भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारत में 28 राज्य और 8 केंद्रशासित प्रदेश हैं। इन राज्यों या प्रदेशों में प्रत्येक साल तीन से चार राज्यों या प्रदेशों का चुनाव होना आम है। इस कारण देश हमेशा चुनाव के आगोश में समाया रहता है। 2024 में लोकसभा चुनावों के बाद हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड में विधानसभा के चुनाव कार्यकालों के अनुसार करवाए गए। केंद्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में चुनाव नए परिवेश में करवाए गए हैं।
अगर हम विगत पांच सालों में राज्यवार चुनाव देखें तो 2019 में लोकसभा का चुनाव हुआ और साथ ही चार राज्यों अप्रैल में आंध्र प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में मतदान हुआ। फिर अक्टूबर महीने में हरियाणा और महाराष्ट्र में मतदान हुआ। फिर नवंबर महीने में झारखंड में विधानसभा का चुनाव हुआ। वर्ष 2020 के फरवरी में दिल्ली विधानसभा और नवम्बर में बिहार विधानसभा के चुनाव हुए। देश और राजनीतिक दल पूरे साल चुनाव के प्रति संवेदनशील रहे।
वर्ष 2021 में मार्च अप्रैल माह में पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु वो पुडुचेरी में चुनाव हुआ। वर्ष 2022 में फरवरी मार्च में पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, मणिपुर, गोवा, उत्तराखंड, पंजाब राज्यों में जबकि, नवंबर, दिसंबर में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए। वर्ष 2023 में तीन बार अलग अलग समय काल में चुनाव हुए। फरवरी में तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में विधानसभा के चुनाव हुए वहीं मई में कर्नाटक में विधानसभा का चुनाव हुआ। फिर उसी साल नवंबर महीने में राजस्थान, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम राज्यों में चुनाव हुआ।
वर्ष 2024 में अप्रैल-मई में चार राज्यों ओडिशा, आंध्र प्रदेश, सिक्किम वो अरुणाचल प्रदेश राज्यों में विधानसभा के चुनाव लोकसभा के साथ करवाया गया। जबकि, अक्टूबर महीने में हरियाणा और केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में विधानसभा के चुनाव करवाया गया। नवंबर के महीने में महाराष्ट्र, झारखंड में चुनाव आहूत करवाया गया। हम देखते हैं कि हर साल एक लंबा अरसा सरकार का चुनाव करवाने में व्यतीत हो जाता है। इसमें चुनाव आयोग की बंदिशें लगी होती है। आदर्श आचार संहिता के कारण सरकार किसी नई महत्त्वपूर्ण नीति की घोषणा या उसका क्रियान्वयन नहीं कर सकती है। इतना ही नहीं बल्कि सत्तारूढ़ दल कोई कड़ा कदम लेने से हिचकता है क्योंकि उसके दल को भी हर साल चुनाव के अनुसार लगभग दो बार चुनावी अखाड़े में जनता का विश्वास अर्जित करना होता है। लम्बे समय तक चुनाव होने के कारण जनता को कई तरह के समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है।
भारत में वर्ष 1952 और 1957 में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही सम्पन्न करवाए गए थे। 1959 में यह चक्र तब टूटा जब जवाहरलाल नेहरू द्वारा पहली बार केंद्र ने केरल में ई. एम. एस. नम्बूदरीपाद के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार को गिराकर राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था। इसके बाद 1960 में केरल में चुनाव हुए। कांग्रेस की कमजोर होती पकड़ के कारण वर्ष 1967 तक कई राज्यों में गैर-कांग्रेसी सरकारों का गठन हो चुका था । इतना ही नहीं बल्कि दल बदल की बढ़ती घटनाओं के कारण राज्य सरकारें और विधानसभाएँ अस्थिर रहने लगीं, जिसके कारण अनेक राज्यों के विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनावों से अलग कराना मज़बूरी बन गया था।
एक देश एक चुनाव की प्रथा लागू होने के कई फायदे होंगे। एक साथ चुनाव होने से पैसों की बचत होगी, क्योंकि एक साथ चुनाव होने से कई तरह की व्यय जिसे दुबारा करना पड़ता है उससे एक बार में ही निपटा जा सकता है। सरकार उस पैसे का जनहित में कार्य जैसे स्कूल, सड़क, अस्पताल वो अन्य कार्य कर सकेगी। सुरक्षा बलों पर काम का कम तनाव रहेगा क्योंकि उनको ज्यादा समय मिलेगा, जिससे कि वो उसका सदुपयोग अपने परिवार के साथ समय बिताने में कर सकेंगे। चुनाव आचार संहिता कम लगने से विकास गतिविधि पर सरकार ज्यादा गहराई से काम कर सकेगी। लोकसभा तथा विधानसभा के चुनाव एक साथ संपन्न होने के कारण लोगों की मतदान प्रक्रिया में अधिक रूचि होगी और मतदान प्रतिशत में भी वृद्धि होगी।
एक साथ चुनाव होने के कारण सरकार तत्काल के लाभ के बदले वैसे निर्णय लेगी, जिसका दूरगामी और समाज पर अच्छा प्रभाव पड़े। इस स्थिति में राजनितिक दलों को भी कम खर्च करना पड़ेगा जिसके कारण छोटे दलों को भी बड़े दलों से बराबरी का मुकाबले का मौका मिलेगा। एक साथ चुनाव होने के कारण आदर्श आचार संहिता के लागू होने की अवधि में कमी आएगी हुए सरकार अधिक जन सरोकार के कार्य करेगी।
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