विश्लेषण

बांग्लादेश में पाकिस्तानी नजदीकी और भारत से घृणा : नया परिदृश्य या मजहबी पहचान के प्रति लालसा

बांग्लादेश में बढ़ती भारत विरोधी भावनाओं और पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति के पीछे के कारणों का गहराई से विश्लेषण। 1971 के ऐतिहासिक योगदान से 2024 की नई राजनीति तक की पूरी कहानी।

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सोनाली मिश्रा

बांग्लादेश में लगातार भारत के प्रति घृणा बढ़ती जा रही है और भारत को लेकर वहाँ के लोग नए-नए फरमान जारी कर रहे हैं। वहाँ से लोगों के द्वारा यह कहा जा रहा है कि भारत को अपनी सीमाओं में रहना चाहिए। भारत को पिछले दिनों सलाह देते हुए मोहम्मद यूनुस के मुख्य सलाहकार ने कहा था कि वह बांग्लादेश की नई वास्तविकता को पहचानें और 1975 की अपनी प्लेबुक से बाहर आए।

1975 की प्लेबुक से आखिर महफूज आलम का क्या अभिप्राय है? क्या हुआ था 1975 में? वर्ष 1971 में पूर्वी पाकिस्तान भाषाई आधार पर पश्चिमी पाकिस्तान से अलग हुआ था और नए मुल्क के रूप में दुनिया के सामने आया था। बंगबंधु के नाम से विख्यात शेख मुजीबुर्रहमान के हाथों में सत्ता आई थी, मगर इसके बाद 1975 में एक सैन्य विद्रोह के चलते बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या कर दी गई थी और उस समय भी शेख हसीना ने भारत से सहायता मांगी थी, भारत ने उन्हें शरण दी थी। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनकी सहायता की थी और उन्हें सुरक्षा और शरण प्रदान की थी।

महफूज आलम का कहना है कि भारत को ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि जुलाई में जो क्रांति हुई थी, वह 1975 का दोहराव है। आलम ने अपनी फ़ेसबुक पोस्ट On India and its relationship with Bangladesh में लिखा कि भारत यह प्रयास कर रहा है कि वह पूरी घटना को बांग्लादेश पर इस्लामी एजेंडे की विजय बता सके और बांग्लादेश को हिंदू-विरोधी साबित कर सके। मगर ऐसा नहीं होने जा रहा है। आलम के अनुसार पूरे दो दशकों के बाद देश ने खुली हवा में सांस ली है और आलम ने लिखा है कि 1971 के बाद हम एक राजनीति के रूप में असफलता के शिकार हो गए, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा!

आलम के अनुसार भारत बांग्लादेश को बदनाम कर रहा है। ऐसा सोचने वाले और लिखने वाले आलम ही नहीं बल्कि बहुत हैं। भारत में शरण लेकर रह रही बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन ने एक्स पर अपनी प्रोफ़ाइल पर एक वीडियो साझा किया। जिसमें पाकिस्तान और बांग्लादेश की एकता की बात एक युवा कर रहा है। तस्लीमा नसरीन ने लिखा कि वह भारत जिसने बांग्लादेश की पाकिस्तान से रक्षा करते हुए 17,000 सैनिक बलिदान कर दिए और वह एक दुश्मन है। वह भारत जिसनें 10 मिलियन शरणार्थियों को शरण दी, वह एक दुश्मन माना जा रहा है और जिस भारत ने पाकिस्तानी सेना से देश की रक्षा के लिए हथियार मुहैया कराए और स्वतंत्रता सेनानियों को प्रशिक्षित किया, वह अब कथित तौर पर दुश्मन है। और जिस पाकिस्तान ने 30 लाख लोगों की हत्या की और 200,000 महिलाओं का बलात्कार किया, वह अब कथित तौर पर दोस्त है। आतंकवादियों को पैदा करने में नंबर एक पर रहने वाला पाकिस्तान अब कथित तौर पर दोस्त है। जिस पाकिस्तान ने 1971 के अत्याचारों के लिए बांग्लादेश से अभी तक माफी नहीं मांगी है, वह अब कथित तौर पर एक मित्र राष्ट्र है!

आखिर ऐसा क्या हुआ है कि जिस भारत ने अपने सैनिक बलिदान किये एक मुल्क को अत्याचारियों से मुक्त करने के लिए वह दुश्मन है और उसे अब बांग्लादेश के रीसर्च फ़ेलो तक सलाह दे रहे हैं कि भारत को बांग्लादेश की नई असलियत को स्वीकार करना चाहिए। ऐसे कई लेख कई समाचारपत्रों में सामने आ रहे हैं कि भारत को बांग्लादेश की उस पहचान को स्वीकार करना चाहिए, जो 5 अगस्त 2024 के बाद बनी है। मगर कोई भी लेख इस बात को जस्टीफ़ाई नहीं कर रहा है कि ऐसी क्या नई पहचान काबिज हो गई है कि जिस देश ने उनके लाखों लोगों को मारा, असंख्य माताओं और बहनों के बलात्कार किये और यह सब भाषाई आधार पर किया, भाषाई पहचान के आधार पर किया, उस मुल्क और उस भाषा ने ऐसा क्या कर दिया, कि वह उनका इतना नजदीकी हो गया कि उसके नागरिक अब बिना सुरक्षा क्लियरेन्स के बांग्लादेश मे प्रवेश कर सकते हैं?

या फिर यह कहा जाए कि शेख मुजीबुर्रहमान और शेख हसीना के प्रति पाकिस्तान की पहचान रखने वाले एक बड़े वर्ग का गुस्सा था, जिसे यह लगता था कि उस देश की मदद शेख मुजीबुर्रहमान ने क्यों ली, जिससे अलग होकर ही वे एक पाक मुल्क बने थे। और पाकिस्तान के साथ शेख हसीना के भी रिश्ते अच्छे नहीं थे। ऐसे में उस वर्ग में असंतोष काफी होगा, जो भारत की बजाय पाकिस्तान से अपनी पहचान जोड़कर रखते हैं।

दरअसल यह कहीं न कहीं मजहबी मुल्क की पहचान को वापस पाने की लड़ाई है। तस्लीमा नसरीन के पोस्ट को समझा जाए तो यह बात पूरी तरह से समझ में आती है कि 5 अगस्त को शेख हसीना के मुल्क छोड़ने के बाद बांग्लादेश में पाकिस्तान के प्रति जो प्रेम छलक रहा है, वह और कुछ नहीं बल्कि अपनी उसी पहचान को वापस पाने की लालसा है जो शेख मुजीबुर्रहमान ने वर्ष 1971 में पूर्वी पाकिस्तान से छीन ली थी।

यही कारण है कि भारत के उत्पादों का वहाँ पर विरोध हो रहा है और ऐसा लगता है कि भारत विरोधी भावनाओं पर ही राजनीति आगे बढ़ेगी, तभी गुरुवार को ढाका में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के वरिष्ठ संयुक्त महासचिव रूहुल कबीर रिजवी ने अपनी बीवी की भारतीय साड़ी को जला दिया। यह भड़काने वाली हरकत करने वाले रूहुल कबीर रिजवी ने यह भी अपील की कि उनके लोग भारतीय उत्पादों का बहिष्कार करें।

 

 

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सोनाली मिश्रा