भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की 1879 की रिपोर्ट में हरिहर मंदिर के बारे में कई चौंकाने वाले तथ्य हैं एएसआइ के तत्कालीन अधिकारी ए. सी. एल. कार्लाइल द्वारा तैयार रिपोर्ट में सम्भल क्षेत्र और इस स्थल का विस्तृत सर्वेक्षण दर्ज है। इसके अनुसार, ‘‘सम्भल का सतयुग में नाम ‘सब्रित’ या सब्रत और सम्भलेश्वर था। त्रेतायुग में इसे महदगिरि और द्वापर में पिंगला कहा जाता था। कलियुग में इसे वर्तमान नाम सम्भल या संस्कृत में सम्भल-ग्राम मिला। शहर के दक्षिण-पूर्व में सुरतकाल खेड़ा है।
यह नाम चंद्र जाति के राजा सत्यवान के पुत्र राजा सुरथल के नाम पर रखा गया था। सुरथल खेड़ा की लंबाई उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तक 1,200 फीट और चौड़ाई 1,000 फीट मापी गई। इसके दक्षिण-पश्चिम की ओर एक और बड़ा खेड़ा है, जिस पर एक गांव है जिसे ‘राजा सदून-का-खेड़ा’ या ‘सदुंगगढ़’ कहा जाता है।
मुसलमान जामा मस्जिद को बाबर के समय का बताते हैं और इसके अंदर एक शिलालेख की बात करते हैं, जिस पर बाबर का नाम है। लेकिन सम्भल के कई मुसलमानों ने मेरे सामने कबूल किया कि शिलालेख नकली है। उन्होंने मंदिर पर बलपूर्वक कब्जा किया था।
मस्जिद के अंदर और बाहर के खंभे पुराने हिंदू मंदिरों की तरह हैं, जिन्हें प्लास्टर से छिपाने का प्रयास किया गया है। एक खंभे से प्लास्टर हटने पर लाल रंग के प्राचीन खंभे दिखाई दिए, जो हिंदू मंदिरों में इस्तेमाल होने वाले डिजाइन और संरचना के थे।
मस्जिद में एक शिलालेख है, जिसमें लिखा है कि इसका निर्माण 933 हिजरी में मीर हिंदू बेग ने पूरा किया था। मीर हिंदू बेग बाबर का दरबारी था, जिसने एक हिंदू मंदिर को मस्जिद में परिवर्तित किया। यह शिलालेख इस बात का प्रमाण है कि मस्जिद का निर्माण किसी हिंदू धार्मिक स्थल को बदलकर किया गया था। मस्जिद के खंभे हिंदू वास्तुकला के हैं।
वह मुसलमानों द्वारा बनाए गए खंभों से अलग हैं। ये खंभे विशुद्ध हिंदू वास्तुकला का प्रतीक हैं। गुंबद का जीर्णोद्धार हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल में हुआ था मस्जिद की संरचना में हिंदू मंदिर के कई चिह्न पाए गए, जिन्हें बाद में प्लास्टर से ढक दिया गया।’’
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