लोकमंथन 2024 : लोक चिंतन की धारा
July 10, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

लोकमंथन 2024 : लोक चिंतन की धारा

लोकमंथन आयोजन इस विचार पर आधारित है कि भारतीय मानसिकता को उपनिवेशवादी प्रभावों से मुक्त करने के लिए हमें अपने लोक यानी हमारे लोग, हमारे समाज और हमारी परंपराओं और अपने पुरातन ज्ञान से पुन: जुड़ने की आवश्यकता है।

by WEB DESK
Dec 5, 2024, 07:59 am IST
in भारत, विश्लेषण, संघ
लोकमंथन 2024 के उद्घाटन सत्र में (बाएं से दाएं) प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे नंदकुमार, तेलंगाना के राज्यपाल विष्णुदेव वर्मा व मंत्री सीतक्का, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, केंद्रीय मंत्री, जी किशन रेड्डी, रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत और डॉ. टी हनुमान चौधरी

लोकमंथन 2024 के उद्घाटन सत्र में (बाएं से दाएं) प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे नंदकुमार, तेलंगाना के राज्यपाल विष्णुदेव वर्मा व मंत्री सीतक्का, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, केंद्रीय मंत्री, जी किशन रेड्डी, रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत और डॉ. टी हनुमान चौधरी

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

पहला दिन
सत्र : जीवन लोक दृष्टि

लोकमंथन, भारत की स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों, संस्कृति और वैश्विक संदर्भों के बीच गहरे और मौलिक संबंधों को उजागर करने का एक अद्भुत प्रयास है। यह आयोजन इस विचार पर आधारित है कि भारतीय मानसिकता को उपनिवेशवादी प्रभावों से मुक्त करने के लिए हमें अपने लोक यानी हमारे लोग, हमारे समाज और हमारी परंपराओं और अपने पुरातन ज्ञान से पुन: जुड़ने की आवश्यकता है। हमें केवल औपनिवेशिक आख्यानों से ऊपर उठने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि ऐसे संवाद स्थापित करने चाहिए जो लोक ज्ञान और शैक्षणिक दृष्टिकोण को एक साथ जोड़ सकें। इन दोनों के बीच सेतु निर्माण करना हमारी सांस्कृतिक शक्ति को और अधिक सुदृढ़ करता है।

‘‘जीवन लोक दृष्टि’ सत्र में डॉ. सत्यनारायण ने जनजातीय जीवनशैली पर एक विचारोत्तेजक व्याख्यान दिया। उन्होंने वनवासी समुदायों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, उनके पारंपरिक रीति-रिवाजों और पर्यावरण के साथ संतुलन बनाए रखने की उनकी अनूठी जीवनशैली पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, जनजातीय समुदाय प्रकृति के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। वह अपनी आत्मनिर्भरता और विशिष्ट सामाजिक संरचनाओं के जरिए अपनी संस्कृति को आज तक जीवंत बनाए हुए हैं। जनजातीय समुदायों की परंपराओं और पहचान को सुरक्षित रखना केवल उनका अधिकार नहीं है, बल्कि यह भारत की समग्र सांस्कृतिक विविधता को बनाए रखने के लिए भी अनिवार्य है।”

यह आयोजन केवल भारत के भूतकाल का उत्सव नहीं है बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए एक मार्गदर्शक भी है। हम अपने पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक विचारों में एकीकृत करें, ताकि एक ऐसा सेतु निर्मित हो सके जो संस्कृति और अकादमिकता दोनों को पार कर जाए। लोकमंथन केवल एक आयोजन नहीं है, बल्कि यह एक आंदोलन है, जो हमारी जड़ों से जुड़े रहने, अपनी सांस्कृतिक पहचान पर गर्व करने और इस ज्ञान को आधुनिक दुनिया के साथ साझा करने का एक प्रेरक माध्यम है।”

अग्नि उपासक हैं लिथुआनियावासी

एलियाह, गेलवाना, और या वा दिजपतिता लोकमंथन में अग्नि अनुष्ठान करते हुए

लोकमंथन में यूरोप के एक देश लिथुआनिया से आए हुए लोग भी पहुंचे थे। लिथुआनिया में ज्यादातर लोग अब ईसाई हो चुके हैं, कुछ ही बचे हैं जो हिंदुओं की तरह अग्नि की उपासना करते हैं। उनकी परंपराएं हिंदुओं जैसी ही हैं। उन्होंने परंपरिक तरीके से अग्नि की उपासना की। उनके मंत्र संस्कृत की तरह लिथुआनिया में थे, जिनके माध्यम से सूर्य की उपासना की गई। इस समूह में तीन सदस्य लोकमंथन में हैदराबाद पहुंचे थे। उनका उद्देश्य अपनी समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा को साझा करना था। पाञ्चजन्य से बात करते हुए एलियाह, गेलवाना और या वा डिजपातीता ने अपनी संस्कृति में अग्नि अनुष्ठान के महत्व को समझाया। उन्होंने बताया, ‘अग्नि अनुष्ठान हमारे रीति-रिवाजों के केंद्र में है। चाहे वह विवाह हो, शिशु आशीर्वाद समारोह हो, या हमारे कैलेंडर त्योहारों में से कोई हो, अग्नि की मुख्य भूमिका निभाती है। हम अग्नि जलाते हैं, उसे भेंट चढ़ाते हैं, और इन अवसरों पर अपने देवताओं और देवी-देवताओं का सम्मान करते हैं। बिल्कुल वैसे ही जैसे हिंदू धर्म में हवन किया जाता है। प्राचीन काल में, जब हम अलग नहीं हुए थे, तो हम पड़ोसी थे। लिथुआनियाई और संस्कृत में कई शब्द काफी समान हैं। उदाहरण के तौर पर लिथुआनियाई में अग्नि के लिए इस्तेमाल ‘उगिस’ शब्द का प्रयोग किया जाता है जो संस्कृत के ‘अग्नि’ से मिलता-जुलता है। ऐसे अनेकों शब्द लिथुआनियाई भाषा में हैं। लिथुआनियाई भाषा संस्कृत के काफी करीब है। 

सत्र : लोक जीवन में विज्ञान

इस सत्र में गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा, ‘‘प्राकृतिक खेती और जैविक खेती को आम तौर पर पर्यायवाची मान लिया जाता है जबकि दोनों बिल्कुल अलग हैं। भारत के अंदर पिछले तीस चालीस साल से केन्द्र सरकार और प्रदेश सरकारें जैविक खेती पर जोर दे रहीं हैं। आज तक मॉडल फॉर्म नहीं बन पाए हैं। आज जब प्राकृतिक खेती की बात होती है तो कृषि वैज्ञानिक कहते हैं कि ये देश का वही हाल करेंगे जो श्रीलंका का हुआ है। श्रीलंका ने जैविक खेती की और वे भूखे मर रहे हैं। मैं भी इस बात को मानता हूं, जैविक खेती करोगे तो श्रीलंका जैसा हाल होगा। मैं जिस प्राकृतिक खेती की बात करता हूं, वह जैविक खेती नहीं है। जैविक खेती का प्रचार करने के लिए 1905 में इंगलैंड से डॉ. हार्वर्ड पत्नी के साथ आए थे। इंदौर के राजा ने उनसे संपर्क किया व जैविक खेती का प्रचार कराया। बाद में पता चला जिस खेती की वह बात कर रहे हैं, भारत के लोग उसके बारे में उनसे अधिक और पहले से जानते हैं।

डॉ. हार्वर्ड को वापस लौटना पड़ा। लेकिन जाते-जाते वह अपनी खेती और उसके लिए एक शब्द जैविक खेती देकर गए। उनका मॉडल वही था, जिसका इन दिनों प्रचार चल रहा है। आप जंगल में गए होंगे, वहां सैकड़ों तरीके के पेड़ और पौधे हैं। बताइए, उन जंगल के पौधों को यूरिया कौन देता है? वहां डीएपी कौन डालता है? जंतु नाशक कौन देता है? पानी कौन देता है? गोबर की खाद कौन देता है? कोई नहीं देता और जंगल का पेड़ जब समय आता है, फलों से लद जाता है। जंगल के किसी पेड़ के पत्ते को तोड़ें और किसी प्रयोगशाला में ले जाएं। उसमें एक भी पोषक तत्व की कमी नहीं मिलेगी। उसमें फास्फोरस, जिंक, पोटाश किसी चीज की कमी नहीं मिलेगी। सब कुछ उतना मिलेगा, जितनी जरूरत है।

जब प्रकृति मां सब कुछ पूर्ण करती हैं तो हमारे खेत में क्यों नहीं पूर्ण करेंगी? जो वहां पूर्ण कर रही हैं, वही हमारे खेतों में पूर्ण करें, इसी का नाम प्रकृतिक खेती है। यह आज देश की आवश्यकता है। हमें प्राकृतिक खेती में एक ही काम करना है कि धरती के सूक्ष्म जीवाणुओं को बचाना है। उसे बढ़ाने में सहायक सिर्फ एक ही पशु पाया गया। वह है देसी गऊ माता। मैं इस समय 12 कृषि वैज्ञानिकों के साथ काम कर रहा हूं जिसमें माइक्रोबायोलॉजी के कई वैज्ञानिक हैं। गुजरात के चार कृषि विश्वविद्यालय इस पर शोध कर रहे हैं। शोध के तहत गधे, घोड़े, भैंस,ऊंट और देसी गाय के गोबर को सुखा कर अलग अलग थैली बनाई। सभी थैलियों में नंबर डालकर माइक्रोबायोलॉजी के वैज्ञानिकों को दिया गया।

छह महीने में उसकी रिपोर्ट आई। उसने मुझे भारतीय मूल की देसी गाय वाली थैली पकड़ाई और कहा, यह धरती के लिए वरदान है। भारतीय मूल की जो गाय हैं, उसकी आंतों में भगवान ने सूक्ष्म जीवाणुओं का कारखाना लगाकर भेजा है। धरती पर किसी भी पौधे में लगने वाले किसी रोग का स्थायी इलाज इसमें है। गौ माता की जय तो सभी बोलते हैं। यह भी पता है कि इसमें कितने देवता हैं। लेकिन देखे कभी नहीं। दूध पर तो आपने भी सुना कि ए-टू नामक प्रोटीन केवल भारत की गायों के दूध में मिला। हमारी नहीं, बल्कि आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड के वैज्ञानिकों की रिपोर्ट है कि ‘‘भारत की देसी गायों से अधिक बेहतर दूध किसी का नहीं है। देसी गाय के एक ग्राम गोबर में तीन सौ से पांच सौ करोड़ तक सूक्ष्म जीवाणु हैं। गोमूत्र खनिज का भंडार है।’’

नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर मैटेरियल्स साइंस, जापान में कार्यरत वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अनिर्बान बंद्योपाध्याय ने कहा, ‘‘हमारे ऋषियों ने अनुभवजन्य शोध और अंतर्मुखी अन्वेषण के अद्वितीय संयोजन के माध्यम से ब्रह्मांड की व्यापकता और सूक्ष्म संसार की जटिलताओं दोनों की खोज की थी। ब्रह्मांड और शरीर—आंतरिक और बाहरी दोनों—की समग्र समझ, भारत की प्राचीन ज्ञान परंपराओं का एक अद्भुत पहलू है। यह आज भी आधुनिक विज्ञान को आकर्षित करता है। भारतीय विद्वानों की गणितीय प्रतिभा और तत्वमीमांसा और अन्वेषण अद्भुत है। आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य और बोधायन जैसे विद्वानों ने भारतीय वैज्ञानिक उपलब्धियों की नींव रखी। वे आज तक गणित और खगोल विज्ञान में उन्नति के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। प्राचीन भारत की चेतना और आणविक संरचनाओं के बारे में जो खोज है वह अपने समय से बहुत आगे की खोज हैं। उनको आज भी विज्ञान समझने की कोशिश कर रहा है। भारतीय ज्ञान प्रणाली आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी पहले थे और यह भौतिक विज्ञान और तत्वमीमांसा के बीच की खाई को पाटने में सक्षम है।’’

गुजरात विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीरजा ए. गुप्ता ने भारतीय ज्ञान परंपराओं को शैक्षिक परिदृश्य में समाहित करने के अपने दृष्टिकोण को साझा किया। उन्होंने विश्वविद्यालय द्वारा जनजाति समुदायों को प्रभावित करने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दों पर अनुसंधान को बढ़ावा देने के प्रयासों पर प्रकाश डाला और पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ मिलाने के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने अपने भाषण में जैविक खेती की क्षमता को एक टिकाऊ कृषि समाधान के रूप में प्रस्तुत किया और भारतीय शिक्षा में हमारी प्राचीन ज्ञान प्रणालियों को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया, जिससे एक अधिक समग्र भविष्य की दिशा में कदम बढ़ाया जा सके।

लोक साहित्य पर सत्र में (बाएं से दाएं) डॉ. विद्या विंदु सिंह, डॉ. सच्चिदानंद जोशी और प्रोफेसर कासिरेड्डी वेंकट रेड्डी

दूसरा दिन
सत्र : लोक साहित्य

उस्मानिया विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर और तेलुगू साहित्य के विशेषज्ञ डॉ. कासी रेड्डी वेंकट रेड्डी ने कहा, ‘‘हमारी विविधता को अक्सर ‘महान परंपरा’ और ‘छोटी परंपरा’ के रूप में गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है। वर्षों से सुनियोजित तरीके से समाज में विभाजन और मतभेद पैदा करने के लिए ऐसा प्रयास किया जा जा रहा है। हमारी चेतना में एकता की अवधारणा गहराई से समाई हुई है। भारतीय संस्कृति को समझना है तो लोक कहानियों के माध्यम से समझना चाहिए।’’

पद्मश्री डॉ. विद्या विंदु सिंह ने कहा, ‘‘भगवान राम सदियों से इस मौखिक परंपरा का हिस्सा रहे हैं। ऐसे कई लोक गीत और कहानियां हैं जो लुप्त हो चुकी हैं, लेकिन भारत के लोक का सार उसकी संस्कृति और परंपराओं में आज भी जीवित है। भारतीय परंपरा महान है। भारतीय प्रकृति से लेकर नियमित प्रयोग में आने वाली चीजों के लिए भी संवेदनशील हैं। उदाहरण के तौर पर हमारे यहां रात में पत्तियां न तोड़ने या कुएं से पानी न भरने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि वह सो रहे हैं। यहां तक कि निर्जीव वस्तुओं को लेकर भी हमारे यहां संवेदनशीलता है।

हमारे यहां गर्म तवे पर पानी न डालने की परंपरा है, क्योंकि इससे उसे ‘दर्द’ हो सकता है। युवा पीढ़ी को हमारी विशाल और सांस्कृतिक धरोहर को समझने की जरूरत है। जो लोग अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं, वे जीवन में हमेशा बेहतर करते हैं। पश्चिमी मानकों से भारतीय मूल्यों का सही आकलन नहीं किया जा सकता। एकता (एकता) की भावना हमारे रक्षा कवच के रूप में काम करती है, जो ‘स्व’ और ‘प्र’ के बीच विभाजन को रोकती है। लोग दूसरों की खुशी और दु:ख में साझेदारी करते हैं, उनके साथ हंसते और उनके साथ रोते हैं।’’

आईएनजीसी के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा, ‘‘हम देख रहे हैं कि पिछले कुछ दिनों से हमारे देश में एक नई तरह की क्रांति नए तरह का आंदोलन हुआ है। जिसमें हम औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति की और बढ़ रहे हैं। हमें यह समझना होगा जो हमारे देश जन—जन में और गांव—गांव में और कण—कण में विद्यमान है वहीं भारतीय संस्कृति है और लोक संस्कृति नहीं है। लोक साहित्य, लोकनृत्य भारतीय साहित्य और भारतीय नृत्य हैं। लोकमंथन पर हम पिछले कई सालों से मंथन कर रहे हैं। हमे इस बारे में सोचना होगा कि क्या इस मंथन को लोक शब्द से मुक्ति देकर इसका नाम भारत मंथन कर सकते हैं।

भारत की सोच है वह चक्रीय है इसलिए आज जो लोक है वह कल परिष्कृत होकर आकार लेकर शास्त्र में परिवर्तित होता है और आज जो शास्त्र है वह धीरे—धीरे व्यापक होकर लोक का स्वरूप ले लेता है। इसके बहुत सारे उदाहरण हम अपनी संस्कृति में देख सकते हैं, फिर चाहे वह शास्त्रीय नृत्य का उदाहरण हो, जिसे आप आज शास्त्रीय नृत्य कहते हैं उसकी यदि आप जड़ों में जाएंगे तो वहां पर कहीं न कहीं बहुत लोकप्रिय हमारे गांवों में होने वाले नृत्य हैं उसमें आपको उसके कण दिखने लगेंगे। इसलिए इस मंथन को ‘भारत मंथन’ कहा जाए जो ज्यादा बेहतर होगा।’’

भारतीय लोक चेतना में पर्यावरण विषय पर सत्र में (बाएं से दाएं) प्रोफेसर श्री प्रकाश, सत्र के अध्यक्ष गोपाल आर्य, शिप्रा पाठक एवं डॉ. प्रसाद वामन देवधर

सत्र : भारतीय लोक चेतना में पर्यावरण

इस विषय पर एक सार्थक और प्रेरणादायक चर्चा का आयोजन किया गया। इस सत्र में पर्यावरण संरक्षण से जुड़े गहन मुद्दों पर प्रकाश डाला गया, जहां भारतीय परंपराओं और संस्कृति में प्रकृति के प्रति सम्मान की भावना को समझने और उस पर आधारित समाधान खोजने का प्रयास किया गया।

इस सत्र की अध्यक्षता पर्यावरण गतिविधि के राष्ट्रीय संयोजक श्री गोपाल आर्य ने की। उनके मार्गदर्शन में सत्र ने भारतीय लोक चेतना में पर्यावरण की केंद्रीय भूमिका को समझने की दिशा में एक प्रभावशाली चर्चा की। उन्होंने अपने उद्घाटन वक्तव्य में कहा कि भारतीय संस्कृति में प्रकृति को देवतुल्य माना गया है, पर्यावरण संरक्षण केवल एक आवश्यकता नहीं, बल्कि हमारी परंपरा और दायित्व का हिस्सा है। इस महत्वपूर्ण सत्र में श्री वामन प्रसाद देवधर ने भी भाग लिया। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के प्रति भारतीय समाज की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। श्री देवधर ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि कैसे भारतीय लोक परंपराओं ने सदियों से प्रकृति और पर्यावरण को संरक्षित किया है। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि हमारे पर्व-त्योहार भी प्रकृति के साथ हमारे सामंजस्य को बढ़ावा देने के लिए बनाए गए हैं।

सत्र के दौरान श्रीमती शिप्रा पाठक ने नदियों के संरक्षण और महिलाओं की भूमिका पर विशेष जोर दिया। उन्होंने बताया कि भारतीय परंपराओं में नदियां केवल जल स्रोत नहीं, बल्कि जीवनदायिनी और मां के रूप में देखी जाती हैं। उन्होंने नर्मदा नदी के संरक्षण में किए गए कार्यों और अनुभवों को साझा किया। उन्होंने बताया कि कैसे नदियों का जल स्तर घटने से महिलाओं के जीवन पर सीधा प्रभाव पड़ता है। महिलाओं को जल संकट की सबसे अधिक चुनौती झेलनी पड़ती है, फिर भी वे इस समस्या के समाधान का महत्वपूर्ण हिस्सा बन सकती हैं। उन्होंने नर्मदा बचाओ आंदोलन का उदाहरण देते हुए कहा कि महिलाओं ने किस तरह सामूहिक रूप से पर्यावरणीय चेतना को बढ़ावा दिया और नदियों को बचाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

श्री वामन प्रसाद देवधर ने पर्यावरणीय स्थिरता के लिए भारतीय ग्रामीण समाज की परंपराओं और ज्ञान के महत्व को समझाया। उन्होंने कहा कि भारतीय लोक चेतना में पर्यावरण संरक्षण केवल एक आधुनिक समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि यह हमारी सभ्यता का मूल हिस्सा रहा है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि अगर हमें भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रकृति को संरक्षित रखना है, तो हमें अपने पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक तकनीकों का संतुलन बनाकर काम करना होगा।

सत्र का समापन करते हुए गोपाल आर्य ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण केवल नीतियों और योजनाओं तक सीमित नहीं रह सकता। यह एक जनांदोलन बनना चाहिए, जहां हर व्यक्ति, विशेष रूप से महिलाएं सक्रिय रूप से भाग लें। उन्होंने भारतीय लोक चेतना की प्रासंगिकता को समझाते हुए कहा कि हमारी परंपराएं हमें यह सिखाती हैं कि प्रकृति के साथ तालमेल ही जीवन का आधार है।

इस सत्र में आए सभी वक्ताओं ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि पर्यावरण संरक्षण एक सामूहिक जिम्मेदारी है। भारतीय संस्कृति की गहराई में निहित प्रकृति के प्रति आदर और श्रद्धा की भावना हमें यह सिखाती है कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखना न केवल संभव है, बल्कि अत्यंत आवश्यक भी है। यह सत्र न केवल भारतीय लोक चेतना में पर्यावरण की प्रासंगिकता को समझने का एक अवसर था, बल्कि यह एक प्रेरणा भी था कि हम सब अपनी सांस्कृतिक धरोहर से प्रेरणा लेते हुए पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में कदम बढ़ाएं। नदियों की रक्षा, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और महिलाओं को सशक्त बनाने के मुद्दों पर केंद्रित यह चर्चा हर एक सहभागी के लिए विचारोत्तेजक और मार्गदर्शक रही।

लोकमंथन के लोगो का अर्थ

वृत्त: ब्रह्मांड और सम्पूर्ण सृष्टि का प्रतीक है।
दो हंस: यह ज्ञान का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो जब मुक्त होता है, तो दो हथेलियों के रूप में शक्ति और कर्म का प्रदर्शन करता है। यह ज्ञान और अभ्यास को दर्शाता है।
अखंडमंडलाकार: यह धर्म की मूल भावना यानी आपसी सहयोग और परस्पर जुड़े होने की भावना को प्रकट करता है।

सत्र : लोक अर्थशास्त्र
लोक अर्थशास्त्र सत्र में भारत की सभ्यतागत आर्थिक दृष्टि पर जोर

लोकमंथन 2024 के दूसरे दिन भाग्यनगर में ‘लोक अर्थशास्त्र’ नामक एक महत्वपूर्ण सत्र आयोजित किया गया, जिसमें भारत के शाश्वत आर्थिक सिद्धांतों और उनकी आज के संदर्भ में प्रासंगिकता पर चर्चा की गई। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. पी. कनकसाभपति (तमिलनाडु भाजपा के उपाध्यक्ष और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन के सचिव और ट्रस्टी) ने की। सत्र में श्री एम.डी. श्रीनिवासन, सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज के संस्थापक अध्यक्ष और श्री संदीप सिंह, चॉइस इंटरनेशनल और आईआईएम के स्वतंत्र निदेशक ने अपने विचार साझा किए।

सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज के संस्थापक अध्यक्ष श्री एम.डी. श्रीनिवासन लोकमंथन ने कहा, ‘‘कृषि और पशुपालन पर आधारित व्यवस्था भारत की अर्थव्यवस्था का मूल स्तंभ रही है। राजा का कर्तव्य धर्म और वार्ता दोनों की रक्षा करना होता था। औपनिवेशिक काल के दौरान यह व्यवस्था खंडित हुई। उन्होंने जो आर्थिक नीतियां बनाई थीं वे भारत के लिए सही नहीं रहीं। दीनदयाल उपाध्याय जी की दृष्टि थी कि भारत के सभ्यतागत पुन:उत्थान के लिए और कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। यह होना भी चाहिए।’’

चॉइस इंटरनेशनल और आईआईएम के स्वतंत्र निदेशक संदीप सिंह ने कहा, ‘‘इस्लामी आक्रमणों और यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों, विशेष रूप से ब्रिटिशों द्वारा शताब्दियों तक शोषण के बावजूद भारत हमेशा से एक धन उत्पादक देश रहा है। इसका श्रेय लोक विद्या (स्वदेशी ज्ञान) और लोक अर्थ (स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं) को जाता है। विशेष रूप से मंदिर अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय महत्व को यहां नकारा नहीं जा सकता। कांची, ढाकेश्वरी और सम्बलेश्वरी जैसे मंदिरों ने अनुष्ठानों, और त्योहारों के माध्यम से आर्थिक गतिविधियों को जीवंत बनाए रखा। दीपावली जैसे सांस्कृतिक त्योहार आज भी स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को संचालित करते हैं। मंदिर-केंद्रित आर्थिक प्रणालियों को पुनर्जीवित करने की जरूरत है ताकि लोक के तंत्र यानी (लोकतंत्र) को मजबूत किया जा सके और भारत की अर्थव्यवस्था में मंदिरों की पारंपरिक भूमिका को बहाल किया जा सके।’’

तमिलनाडु भाजपा के उपाध्यक्ष डॉ. कनकसाभपति ने कहा, ‘‘भारत की आर्थिक वृद्धि में हमारे पारिवारिक व्यवस्था, उच्च बचत दरों और सामुदायिक सहयोग की महत्वपूर्ण भूमिका है। जमीनी स्तर पर 30 प्रतिशत नवाचार ऐसे व्यक्तियों से आते हैं, जिनकी कोई औपचारिक शिक्षा नहीं होती। भारत की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है जो सांस्कृतिक ज्ञान और पारिवारिक व्यवसायों के माध्यम से इसे बनाए रखती हैं।’’

लोक सुरक्षा और न्याय पर सत्र में (बाएं से दाएं) डॉ. कृष्ण जुग्नू, प्रोफेसर नागराज पटुरी और सत्र की अध्यक्ष प्रोफेसर शांतिश्री धुलिपुड़ी पंडित

तीसरा दिन
सत्र : लोक सुरक्षा एवं न्याय

इस सत्र में प्रोफेसर नागराज पातुरी ने कहा, ‘‘लोक शब्द तेलुगू में ‘जनपद’ के रूप में जाना जाता है, और ‘लोकमंथन’ का अनुवाद ‘जनपद मंथनम’ होता है। मैं ‘जनपद भद्रता’ के बारे में बात करने जा रहा हूं। पहले पंचायत का एक मुखिया हुआ करता था जो औपनिवेशिक काल से पहले मुद्दों को हल करता था। अंग्रेजों के आने से पहले, स्थानीय गांवों की अपनी न्याय प्रणाली मौजूद थी। तब तक भारत में यह शहरी-ग्रामीण विभाजन नहीं था। हर बड़ा शहर आज मूल रूप से गांवों का एक समूह ही है। गांवों में आज तक पंचायत आयोजित की जा रही हैं, जिसे हम ‘लोक न्याय’ कहते हैं। ‘लोक सुरक्षा’ के संदर्भ में, गांवों में एक सुरक्षा व्यवस्था थी।

लोग अक्सर ‘गांव के चौकीदार’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं, जिससे लगता है कि गांव में सिर्फ एक चौकीदार हुआ करता था, लेकिन यह गलत है। तेलुगू में हम उसे ‘तालारी’ कहते हैं। ‘तालारी’ की भूमिका आज भी भारत में जारी है। एक गांव में अक्सर कई ‘तालारी’ हुआ करते थे। वे सुरक्षा करते थे। यदि हम गांवों की दंतकथाओं को देखें, तो वहां स्थानीय देव होते हैं। पूरे भारत में इन्हें आज भी पूजा जाता है। भारतीय सेना भी ऐसा करती है। यह दर्शाता है कि ‘लोक’ हमारी प्रणाली में कितनी गहराई से समाहित है।’’

डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू ने कहा, ‘लोक’ (समुदाय) में जो कुछ है, वह ‘श्लोक’ में भी है। सभी शास्त्र और परंपराएं समुदाय का हिस्सा हैं। सभी नीति ग्रंथ समुदाय से संबंधित हैं—मनु, कामंदक, चाणक्य, सप्तऋषि। ये सभी स्मृतियां हमारे समुदाय के चारों ओर हैं, और इनमें सुरक्षा और न्याय सबसे पहले आते हैं। यहां जो प्रथाएं बताई गई हैं, जैसे कि वराहमिहिर द्वारा, जिन्होंने बृहत्संहिता नामक एक ग्रंथ में समुदाय के ज्ञान को संकलित किया।

समुदाय की परंपराओं और मान्यताओं में हमारे पास जो न्याय है, वह गुमराह नहीं हो सकता। उदाहरण के लिए, गुजरात से संबंधित मल्लपुराण यह बताता है कि मल्ल (पहलवान) समुदाय की रक्षा कैसे करते थे। मंसोल्लासा भी यही संदेश देता है, और बृहद्यात्रा हमें इसी तरह सिखाती है। वराहमिहिर के कार्यों, जैसे लघु यात्रा, दीर्घ यात्रा और बृहद्यात्रा में यह उजागर किया गया है। यहां कई जातियां हैं क्योंकि वे सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं। राजस्थान में, उदाहरण के लिए, सांसी, मोघिया, कंजर, बावरी और पारधी जैसे समुदाय सीमा पर बस गए थे ताकि सुरक्षा की देखरेख कर सकें।

(बाएं से दाएं) जे नंद कुमार, केंद्रीय कोयला मंत्री और लोकमंथन के अध्यक्ष जी किशन रेड्डी, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, रा.स्व. संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत, आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण जी महाराज एवं केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत

सत्र : विकास की भारतीय अवधारणा और उसकी प्रक्रिया

लोकमंथन 2024 के चतुर्थ दिवस ‘‘विकास की भारतीय अवधारणा और उसकी प्रक्रिया’’ विषयक सत्र हुआ जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में शिवगंगा गुरुकुल धरमपुरी, झाबुआ से पद्मश्री महेश शर्मा एवं विचारक प्रो. गणेश बागड़िया ने अपने विचार व्यक्त किए।
प्रो. गणेश बागड़िया ने कहा, ‘‘किसी भी समाज की, संस्कृति की अवधारणा क्या है? आज की प्रचलित विकास की अवधारणा मुख्यत: भौतिकवादी दृष्टिकोण पर आधारित है, इस सृष्टि समग्र को केवल जड़ पदार्थ के रूप में देखती है। वास्तव में यह समाधान देने के बदले समस्याओं को और बढ़ाती हुई दिखती है। विकास की अवधारणा; हमारी सृष्टि के बारे में जो अवधारणा है, उस पर निर्भर करती है इसलिए विकास की भारतीय अवधारणा को समझने के लिए पहले सृष्टि के संदर्भ में भारतीय अवधारणा को समझने का प्रयास करना होगा।’’

पद्मश्री महेश शर्मा ने कहा, विकास, लोग, अवधारणा और प्रक्रिया ऐसे चार शब्द एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और अवधारणा ही विकास का मानदंड है। कई प्रकार के विचार हो सकते हैं जो एक साथ रह सकते हैं। वस्तुत: गंतव्य सबका एक है विचार अलग-अलग हैं। अवधारणा एक धारणा है। अवधारण धारणा में कोई विज्ञान नहीं रहता। सुन करके भी हम धारणा बना लेते हैं लेकिन अवधारणा में अवधारणा को प्रमाणित किया जा सकता है तो जब हम किसी विकास की बात करते हैं, तो वह विकास अमूर्त व्यक्त है, उसको मूर्त रूप में कैसे मानेंगे कि विकसित हो गया? किसी के बहुत संसाधन हो गए, किसी के पास बहुत अभाव है। ऐसे में किसको विकसित मानें। आज समाज में कोई भेद नहीं बचा है।

धन-बल के बजाए मन को जीतना, यह विकास की अवधारणा लोक अवधारणा है और हम सब समान है यह लोकधारणा है। हम ऐसे विकसित समाज की रचना करना चाहते हैं कि जिसमें सब आगे बढ़ सकें। सब साथ रह सकें। जनमानस के अंदर भेद ही न हो, यह भारत की अवधारणा है। झाबुआ के वनवासी समाज के बारे में शहरी समाज की धारणा और अवधारणा दोनों भिन्न हैं। वनवासी समाज को देखने की हमारी धारणा हमेशा से दिग्भ्रमित रही है जबकि सामाजिक समरसता, सामाजिक रचना को जीने वाले यही वनवासी हैं। यहां के वनवासी समाज में एक परंपरा है हलमा।

झाबुआ क्षेत्र में पानी सहेजने-बचाने का अभियान हलमा वनवासी समाज के विकास को पुष्ट करता है जहां वे एकजुट हैं, साथ बढ़ रहे हैं। एक इकाई के तौर पर वे अधिक स्वाभिमानी समाज की अवधारणा का दर्शन कराते हैं। इसके अलावा वनवासी समाज ‘नवई’ त्योहार जिस एकजुटता से मनाता है, यह समाज की जीवंत सामाजिक उत्कृष्ट दिशा है। भौतिक विकास में उसकी आत्मा (जो दिखती नहीं है) भारतीय चिंतन में विकास की अवधारणा है। जब हम अधिक शिक्षित हुए तो हमारी विकास की अवधारणा बाधित हुई। जीवित-जाग्रत समाज शिक्षित ही हो, यह आवश्यक नहीं है। और अशिक्षित समाज जीवित-जाग्रत न हो, ऐसी धारणा बनाना मूर्खता है। भारत भूमि परोपकार, त्याग की है। दूसरों के लिए जीना, दूसरों के लिए करने को परमार्थ बोलते हैं। भौतिक विकास कर रहे हैं तो अपने चरित्र का गठन चरित्र का निर्माण हमें नहीं भूलना चाहिए। जहां सुचरित्र हो, सब पर ध्यान दिया जाए तो ऐसा समाज विकसित कहा जाता है।

 

Topics: रातन ज्ञानभारतीय मानसिकतासरसंघचालकLok Manthan 2024श्री मोहनराव भागवतSwadeshi of IndiaShri Mohanrao BhagwatCultural Powerरा.स्व.संघRatan GyanchiefIndian MentalityRSSसांस्कृतिक शक्तिभारत मंथनपाञ्चजन्य विशेषलोकमंथन 2024भारत की स्वदेशी
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

न्यूयार्क के मेयर पद के इस्लामवादी उम्मीदवार जोहरान ममदानी

मजहबी ममदानी

गुरु पूर्णिमा पर विशेष : भगवा ध्वज है गुरु हमारा

यत्र-तत्र-सर्वत्र राम

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

राष्ट्रीय विद्यार्थी दिवस: छात्र निर्माण से राष्ट्र निर्माण का ध्येय यात्री अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

India democracy dtrong Pew research

राहुल, खरगे जैसे तमाम नेताओं को जवाब है ये ‘प्‍यू’ का शोध, भारत में मजबूत है “लोकतंत्र”

कृषि कार्य में ड्रोन का इस्तेमाल करता एक किसान

समर्थ किसान, सशक्त देश

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

इस्लाम ने हिन्दू छात्रा को बेरहमी से पीटा : गला दबाया और जमीन पर कई बार पटका, फिर वीडियो बनवाकर किया वायरल

“45 साल के मुस्लिम युवक ने 6 वर्ष की बच्ची से किया तीसरा निकाह” : अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत के खिलाफ आक्रोश

Hindu Attacked in Bangladesh: बीएनपी के हथियारबंद गुंडों ने तोड़ा मंदिर, हिंदुओं को दी देश छोड़ने की धमकी

श्रीहरि सुकेश

कनाडा विमान हादसा: भारतीय छात्र पायलट की हवाई दुर्घटना में मौत

बुमराह और आर्चर

भारत-इंग्लैंड टेस्ट सीरीज: लॉर्ड्स में चरम पर होगा रोमांच

मौलाना छांगुर ने कराया 1500 से अधिक हिंदू महिलाओं का कन्वर्जन, बढ़ा रहा था मुस्लिम आबादी

Uttarakhand weather

उत्तराखंड में भारी बारिश का अलर्ट: 10 से 14 जुलाई तक मूसलाधार वर्षा की चेतावनी

Pratap Singh Bajwa complaint Against AAP leaders

केजरीवाल, भगवंत मान व आप अध्यक्ष अमन अरोड़ा के खिलाफ वीडियो से छेड़छाड़ की शिकायत

UP Operation Anti conversion

उत्तर प्रदेश में अवैध कन्वर्जन के खिलाफ सख्त कार्रवाई: 8 वर्षों में 16 आरोपियों को सजा

Uttarakhand Amit Shah

उत्तराखंड: अमित शाह के दौरे के साथ 1 लाख करोड़ की ग्राउंडिंग सेरेमनी, औद्योगिक प्रगति को नई दिशा

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies