विश्लेषण

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल : मल्टी स्टारर फिल्मों का तिलिस्म तोड़तीं लघु फिल्में

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में 500 फिल्मों का प्रदर्शन। लघु फिल्में और फीचर फिल्मों ने दर्शकों का दिल जीता। पढ़ें इस बार के फिल्म फेस्टिवल की खास बातें।

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रंजना यादव (भूतपूर्व हिंदी समाचार वाचिका, दूरदर्शन, दिल्ली)

इस वर्ष चल रहे विभिन्न फिल्म फेस्टिवल में करीब 110 देशों से 5000 राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फिल्में आईं, जिनमें लघु फिल्में, एनिमेशन फिल्में और ढाई घंटे की फीचर फिल्में शामिल हैं। कुल मिलाकर लगभग 500 फीचर फिल्में चुनी गई हैं। देश के विभिन्न शहरों मुम्बई, गोवा, दिल्ली एवं 18 शहरों में 3 माह तक चलने वाले विभिन्न फेस्टिवल का समापन मार्च 2025 में होगा।

देशभर के हजारों दर्शकों, फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों के लिए इन दिनों राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय “फिल्म फेस्टिवल” आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इसमें अंतरराष्ट्रीय फिल्म फ्रांस की चार मिनट की लघु फिल्म से लेकर ढाई घंटे की एनिमेशन फिल्म और फीचर फिल्में चयनित की गई हैं। कुल मिलाकर “फिल्म फेस्टिवल” खूबसूरत फिल्मों का गुलदस्ता है जो अपनी खूबसूरती और खुशबू से समाज के हर वर्ग को लुभा रहा है।

यह फिल्म फेस्टिवल लघु फिल्म निर्माताओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और मील का पत्थर साबित हो रहे हैं। यह कम बजट की लघु फिल्मों और फीचर फिल्मों को मंच प्रदान करते हैं। फिल्म फेस्टिवल नए फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों को एक नई पहचान देते हैं और नई चुनौतियों के लिए उन्हें हौसला देते हैं।

लघु फिल्मों का प्रभाव

फ्रांस की अंतरराष्ट्रीय फिल्म “आन द ब्रिज” मात्र 4 मिनट की है, जिसमें एक भी डायलॉग नहीं है। अभिनेता केवल अपनी बॉडी लैंग्वेज से पूरी बात समझा देता है। बिल्कुल सादगी से यह फिल्म बहुत कुछ कह जाती है।

शॉर्ट फिल्मों की इसी कड़ी में 30-40 मिनट की भी फिल्में हैं, जैसे-

  • “भूख”
  • “हप्पन सांगवाला”
  • हरियाणवी फिल्म “धारा का टेम” – यह हरियाणा की घरेलू महिलाओं की जीवनशैली का जीवंत उदाहरण है। इसमें गांव-देहात की सीधी-सादी गृहणी का जीवन दिखाया गया है। खेत में बिच्छू के काटने से अचेतन अवस्था में रहते हुए भी गोधूलि बेला में उसे “धार का टेम” यानी गाय का दूध निकालने का समय याद है।
    “हरियाणवी भाषा” में बनी यह बेहद खूबसूरत शॉर्ट फिल्म पहली बार किसी मंच तक पहुंची है। इस फिल्म में स्त्री के जीवन को इतनी संवेदनशीलता से दिखा देना निर्माता, निर्देशक और कलाकारों की कला का अनूठा संगम है।

फीचर फिल्मों का प्रभाव

ढाई घंटे की फीचर फिल्मों में सबसे पहले “ईरानी चाय” फिल्म ध्यान में आती है। यह एक थ्रिलर फिल्म है जो आखिरी क्षण तक दर्शकों को अपनी दमदार स्क्रिप्ट के जरिए बांधे रखती है।

  • यह केवल दो लोकेशन में शूट हुई है।
  • बिना किसी फूहड़ नाच-गाने और कानफोड़ू संगीत के यह फिल्म दर्शकों की उत्सुकता बनाए रखती है।

इसी तरह फीचर फिल्में जैसे-

  • “इन्वेस्टीगेटर”
  • “बंगाल 1947”
  • “वी आर फहीम एंड करुण” (हिंदी-कश्मीरी फिल्म)
  • आसमी फिल्म “विलेज रॉकस्टार” भी दर्शकों को आकर्षित करती हैं।

अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में –

  • “एनीमेशन फिल्म” – “अप्पू एलीफेंट लाइफ मैटर”
  • जर्मन फिल्म “फाल फ्रॉम द ग्रेस”
  • “सीरियल डेटर” अपनी सरलता के लिए याद की जाएंगी।

सिनेमा को गांव-गांव तक ले जाने की पहल

इन “फिल्म फेस्टिवल्स” की खास बात यह है कि करोड़ों रुपये की लागत और शोर-शराबे से भरी फीचर फिल्में भीड़ को थिएटर तक लाने में नाकामयाब हो रही हैं। वहीं, कम बजट की लघु और फीचर फिल्में भारी संख्या में लोगों को थिएटर तक खींचने में सफल हो रही हैं।

“घुमंतु फिल्म फेस्टिवल” सिनेमा को लोगों के घरों, गांव और देहात तक ले जाता है। 18 शहरों में फिल्मों के प्रदर्शन से वे स्थानीय लोग, जो फिल्म फेस्टिवल में नहीं पहुंच पाते हैं, आसानी से इसका लाभ ले सकते हैं। यही इस फिल्म फेस्टिवल की सबसे बड़ी सफलता और अनूठापन है।

महिला फिल्म निर्माताओं का बढ़ता योगदान

इन फेस्टिवल्स ने “महिला फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों” की काबिलियत पर भरोसा जताया और उनका हौसला बढ़ाया। इसके परिणामस्वरूप महिलाओं की भागीदारी फिल्म निर्माण में काफी बढ़ गई है।

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