राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाला है। आगामी विधानसभा चुनाव में दिल्ली में सत्ता के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और आम आदमी पार्टी (आप) मुख्य दावेदार हैं। कई राज्यों की तरह दिल्ली में भी कांग्रेस पार्टी का कोई महत्व नहीं है। कांग्रेस पार्टी का दिल्ली सहित कई अन्य राज्यों में कोई भी विधायक नहीं है। दिल्ली के अतिरिक्त
ये राज्य हैं पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, नागालैंड वो सिक्किम। दिल्ली में विगत दो विधानसभा चुनाव और विगत तीन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका। कांग्रेस पार्टी 2020 के विधानसभा चुनाव में 66 सीटों पर चुनाव लड़कर महज 3 सीटों पर जमानत बचा सकी वही 2015 में सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़कर 8 सीटों पर जमानत बचाई थी।
पिछले दो विधानसभा चुनावों से आम आदमी पार्टी केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में अपना दबदबा कायम किए हुए है। दिल्ली में पिछले दो विधानसभा चुनावों में आप ने विपक्षी दलों का लगभग सफाया कर दिया था। 2013 के विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते भाजपा दिल्ली में सरकार बनाने वाली थी, लेकिन आप और कांग्रेस पार्टी ने हाथ मिलाकर भाजपा को सत्ता से दूर कर दिया। दिल्ली में 2015 के विधानसभा चुनाव में आप ने 67 सीटें जीती थी, जबकि 2020 में उसने लगभग अपनी संख्या लगभग बरकरार रखी और 62 सीटें जीतीं।
दिल्ली में यह भी एक बड़ा आश्चर्य है कि विधानसभा चुनाव में ऐसे उम्दा प्रदर्शन के बावजूद भी आप तीन लोकसभा चुनाव लड़कर भी अभी तक लोकसभा में दिल्ली से अपना खाता भी नहीं खोल पाई है। दिल्ली में विधानसभा चुनाव में आप ने भारी बहुमत से जीत दर्ज कर रही है वही भाजपा लोकसभा चुनाव में उस तरह का प्रदर्शन कर रही है। दिल्ली के मतदाताओं ने पिछले दो विधानसभा चुनावों में आप को जबकि, लोकसभा चुनावों में भाजपा को प्राथमिकता दी है।
2015 और 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में आप के प्रदर्शन को देखते हुए यह मानना कठिन है कि आप सत्ता से बाहर भी हो सकती है। लेकिन, इसकी भी संभावना है कि भाजपा दिल्ली में फिर से 1993 की तरह सत्ता प्राप्त कर ले। इसका आधार भाजपा का कई राज्यों में अपनी चमत्कारिक प्रदर्शन है, भाजपा उन राज्यों के प्रदर्शन को दिल्ली में भी दोहरा सकती है।
असम में 2011 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने केवल 5 सीटें जीती थी, लेकिन 2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 60 सीटें जीतकर अपने गठबंधन की स्पष्ट बहुमत वाली सरकार बनाई। इससे पहले असम विधानसभा के चुनावी इतिहास में भाजपा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन मात्र 10 सीटों तक ही था। हरियाणा में 2014 में भाजपा ने 47 सीटें जीती थीं और 90 सदस्यीय विधानसभा में अपने दम पर सरकार बनाई थी। 2009 के अपने पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को महज 4 सीटें ही मिली थीं। हरियाणा विधानसभा के चुनावी इतिहास में भाजपा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन मात्र 16 सीटों तक रहा था।
त्रिपुरा में भाजपा का सफर भारतीय राजनीति में एक अनूठी मिसाल की तरह है। त्रिपुरा की 60 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के पास 2018 से पहले के चुनावों में एक भी सीट नहीं जीतने का रिकॉर्ड था। 2013 तक के चुनावों में भाजपा का केवल कदमतला-कुर्ती की सिर्फ एक विधानसभा सीट पर अपनी जमानत बचाने का इतिहास था। लेकिन, 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने त्रिपुरा में 36 सीटें जीती और स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाई। 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने दोबारा स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार त्रिपुरा में सरकार बनाई। इसलिए हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते हैं कि दिल्ली में भी भाजपा ऐसा शानदार प्रदर्शन ना दोहरा सके।
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