मोदी सरकार ने देश में “एक राष्ट्र, एक चुनाव” की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाते हुए 129वें संविधान संशोधन विधेयक को केंद्रीय कैबिनेट से मंजूरी दी जा चुकी है। इस पहल के तहत लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने की योजना है। माना जा रहा है कि यह विधेयक संसद के चाल रहे शीतकालीन सत्र में ही पेश किया जाएगा, जो 20 दिसंबर को समाप्त होगा।
समिति और रिपोर्ट
“एक राष्ट्र, एक चुनाव” की संकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था। इस समिति ने 14 मार्च को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। रिपोर्ट के आधार पर, प्रस्तावित विधेयक में इस प्रक्रिया को वर्ष 2034 से लागू करने की योजना बनाई गई है। इसका अर्थ है कि 2029 के लोकसभा चुनाव के बाद, राष्ट्रपति विधिक रूप से इस नीति को लागू करने की समय-सीमा तय करेंगे।
संवैधानिक संशोधन
विधेयक में संविधान के कई अनुच्छेदों में संशोधन का प्रस्ताव है। इनमें अनुच्छेद 82(A), 83, 172 और 327 जैसे प्रावधान शामिल हैं। अनुच्छेद 82(A) के तहत लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। अनुच्छेद 83 में संसद के दोनों सदनों के कार्यकाल के प्रावधान में बदलाव किया जाएगा। अनुच्छेद 172 और 327 में संशोधन से विधानसभा चुनावों के संदर्भ में संसद को नियम बनाने का अधिकार दिया जाएगा।
प्रक्रिया और कार्यान्वयन
प्रस्तावित विधेयक के अनुसार, यदि किसी लोकसभा या विधानसभा का कार्यकाल समय से पहले समाप्त होता है, तो इसे संसद या विधानसभा भंग करना होगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि सभी चुनाव तय समय पर एक साथ हो सकें।
संसद में विधेयक की स्थिति
सूत्रों के अनुसार, विधेयक को संसद में वित्तीय अनुदान संबंधित कामकाज पूरा होने के बाद पेश किया जाएगा। हालांकि, सोमवार को लोकसभा की संशोधित कार्यसूची में यह विधेयक शामिल नहीं था। माना जा रहा है कि इसे “अनुपूरक कार्य सूची” के माध्यम से सदन में पेश किया जा सकता है। संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र के समाप्त होने से पहले इस विधेयक पर चर्चा होने की संभावना जताई जा रही है।
आगामी प्रक्रिया और चुनौतियाँ
विश्लेषकों का मानना है कि “एक राष्ट्र, एक चुनाव” योजना के कार्यान्वयन से देश में चुनावी प्रक्रिया में व्यापक बदलाव आएंगे। हालांकि, इस पहल के सामने कई संवैधानिक और प्रशासनिक चुनौतियाँ भी हैं। इस विधेयक के लागू होने से केंद्र और राज्यों के बीच तालमेल और पारदर्शिता बढ़ेगी, लेकिन इसके लिए राजनीतिक सहमति और व्यापक तैयारी की आवश्यकता होगी।
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