भारत ने वर्ष 2008 में मुंबई हमले को देखा। पाकिस्तानी आतंकी कसाब ने अपने साथियों के साथ निर्दोष लोगों को भून दिया। इसके बावजूद उसे कानूनी परामर्श दिया गया। जबकि बांग्लादेश में निर्दोष भिक्षु पर देशद्रोह का आरोप लगाकर जेल में ठूंस दिया गया। वहां हिंदुओं पर अत्याचार जारी है। प्रख्यात अभिनेता और आंध्र प्रदेश के डिप्टी सीएम पवन कल्याण ने सोशल मीडिया पर इस संबंध में एक पोस्ट किया है।
पवन कल्याण ने लिखा कि 26 नवंबर 2008 की रात मुंबई पर हुए आतंकी हमले ने पूरे भारत को झकझोर कर रख दिया। इस भयानक हमले में 166 लोगों की जान गई, जिनमें 26 विदेशी नागरिक और 20 सुरक्षा बल के सदस्य शामिल थे। इस हमले में पकड़ा गया एकमात्र आतंकवादी अजमल कसाब था, जो लश्कर-ए-तैयबा द्वारा प्रशिक्षित था और उसने अपने अपराधों को स्वीकार किया।
कसाब पर भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने, हत्या और आतंकवाद के 86 गंभीर आरोप लगाए गए। लेकिन भारत ने न्याय और मानवता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए यह सुनिश्चित किया कि उसके साथ निष्पक्षता और कानून की हर प्रक्रिया का पालन हो।
अदालत में कसाब को दी गई सुविधाएं-
- कानूनी परामर्श और मजबूत बचाव।
- भाषा संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए दुभाषिए की व्यवस्था।
- मुकदमे के दौरान उसके जीवन की सुरक्षा।
- चिकित्सा सुविधाएं, चाहे उसका अपराध कितना भी भयानक क्यों न हो।
कसाब का मुकदमा नौ महीने तक चला। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने उसकी मृत्युदंड की सजा को बरकरार रखा, जिसे बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने भी पुष्टि की। अंतिम चरण में, कसाब को भारत के राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर करने का भी अधिकार दिया गया।
21 नवंबर 2012 को कसाब को फांसी दी गई। लेकिन इस पूरे मामले ने भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की सहिष्णुता और न्याय के प्रति उसकी गहरी प्रतिबद्धता को उजागर किया।
बांग्लादेश में हिन्दू भिक्षु पर अत्याचार
अब तुलना करें बांग्लादेश में हिंदू भिक्षु चिन्मय कृष्ण प्रभु के साथ हुए अन्यायपूर्ण व्यवहार से। उन्होंने हिंदू अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई, जो लंबे समय से प्रताड़ना का सामना कर रहे हैं। उनकी इस साहसिक पहल के लिए उन्हें ‘देशद्रोह’ के झूठे आरोपों में गिरफ्तार कर लिया गया।
चिन्मय कृष्ण प्रभु को न्याय से वंचित किया गया-
- कानूनी सहायता नहीं मिली।
- अदालत में कोई प्रतिनिधित्व नहीं।
- निष्पक्ष सुनवाई का अवसर भी नकार दिया गया।
A Tale of Two Cases: The Contrast of Justice and Injustice
Case 1: The Mumbai Terror Attacks
On the night of 26th November 2008, India was attacked—Mumbai was drenched in terror and blood. 300 people injured, 166 people killed, including 26 foreigners and 20 members of the… pic.twitter.com/jMwL81201D
— Pawan Kalyan (@PawanKalyan) December 6, 2024
उनकी न्याय की पुकार को भय और पूर्वाग्रह के कारण दबा दिया गया। एक ऐसा व्यक्ति जो अपने समुदाय के अधिकारों के लिए खड़ा हुआ, उसे अपने ही देश में न्याय से वंचित किया जा रहा है।
विश्व समुदाय के लिए संदेश-
यह दोनों मामले न्याय और अन्याय का स्पष्ट विरोधाभास पेश करते हैं। भारत ने अजमल कसाब जैसे आतंकी के लिए भी निष्पक्षता, मानवाधिकार और कानून के सिद्धांतों को बनाए रखा। लेकिन बांग्लादेश में, चिन्मय कृष्ण प्रभु जैसे व्यक्ति को उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित कर दिया गया।
छद्म धर्मनिरपेक्षता और मानवाधिकारों की बात करने वाले समर्थकों की आवाज़ कहां है? जब एक निर्दोष व्यक्ति अन्याय का सामना करता है, तो विश्व समुदाय का आक्रोश कहां है?
अब समय आ गया है कि वैश्विक समुदाय चयनात्मक सक्रियता से ऊपर उठे और चिन्मय कृष्ण प्रभु जैसे लोगों के लिए आवाज उठाए। यदि न्याय चयनात्मक है, तो वह न्याय नहीं है।
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