विश्व

महिलाओं को लेकर ईरान के सर्वोच्च नेता खमैनी का बदला रुख, बोला-‘औरतें फूल हैं, घर की नौकरानी नहीं!’, हिजाब कानून भी टले

महिलाओं को फूल बताना तो ठीक है, मगर महिलाओं को फूल बताकर बुर्के या हिजाब में कैद करके नहीं रखा जाता है। यदि कोई महिला फूल की तरह है और जिसकी सुगंध से हवा शुद्ध हो सकती है तो क्या उस फूल को परदे में कैद किया जा सकता है?

Published by
सोनाली मिश्रा

ईरान में जहां एक ओर महिलाओं का अनिवार्य हिजाब को लेकर दमन जारी है और एक गायिका को केवल इसलिए कैद कर लिया गया क्योंकि उसने वर्चुअल कॉन्सर्ट में भी हिजाब नहीं पहना था। पूरे विश्व में ईरान में महिलाओं के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार को लेकर आलोचना का माहौल है और कई मानवाधिकार संगठन इस बात पर चिंता व्यक्त कर चुके हैं कि ईरान में महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है।

मगर अचानक से ही ईरान में महिलाओं के प्रति नम्र रुख देखा जा रहा है। इसके पीछे कारण क्या हो सकते हैं, यह बाद में पता चलेगा। परंतु एक बात तो तय है कि इन दिनों ईरान के खमैनी शासन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। क्या महिलाओं के प्रति सॉफ्ट रवैया अपनी छवि सुधारने के लिए उठाया जा रहा कदम है? क्या ये कदम पश्चिमी लोकतान्त्रिक देशों के बीच अपनी इमेज मेकओवर के लिए उठाए जा रहे हैं। ईरान के सर्वोच्च नेता खमैनी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की। उस पोस्ट में महिलाओं को लेकर लिखा है कि “एक #महिला एक नाजुक फूल है, कोई नौकरानी नहीं। एक महिला को घर में एक फूल की तरह माना जाना चाहिए। एक फूल की देखभाल की जानी चाहिए। इसकी ताज़गी और मीठी खुशबू का लाभ उठाया जाना चाहिए और हवा को सुगंधित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए।“

मगर सबसे मजेदार बात यह है कि खमैनी के एक्स पर इस पोस्ट पर कम्युनिटी कमेंट्स अर्थात आम पाठकों की जो टिप्पणियाँ होती हैं, वह देखने योग्य हैं। इसमें पाठकों ने लिखा है कि खमैनी के शासनकाल में ईरान में महिलाओं के अधिकारों पर गंभीर प्रतिबंध लग रहे हैं। मॉरल पुलिस द्वारा जबरन लागू कराए जा रहे अनिवार्य हिजाब कानून ईरान में महिलाओं की निजी आजादी को सीमित करते हैं और महिलाओं को ड्रेस कोड का पालन न करने पर कड़ी से कड़ी सजा का सामना करना पड़ता है। इसमें कई लिंक्स भी दिए गए हैं।

महिलाओं को फूल बताना तो ठीक है, मगर महिलाओं को फूल बताकर बुर्के या हिजाब में कैद करके नहीं रखा जाता है। यदि कोई महिला फूल की तरह है और जिसकी सुगंध से हवा शुद्ध हो सकती है तो क्या उस फूल को परदे में कैद किया जा सकता है? सोशल मीडिया पर लोग इस पोस्ट को लेकर महासा अमीन की तस्वीरें साझा कर रहे हैं। महासा अमीन वही लड़की थी, जिसे ठीक से हिजाब न पहनने के कारण मार डाला गया था। महासा अमीन तो केवल एक लड़की है, ईरान में तो सैकड़ों लड़कियों को मार डाला गया है और यदि लड़कियां फूल हैं तो क्या उन्हें इस तरह कुचलकर मार देना चाहिए?

लोग कह रहे हैं कि खमैनी के शासन में हर साल अनेक महिलाओं को मार डाला जाता है। ईरान में अभी कुछ ही दिन पहले तक महिलाएं इस कदर हिजाब को ठीक से न पहनने को लेकर पीटी जाती थीं कि उनमें से कई तो कोमा में चली गई थीं।

एक यूजर ने पीड़ित कई लड़कियों की तस्वीरें साझा कीं।

मगर लड़की को केवल फूल बताना और ऐसा बताना कि उसकी देखभाल करनी चाहिए, कहीं न कहीं उस परदे की व्यवस्था को ही रूमानी भाषा में बताना है। जैसे फूल का काम है खुशबू देना, वैसे ही लड़की का काम केवल बच्चे पैदा करना है।

खमैनी ने कल महिलाओं को लेकर एक्स पर कई पोस्ट्स किए जिनमें महिलाओं और पुरुषों की अलग-अलग भूमिकाओं के बारे में बताया। कहा कि परिवार में औरतों और आदमियों की अलग-अलग भूमिकाएं होती हैं। जैसे “उदाहरण के लिए, पुरुष परिवार के खर्चों के लिए जिम्मेदार है, जबकि महिला बच्चे पैदा करने के लिए जिम्मेदार है। इसका मतलब श्रेष्ठता नहीं है। वे अलग-अलग गुण हैं, और पुरुषों और महिलाओं के अधिकारों की गणना इनके आधार पर नहीं की जाती है।“ ऐसे कई पोस्ट्स हैं और एक में लिखा है कि पश्चिम में मातृत्व को नकारात्मक दिखाया जाता है। और एक पोस्ट में लिखा है कि “आज पश्चिम में जो अनैतिकता है, वह हाल ही की घटना है। जब कोई 18वीं और 19वीं सदी की किताबें पढ़ता है और उनमें यूरोपीय महिलाओं के बारे में वर्णन पढ़ता है, तो वह पाता है कि उस समय कई सामाजिक मानदंड थे, जैसे शालीन कपड़े पहनना, जो आज पश्चिम में मौजूद नहीं हैं।“

मगर खमैनी यह भूल जाते हैं कि शालीन कपड़े पहनने का अर्थ यह बिल्कुल भी नहीं है कि हिजाब जैसी पोशाकों में लड़की को कैद कर लिया जाए। शालीन कपड़े पहनना और कपड़ों के आधार पर महिलाओं को कैद करना और उन पर तमाम अत्याचार करना, उन्हें मौत के घाट उतारना तीनों अलग अलग चीजें हैं। कुछ तो हुआ है जिसके कारण ईरान के सर्वोच्च नेता खमैनी की ओर से महिलाओं को लेकर या कहें हिजाब को लेकर अपने कड़े नियमों को सही ठहराते हुए जहां ये पोस्ट्स आए हैं तो वहीं दूसरी ओर अनिवार्य हिजाब को लेकर जो और कड़े कानून लागू होने थे, वे टल गए हैं। फिर से यही प्रश्न है कि क्या ये कदम अपनी इमेज मेकओवर का हिस्सा हैं या फिर कोई अंतर्राष्ट्रीय दबाव ऐसा है जिसके चलते ईरान को अपनी कट्टर मुस्लिम की छवि से बाहर निकलना पड़ रहा है? ऐसे तमाम सवाल हैं, जिनके जबाव समय के साथ मिलेंगे, परंतु मिलेंगे अवश्य।

Share
Leave a Comment