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पं. दीनदयाल उपाध्याय की संवैधानिक दृष्टि और पीएम मोदी के 11 संकल्प, भारत के समग्र विकास की राह

युगपुरुष पं. दीनदयाल उपाध्याय ने संविधान के निर्माण, निर्माण प्रक्रिया व निर्मिति पर कई लेख लिखे, इन लेखों में एक ‘राजनीतिक विश्लेषक’ की तटस्थता है।

by सार्थक शुक्ला
Dec 15, 2024, 03:46 pm IST
in भारत, छत्तीसगढ़
पं. दीनदयाल उपाध्याय

पं. दीनदयाल उपाध्याय

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युगपुरुष पं. दीनदयाल उपाध्याय ने संविधान के निर्माण, निर्माण प्रक्रिया व निर्मिति पर कई लेख लिखे, इन लेखों में एक ‘राजनीतिक विश्लेषक’ की तटस्थता है। वे विषय वस्तु को दलीय दृष्टि से देखने की बजाय राष्ट्रीय हित की कसौटियों पर कसकर लिखते रहे। पं. दीनदयाल उपाध्याय की सजग राष्ट्रीय दृष्टि उनके लेखों में प्रकट होती है।

वरिष्ठ पत्रकार श्री रामबहादुर राय जी ने अपनी पुस्तक ‘भारतीय संविधान – अनकही कहानी’ में श्रद्धेय दीनदयाल जी के विभिन्न संविधान केन्द्रित विभिन्न लेखों का उल्लेख करते हुए कहा है कि “पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने संवैधानिक राष्ट्रीयता की राह दिखलाई”|

संविधान पर लिखे हुए अपने कई लेखों में से एक लेख में दीनदयाल जी ने संविधान सभा को पाँच सलाह दी थीं –

एक, भारत की आत्मा का हनन न होने दें।
दो, बौद्धिक दासता के फंदे में न फँस जाएँ।
तीन, मानवीय अधिकार और स्वातंत्र्य चतुष्ट्य को सुरक्षित रखें। भारतीय जनता के सर्वतोभावी विकास के मार्ग खुले रखें।
चार, भारत को सर्वरूपेण शक्तिशाली बना दें।
पाँच, भारतीय एकता की प्रतिष्ठापना करें।

उनके इन सुझावों पर ‘संविधान सभा’ ने ध्यान दिया भी, लेकिन सर्वोच्च पदों पर बैठे अंग्रेजी मानसिकता वाले कई कांग्रेसियों ने ‘सांस्कृतिक भारत’ के निर्माण में शुरू से ही रोड़े लगाने शुरू कर दिए थे, और समय के आगे बढ़ने के साथ-साथ भी स्वयं को संविधान से भी ऊपर मानने वाले मतिभ्रष्ट ‘परिवार’ ने भारतीय संविधान के मूल विचारों की व्यापकता को शायद नहीं समझा, लेकिन भारतीय संविधान के ‘अमृत वर्ष’ पर लोकसभा में देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने चर्चा के दौरान जिन 11 संकल्पों को प्रस्तुत किया है, वे निश्चित रूप से संविधान की मूल भावना के अनुरूप श्रद्धेय पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के दिखाए हुए ‘संवैधानिक राष्ट्रीयता’ के मार्ग पर ही अग्रसर होते हुए दिखलाई पड़ते हैं | देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री मोदी ने जो 11 संकल्प प्रस्तुत किये वे निम्नवत हैं –

चाहे नागरिक हो या सरकार हो…सभी अपने कर्तव्यों का पालन करें।

यह संकल्प इस तथ्य को रेखांकित करता है कि राष्ट्र की प्रगति और स्थिरता दोनों ही नागरिकों और सरकार की जिम्मेदारियों पर निर्भर करती हैं। एक जिम्मेदार नागरिक को केवल अपने अधिकारों का नहीं, बल्कि अपने कर्तव्यों का भी पालन करना चाहिए। हमारा संविधान अपने नागरिकों से कर्तव्यों के पालन की अपेक्षा रखता है, समाज में गरिमा, सुचिता व सम्मान बनाए रखें, और राष्ट्र की प्रगति में सक्रिय रूप से योगदान दें। इसके अलावा, सरकार का भी यह कर्तव्य है कि वह न केवल नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करे, बल्कि उन कर्तव्यों को भी निभाए, जो नागरिक समाज के लिए उसकी जिम्मेदारी हैं। यह कर्तव्यों का पालन सरकार द्वारा प्रभावी नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से किया जाता है, जो सर्वसमाज की चिंता करते हुए अन्त्योदय के मंत्र का भी अनुपालन करते हैं और नागरिकों को भी उनके कर्तव्यों के प्रति जागरूक करते हैं। जब दोनों, नागरिक और सरकार, अपनी जिम्मेदारियों को ईमानदारी से निभाएंगे, तो समाज में न केवल अनुशासन, शांति व सुचिता बनी रहेगी, बल्कि समाज का समग्र विकास भी सुनिश्चित होगा। यह संकल्प नागरिकों और सरकार के बीच सहयोग और सामंजस्य की आवश्यकता को व्यक्त करता है, ताकि राष्ट्र का समग्र उत्थान हो।

हर क्षेत्र, हर समाज को विकास का लाभ मिले, सबका साथ-सबका विकास हो।

माननीय प्रधानमंत्री जी का यह संकल्प राष्ट्र के विकास में समावेशिता और समानता की भावना को बढ़ावा देता है। “सबका साथ, सबका विकास” का यह सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि समाज का कोई भी वर्ग, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, क्षेत्र या समाज से हो, विकास से वंचित न रहे। भारत एक विविधता से भरा हुआ देश है, जिसमें विभिन्न समुदायों, वर्गों, और क्षेत्रों की अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि विकास की योजनाएं और नीतियां इन सभी वर्गों और क्षेत्रों के हित में हों। उदाहरण के लिए, अगर शहरी क्षेत्रों में विकास हो रहा है, तो यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि ग्रामीण, आदिवासी और पिछड़े क्षेत्र भी विकास की दौड़ का हिस्सा बनें। सरकारी योजनाओं में इन क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि देश के हर हिस्से में समान अवसर और समृद्धि का लाभ पहुंच सके। इसके अलावा, महिलाएं, दलित, पिछड़े वर्ग और अन्य कमजोर समूहों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करना अत्यंत आवश्यक है। जब सभी वर्गों और क्षेत्रों को समान विकास का लाभ मिलेगा, तो न केवल असमानताएं कम होंगी, बल्कि समग्र राष्ट्र की शक्ति और समृद्धि भी बढ़ेगी।

भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस हो, भ्रष्टाचारी की सामाजिक स्वीकार्यता न हो।

भ्रष्टाचार एक ऐसी समस्या है, जो समाज में असमानता और असंतोष पैदा करती है, और यह राष्ट्र के विकास में भी एक बड़ी बाधा है। इस संकल्प के पीछे माननीय प्रधानमंत्री जी का उद्देश्य है कि भ्रष्टाचार के प्रति समाज में कोई सहिष्णुता नहीं होनी चाहिए। जब तक भ्रष्टाचार को पूरी तरह से खत्म नहीं किया जाता, तब तक कोई भी समाज न्याय और समानता की ओर नहीं बढ़ सकता। इस “जीरो टॉलरेंस” नीति का मतलब है कि सरकार और समाज दोनों को भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाने चाहिए। यदि किसी व्यक्ति को भ्रष्टाचार में लिप्त पाया जाता है, तो उसे न केवल कानूनी दंड का सामना करना चाहिए, बल्कि उसे समाज से भी बहिष्कृत किया जाना चाहिए। इसके माध्यम से यह संदेश दिया जाएगा कि भ्रष्टाचारियों के लिए सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं है। इसके अलावा, सरकार को भ्रष्टाचार पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए और पारदर्शी प्रक्रियाओं को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे सार्वजनिक संसाधनों का सही उपयोग हो सके। जब भ्रष्टाचार का कोई स्थान नहीं रहेगा, तो सरकारी नीतियां और योजनाएं बिना किसी रुकावट के सभी नागरिकों तक पहुँच सकेंगी, और इससे समाज में विश्वास और न्याय का माहौल बनेगा। हालांकि श्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही देश में भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचारियों के प्रति सख्त रुख अपनाया जा रहा है, जिसके कई प्रत्यक्ष प्रमाण भी हैं|

देश के कानून, देश के नियम…देश की परंपराओं के पालन में देश के नागरिकों को गर्व होना चाहिए, गर्व का भाव हो।

कानून, संविधान और देश की परंपराओं का पालन केवल एक जिम्मेदार नागरिक की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि यह देश के प्रति सम्मान और गर्व का भी प्रतीक है। हमारे संविधान ने हमें जो अधिकार और कर्तव्य प्रदान किए हैं, उनका पालन करना चाहिए ताकि हम एक सुव्यवस्थित, समान और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर सकें। हम नागरिकों को अपने देश के नियमों और परंपराओं का पालन करते हुए गर्व महसूस करना चाहिए, क्योंकि ये हमें राष्ट्रीय पहचान, संस्कृति और समृद्धि से जोड़ते हैं। यह गर्व एक आत्म-गौरव का हिस्सा होना चाहिए, जो हमें देश की एकता और अखंडता की ओर प्रेरित करता है। जब हम अपने देश की परंपराओं का सम्मान करते हैं और संविधान के तहत दिए गए अधिकारों का प्रयोग करते हैं, तो हम न केवल अपने लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मजबूत और न्यायपूर्ण समाज की नींव रखते हैं। यह संकल्प इस बात की आवश्यकता को रेखांकित करता है कि देश के प्रति गर्व और सम्मान की भावना को हर नागरिक में जागृत किया जाए, जिससे समाज में अनुशासन, सभ्यता और समृद्धि का माहौल बने।

गुलामी की मानसिकता से मुक्ति हो, देश की विरासत पर गर्व हो।

भारत का इतिहास संघर्षों से भरा रहा है, लेकिन अब हमें गुलामी की मानसिकता से मुक्ति प्राप्त करनी है। गुलामी के वर्षों के दौरान भारतीय समाज पर एक मानसिक दबाव बना हुआ था, जो आज भी कई पहलुओं में विद्यमान है। माननीय प्रधानमंत्री जी के इस संकल्प का उद्देश्य नागरिकों को आत्म-गौरव और आत्मसम्मान की भावना से भरपूर करना है, ताकि वे अपनी संस्कृति, इतिहास और विरासत पर गर्व कर सकें। हमें यह समझना चाहिए कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति दुनिया में अनूठी है। हमारे पास हजारों वर्षों की ज्ञान परंपरा है, जिसे हमें संरक्षित कर बढ़ावा देना चाहिए। इस मानसिकता से मुक्ति तभी संभव है जब हम अपने इतिहास और संस्कृति के गौरव को स्वीकार करें, और उसे दुनिया के सामने गर्व के साथ प्रस्तुत करें। जब हम अपनी विरासत पर गर्व करेंगे, तो हम अपनी पहचान को लेकर आत्मविश्वासी होंगे और अपनी आने वाली पीढ़ी को भी आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता का संदेश देंगे।

देश की राजनीति को परिवारवाद से मुक्ति मिले। परिवारवाद राजनीति में एक ऐसी कड़ी है, जो सत्ता के लिए योग्यता की बजाय पारिवारिक संबंधों को प्रमुख बनाती है। जब राजनीति किसी विशेष परिवार के प्रभाव में सीमित हो जाती है, तो यह लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को अवश्यम्भावी रूप से कमजोर करती है।

इस संकल्प का उद्देश्य राजनीति में एक पारदर्शिता लाना है, ताकि जो व्यक्ति अपनी योग्यता और कड़ी मेहनत से समाज की सेवा करना चाहता है, उसे उचित अवसर मिल सकें। यह परिवारवाद की राजनीति से मुक्त करने के लिए आवश्यक है कि चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी और सबके लिए समान अवसर प्रदान करने वाली बनाएं। इससे समाज में यह विश्वास स्थापित होगा कि किसी भी राजनीतिक पद पर पहुंचने के लिए किसी के पास सही विचार, योग्यता और नीयत होनी चाहिए, न कि केवल पारिवारिक संबंध। जब राजनीति में परिवारवाद खत्म होगा, तो यह न केवल लोकतंत्र को मजबूत करेगा, बल्कि यह देश के विभिन्न समुदायों और वर्गों के लिए अधिक अवसर और न्याय सुनिश्चित करेगा। इसके परिणामस्वरूप, एक समान और निष्पक्ष राजनीतिक वातावरण बनेगा, जो देश के विकास में मदद करेगा। हम सभी जानते हैं कि आज देश की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जनजातीय समाज से हैं और राष्ट्र के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन हैं, वे प्रथम पीढ़ी की राजनीतिज्ञ हैं, इसी तरह देश के उपराष्ट्रपति श्रीमान जगदीप धनखड जी, देश के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी सहित कई नेता ऐसे हैं जो भारत के संविधान के कारण ही आज प्रथम पीढ़ी के राजनीतिज्ञ बनकर न केवल उभरे बल्कि राष्ट्र के सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर आसीन भी हुए | पिछले कुछ समय में माननीय प्रधानमंत्री जी राजनीति में ‘फ्रेश ब्लड’ की आवश्यकता को भी रेखांकित कर चुके हैं|

संविधान का सम्मान हो, राजनीति स्वार्थ के लिए संविधान को हथियार न बनाया जाए।

संविधान भारत के लोकतंत्र और सामाजिक न्याय की आधारशिला है। माननीय प्रधानमंत्री जी के इस संकल्प को राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर देखना चाहिए जिसका उद्देश्य संविधान का सम्मान करना है और यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी राजनीतिक दल या नेता द्वारा संविधान का इस्तेमाल केवल अपने स्वार्थों के लिए न किया जाए। संविधान का उल्लंघन समाज में असंतोष पैदा कर सकता है और इससे लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता पर भी असर पड़ता है। उदहारण के लिए जेब में सविधान रखकर विपक्षी नेताओं चलना, निश्चित रूप से संविधान की गरिमा को कम करने वाला कृत्य है। राजनीतिक दलों को संविधान की भावना का पालन करते हुए अपनी नीतियाँ भी बनानी चाहिए। संविधान एक सशक्त और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिए मार्गदर्शक है, यह संकल्प नागरिकों और राजनीतिक नेताओं से अपेक्षा करता है कि वे संविधान के प्रति सम्मान और निष्ठा बनाए रखें, और इसे केवल व्यक्तिगत, दलगत या अन्य राजनीतिक स्वार्थों के लिए इस्तेमाल न करें।

संविधान की भावना के प्रति समर्पण रखते हुए जिनको आरक्षण मिल रहा है उसको न छीना जाए और धर्म के आधार पर आरक्षण की हर कोशिश पर रोक लगे।

भारतीय संविधान ने समाज के पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए आरक्षण का प्रावधान किया है, ताकि उन्हें समान अवसर मिल सकें और वे समाज में प्रगति कर सकें। हालांकि, आरक्षण का उद्देश्य समाज में समानता लाना है, और इसे धर्म या जाति के आधार पर विभाजित करने से समाज में और अधिक विभाजन हो सकता है। इस महत्त्वपूर्ण संकल्प का उद्देश्य यह है कि जो लोग संविधान के तहत आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं, उनके इस हक को छीनने की कोई कोशिश नहीं की जानी चाहिए। साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि धर्म या जाति के आधार पर आरक्षण की कोई नई कोशिश न हो, क्योंकि इससे समाज में और अधिक असमानताएं उत्पन्न हो सकती हैं। आरक्षण का उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों को समान अवसर देना है, और इसे केवल संवैधानिक व्यवस्था के अनुसारसामाजिक, शैक्षिक व आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर लागू किया जाना चाहिए, न कि धर्म या जाति के आधार पर। यह संकल्प संविधान की भावना को बनाए रखते हुए, एक समान और न्यायपूर्ण समाज बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

Women led development में भारत दुनिया के लिए मिसाल बने।

महिलाओं को सशक्त बनाना, उनकी क्षमताओं को पहचाना और उन्हें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक निर्णयों में शामिल करना, यह एक मजबूत राष्ट्र के निर्माण की कुंजी है। “Women-led development” का उद्देश्य महिला शक्ति और नेतृत्व के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन लाना है। जब महिलाएं अपने अधिकारों और कर्तव्यों का पालन करती हैं, और नेतृत्व की भूमिका निभाती हैं, तो समाज का विकास भी तेजी से होता है। महिला सशक्तिकरण से केवल महिलाओं को ही लाभ नहीं होता, बल्कि यह समग्र समाज और राष्ट्र के लिए लाभकारी होता है। उदाहरण के तौर पर, जब महिलाएं आर्थिक और राजनीतिक निर्णयों में शामिल होती हैं, तो उनका दृष्टिकोण और निर्णय समाज को अधिक न्यायपूर्ण, समावेशी और समृद्ध बनाते हैं। यह संकल्प भारत को महिला नेतृत्व में विकास के क्षेत्र में एक वैश्विक आदर्श बनाने की दिशा में है, ताकि अन्य देशों को भी भारत से प्रेरणा मिले और वे महिला सशक्तिकरण के मामलों में भारत की नीतियों को अपनाएं।

राज्य के विकास से राष्ट्र का विकास… ये हमारा विकास का मंत्र हो।

माननीय प्रधानमंत्री जी का यह संकल्प यह समझाने की कोशिश करता है कि एक राष्ट्र का विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक उसके सभी राज्य विकसित न हों। केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंधों के बिना कोई भी राष्ट्र अपने विकास के लक्ष्यों को पूरा नहीं कर सकता। राज्य सरकारों को अपनी समस्याओं के समाधान के लिए काम करना चाहिए, और उनकी यह सफलता राष्ट्र के विकास में योगदान करेगी। राज्यों के भीतर सुधार और विकास के कार्यों से न केवल स्थानीय स्तर पर बदलाव आएगा, बल्कि यह राष्ट्रीय स्तर पर भी समृद्धि और प्रगति के संकेत देगा। राज्य का हर विकास, चाहे वह शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी सुविधाओं या रोजगार के अवसरों में हो, पूरे राष्ट्र की ताकत को बढ़ाएगा। इस संकल्प के माध्यम से यह संदेश दिया जाता है कि ‘सहकारी संघवाद’ के मूलमंत्र से ही राष्ट्र का समग्र विकास संभव है।

एक भारत, श्रेष्ठ भारत का ध्येय सर्वोपरि हो।

“एक भारत, श्रेष्ठ भारत” का यह संकल्प हमारे राष्ट्रीय एकता और अखंडता का प्रतीक है। इस विचार का उद्देश्य यह है कि भारत की विविधताओं में एकता हो, और हम अपनी भौतिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक विभाजन से ऊपर उठकर एक सशक्त राष्ट्र के रूप में उभरें। भारत की विविधता, चाहे वह भाषाओं, धर्मों, जातियों या संस्कृतियों में हो, हमें एकजुट करने का माध्यम होनी चाहिए, न कि विभाजन का। यह संकल्प भारत को एक ऐसा देश बनाने का लक्ष्य रखता है, जो अपनी एकता और अखंडता में सर्वोत्तम हो, और जो दुनिया के लिए एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करे। जब हम “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” के ध्येय को सर्वोपरि मानेंगे, तो यह हमारे लिए एक मजबूत और समृद्ध राष्ट्र का निर्माण करेगा, जो दुनिया में अपनी भूमिका को सम्मानजनक तरीके से निभाए।

श्रद्धेय दीनदयाल उपाध्याय जी की दिखाई हुई राह पर आगे बढ़ते हुए माननीय प्रधानमंत्री के 11 संकल्प हमारे भारत को एक ‘सशक्त राष्ट्र’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में आगे बढ़ते हुए ‘संवैधानिक राष्ट्रीयता’ के उद्घोषक हैं, यदि देश के सभी नागरिक इन संकल्पों का पालन पूरी निष्ठा के साथ करें तो यही ‘संविधान’ के प्रति राष्ट्र की कृतज्ञता होगी।

Topics: Indian Constitutionभारतीय संविधानपं.दीनदयाल उपाध्याय की संवैधानिक दृष्टिपीएम मोदी के 11 संकल्पसंवैधानिक राष्ट्रीयता11 resolutions of PM Modiपं. दीनदयाल उपाध्याय
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