पंजाब-हरियाणा के शम्भू बार्डर पर कुछ किसान दिल्ली कूच की जिद्द किए पिछले लगभग दस महीनों से रास्ता रोक कर धरने पर बैठेक हैं और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी मांग रहे हैं। इस मांग के समर्थन में एक किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल भूख हड़ताल पर हैं पर दूसरी ओर किसान नेता ही सलाह दे रहे हैं कि हर मुद्दे पर दिल्ली कूच की बात करना सही नहीं।
वहीं अब आंदोलन के बीच किसान यूनियनों के मतभेद खुलकर सामने आए हैं। संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) के नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी कानून को लेकर आमरण अनशन पर बैठे हैं। शंभू बॉर्डर से किसान दिल्ली कूच पर अड़े हैं। वहीं, पंजाब के सबसे बड़े किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन एकता उगराहां के प्रधान जोगिंदर सिंह ने कहा है कि हर मुद्दे पर दिल्ली कूच करना सही नहीं है। हर बार हमें 2020-21 की तरह जनसमर्थन मिल जाएगा, यह सोचना भी गलत हैं।
एक इलेक्ट्रानिक चैनल पर उगराहां ने कहा कि 2020-21 में लड़ाई तीन कृषि कानूनों को वापस करवाने को लेकर थी। एमएसपी की गारंटी का प्रस्ताव तो बाद में जोड़ा गया। एमएसपी को कानून बनाना कोई बच्चों का खेल नहीं हैं। एक-दो राज्य मिलकर इस लड़ाई को नहीं लड़ सकते हैं।
बता दें कि पंजाब में 34 किसान संगठन हैं। इन सभी किसान संगठनों की अपनी ही विचारधारा है। यही कारण हैं कि यह संगठन कभी भी एक मंच पर नहीं आ पाते हैं। दिल्ली कूच के लिए अड़े पंजाब किसान मजदूर संघर्ष समित के प्रधान सरवन सिंह पंधेर ने आंदोलन के दस माह पूरे होने पर शंभू बॉर्डर पर बड़ी संख्या में लोगों के जुटने का आह्वान किया था, पर आज यहां किसान नहीं जुटे। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि आंदोलन बेअसर होता जा रहा है।
वहीं, उगराहां ने कहा कि हम मुद्दों का समर्थन करते हैं, लेकिन तरीके का नहीं क्योंकि हरेक संगठन का अपना ही लाइन आफ एक्शन है। डल्लेवाल-पंधेर के आंदोलन पर कहा कि इसका जवाब वही दे सकते हैं।
शंभू बॉर्डर से शनिवार को दोपहर 12 बजे एक बार फिर पंजाब के 101 किसानों के जत्थे ने दिल्ली कूच करने का प्रयास किया। हरियाणा पुलिस ने रोका तो किसानों ने जबरन आगे बढऩे की कोशिश की। इस पर हरियाणा पुलिस ने पानी की बौछार की। आंसू गैस के 20 से ज्यादा गोले भी दागे। प्रदर्शनकारियों को मजबूर हो कर वापिस लौटना पड़ा।
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