे मात्र आठ जिलों तक सीमित कर दिया गया है, जबकि मणिपुर के और चार थाना क्षेत्रों से इसे हटाने का निर्णय लिया गया है। कुल मिलाकर बीते नौ वर्ष में अफस्पा प्रभावित क्षेत्रों में 75 प्रतिशत की कमी आई है।

हिंदी विरोध में पली-बढ़ी पीढ़ी अपने बच्चों को हिंदी पढ़ा रही है। माजुली से मथुरा तक इम्फाल से इंद्रप्रस्थ तक संवाद और सहकार के आर्थिक-सांस्कृतिक संदर्भों पर जमी धूल साफ हुई है। परिचय बढ़ा है तो प्रेम भी बढ़ा है।
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय में प्रोेफेसर हैं)

Topics: स्टोरी फॉर नेफाहेड हंटिंगआर्थिक-सांस्कृतिकलुक ईस्टVaishnav consciousnessAct EastStory for NEFAHead huntingपाञ्चजन्य विशेषEconomic-culturalवैष्णव चेतनाLook Eastएक्ट ईस्ट
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