गत दिनों अमदाबाद स्थित गुजरात विद्यापीठ में कर्णावती ज्ञान कुंभ का आयोजन हुआ। इसमें देशभर के विद्वानों ने भाग लिया। इसका उद्घाटन गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने किया।
उन्होंने कहा कि अंग्रेज तो चले गए, लेकिन अंग्रेजियत आज भी हमारे अंदर पैर जमा कर बैठी है, इससे आप समझ सकते हैं कि शिक्षा कितना प्रभाव डाल सकती है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र का निर्माण ईंट-पत्थर के भवनों, रेल की पटरियां बिछाने से नहीं, बल्कि सशक्त, सुसंस्कृत युवा पीढ़ी तैयार करने से होगा।
भारत में अनिवार्य गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था थी। छह वर्ष की आयु के बाद माता-पिता बालकों को घर में नहीं रख सकते थे, उसे गुरुकुल या पाठशाला में भेजना अनिवार्य था। भारत पूरे विश्व में आदिकाल से ही संपूर्ण विधाओं का केंद्र था, इसीलिए यह देश विश्व गुरु कहलाता था।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव डॉ. अतुल कोठारी ने कहा कि न्यास शिक्षा में बदलाव के लिए अनेक सफल प्रयोग करता रहा है। देशभर के शिक्षक, शिक्षाविद् और शिक्षा संस्थानों को संगठित करने के लिए 2018 से ज्ञान कुंभ का आयोजन प्रारंभ किया गया। देश में बौद्धिक प्रतिभा की कमी नहीं है, हम उन्हें एक साथ चलाने के प्रयास कर रहे हैं।
स्वागत भाषण गुजरात विद्यापीठ के कुलगुरु डॉ. हर्षद पटेल ने दिया। संचालक थे हितांश। ज्ञान महाकुंभ के संयोजक संजय स्वामी, गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष भाग्येश झा, गुजरात प्रांत संयोजक हरेश बारोट भी मंच पर उपस्थित रहे।
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