भारत के विकास को पटरी से उतारने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए अंतरराष्ट्रीय शक्तियां और डीप स्टेट लंबे समय से षड्यंत्र रच रहे हैं, जिसमें एनजीओ बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं। लेकिन 2016-17 से सरकार की सख्ती के बाद गैर-सरकारी संगठनों को विदेशों से मिलने वाला धन स्रोत बंद हो गया तो डीप स्टेट ने दूसरे हथकंडे अपनाए। दरअसल, अगर कोई एनजीओ विदेशी से धन लेता है और इससे सामाजिक या पांथिक सद्भाव प्रभावित होता है, तो उसका विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एसीआरए) लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने साफ-साफ कहा है कि विकास विरोधी गतिविधियों, कन्वर्जन, दुर्भावना से प्रेरित विरोध प्रदर्शन को भड़काने और आतंकी या कट्टरपंथी संगठनों के साथ संबंध रखने वाले एनजीओ का एफसीआरए लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय भी कह चुका है कि एनजीओ को विदेशों से धन प्राप्त करने का मौलिक अधिकार नहीं है। खुफिया ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ एनजीओ ऐसी गतिविधियों में शामिल हैं, जो देश की सुरक्षा, वैज्ञानिक, सामरिक या आर्थिक हितों को प्रभावित कर सकती हैं।
ऐसे एनजीओ की लगातार निगरानी की जा रही है, जो विदेशों से मिले पैसे से गैर-कानूनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। इनमें जॉर्ज सोरोस द्वारा वित्त पोषित ओपन सोसाइटी फाउंडेशन, ओपन सोसाइटी इंस्टीट्यूट आदि एनजीओ भी शामिल हैं। गृह मंत्रालय ने इन संस्थाओं को ‘पूर्व अनुमति’ सूची में रखा है, यानी बिना मंत्रालय की अनुमति के ये किसी भारतीय एनजीओ या कंपनियों को दान नहीं दे सकतीं। इसलिए डीप स्टेट सहित विदेशी संस्थाओं ने अपने मनचाहे काम के लिए भारत में पैसे भेजने के लिए माध्यम ढूंढना शुरू किया, जिनमें एनजीओ और मीडिया घराने शामिल थे।
बहरहाल, जब एनजीओ को विदेशी वित्तपोषण पर रोक लगी तो डीप स्टेट ने कुछ मीडिया घरानों को अपना मोहरा बनाया। उनके जरिये भारतीय मतदाताओं की नजर में देश में और देश से बाहर नरेंद्र मोदी की सरकार को बदनाम करने व उन्हें सत्ता से हटाने की मंशा से अराजकता पैदा करने के लिए वित्त पोषित किया। इसके बावजूद उन्हें अपने मंसूबों में सफलता नहीं मिली, तो डीप स्टेट ने अडाणी समूह को निशाना बनाया। अडाणी समूह को चोट पहुंचाने का मतलब था- भारत के आर्थिक हितों को चोट पहुंचाना। इसके लिए हिंडनबर्ग को काम पर लगाया गया।
2018 में स्टारलाइट विरोधी हिंसक प्रदर्शन से लेकर 2020 में दिल्ली दंगे और 2020-21 में किसानों के विरोध प्रदर्शन तक, इन सब में एनजीओ और कुछ मीडिया संस्थानों की भूमिका वित्त पोषण और उकसाने की रही। इसी तरह, 2023 में जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन और ओमिडयार फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित प्रकाशनों के एक संघ ने मुट्ठी भर पत्रकारों और विपक्षी नेताओं के फोन में कथित स्पाइवेयर पेगासस का मुद्दा उठाया था। यहां तक कि उसने इस लोकसभा चुनाव में कृत्रिम बुद्धिमता (एआई) का सहारा लिया, फिर भी सत्ता परिवर्तन करने में नाकामी ही हाथ लगी।
प्रश्न है ‘सॉफ्ट पावर’ के जरिये अमेरिकी डीप स्टेट ने भारत में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को अस्थिर और अस्त-व्यस्त करने का प्रयास कैसे किया? इसका जवाब है, हाल ही में फ्रांसीसी प्रकाशन मीडियापार्ट द्वारा ‘दुनिया की सबसे बड़ी जांच रिपोर्टिंग एजेंसी’ आर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) को लेकर किया गया खुलासा। इसमें मीडियापार्ट ने कहा है कि ओसीसीआरपी ने डीप स्टेट से 4.7 करोड़ डॉलर (47 मिलियन डॉलर) लेकर उन देशों की सरकारों के बारे में ‘खोजी रिपोर्ट’ प्रकाशित की, जिनका अमेरिका विरोध करता था।
आपइंडिया की प्रधान संपादक नूपुर जे शर्मा ने एक साक्षात्कार में कहा था कि बिग टेक प्लेटफॉर्म देश में गुप्त रूप से ‘नैरेटिव वारफेयर’ छेड़ने के लिए डीप स्टेट के सबसे बड़े वाहकों में से एक रहे हैं। उन्होंने ‘Wikipedia’s War on India’ शीर्षक से 187 पन्नों का एक डोसियर प्रकाशित किया है, जिसमें उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला है कि विकीपीडिया की मूल कंपनी ‘विकीमीडिया फाउंडेशन’ भारत के खिलाफ व्यापक ‘सूचना युद्ध’ अभियानों में शामिल रही है। इसे वह भारत की ‘संप्रभुता, स्वतंत्रता और अखंडता’ पर सीधा हमला बताती हैं। उन्होंने विकीपीडिया पर गूगल के साथ मिलकर अमेरिकी डीप स्टेट के इशारे पर भारत विरोधी नैरेटिव को बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया है। उनके अनुसार, विकीमीडिया फाउंडेशन के मुख्य दानदाताओं में से एक है टाइड्स फाउंडेशन, जिसे अमेजन, गूगल, मेटा, जॉर्ज सोरोस और रोथ्सचाइल्ड फाउंडेशन जैसे तकनीकी दिग्गजों द्वारा वित्त पोषित किया जाता है।
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