उत्तर प्रदेश के संभल में हुई हिंसा को दूर से देखने पर लगता है कि यह मजहबी कारणों से हुई। लेकिन असल में इस हिंसा का कारण पूरी तरह राजनीतिक है। न्यायालय के आदेश पर 19 नवंबर को मस्जिद का सर्वे शांतिपूर्ण तरीके से हुआ। हिंसा 24 नवंबर को तब हुई, जब मस्जिद के शेष हिस्से का सर्वेक्षण किया जा रहा था। इसलिए इस घटना को सिलसिलेवार ढंग से समझने की जरूरत है।
19 नवंबर को पहली बार जब सर्वेक्षण हुआ, तब कोई विवाद नहीं हुआ। इसके अगले दिन 20 नवंबर को मुरादाबाद की कुंदरकी विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए मतदान हुआ। कुंदरकी सीट मुस्लिम बहुल है, जहां 58 प्रतिशत मतदान हुआ और 23 नवंबर को मतगणना में भाजपा प्रत्याशी की जीत हुई। इस चुनाव परिणाम से साफ हो गया कि मुसलमानों ने बड़ी संख्या में भाजपा के पक्ष में मतदान किया।
चुनाव परिणाम के बाद उस क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय के दो जमे-जमाए नेताओं जिया-उर-रहमान बर्क और इकबाल महमूद की राजनीतिक लड़ाई सतह पर आ गई। फिर यह कह कर मुसलमानों को भड़काया गया कि ‘मस्जिद खतरे में है।’ इसी के बाद 24 नंबर को दूसरे दौर के सर्वेक्षण के दौरान हिंसा भड़की।
अब राजनीतिक पृष्ठभूमि पर गौर करें तो जिया-उर-रहमान बर्क ने 2022 के विधानसभा चुनाव में कुंदरकी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था। उस समय बर्क ने 1,25,792 वोट हासिल कर भाजपा प्रत्याशी कमल प्रजापति को 43,162 वोट से हराया था। कमल प्रजापति को 82,630 वोट मिले थे। इस बार लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने बर्क को संभल लोकसभा सीट से चुनाव लड़वाया और वे जीत कर संसद पहुंच गए तो कुंदरकी विधानसभा सीट रिक्त हो गई। हालांकि, 2022 के विधानसभा चुनाव में बर्क को भारी वोट मिले थे, लेकिन इस बार उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी रिजवान अहमद को तगड़ी हार का सामना करना पड़ा।
भाजपा के प्रत्याशी राम वीर सिंह को 1,70,371 वोट मिले, जबकि रिजवान को महज 25,580 वोट। चुनाव परिणाम के बाद से ही पार्टी के भीतर संभल के सांसद जिया-उर-रहमान को घेरने की तैयारी शुरू हो गई थी। संभल के विधायक इकबाल महमूद इस मौके पर बिल्कुल भी चूकना नहीं चाहते थे। इकबाल महमूद का कहना था कि उपचुनाव में मुस्लिम मतदाताओं ने जिया-उर-रहमान से किनारा कर लिया।
इस प्रकार कुल आठ एफआईआर दर्ज की गई हैं और 74 आरोपियों को चिह्नित किया गया है। घटनास्थल के आसआस तुर्क और कुरैशी बिरादरी के लोग रहते हैं। इन दोनों बिरादरी की आबादी लगभग 35,000 है। हिंसा में मारे गए चारों मुस्लिम युवक न तो कुरैशी बिरादरी के थे और न ही तुर्क। उनके घर घटनास्थल से लगभग 5 किलोमीटर दूर हैं। इससे स्पष्ट है कि उन्हें हिंसा करने के लिए बुलाया गया था। अभी अन्य लोगों की भी पहचान की जा रही है। सभी आरोपियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाएगी।’’
पौराणिक इतिहास और साक्ष्यों के आधार पर हिंदू पक्ष का कहना है कि संभल की जामा मस्जिद हरिहर मंदिर है। इसे लेकर हिंदू पक्ष की ओर से जनपद न्यायालय में याचिका दाखिल की गई है। इस पर सुनवाई के बाद न्यायालय ने अधिवक्ता रमेश राघव को एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त कर विवादित परिसर का सर्वेक्षण कर रिपोर्ट देने को कहा है। दरअसल, इस तरह के किसी भी सिविल वाद में न्यायालय एडवोकेट कमिश्नर से विवादित भूखंड या परिसर की सर्वेक्षण रिपोर्ट मांगता है।
न्यायालय के आदेश पर 19 नवंबर को संभल की जामा मस्जिद के कुछ हिस्से का पहला सर्वेक्षण शांतिपूर्ण तरीके से हुआ। शेष हिस्से के लिए सर्वेक्षण के लिए 24 नवंबर को सुबह 7 बजे से 11 बजे के बीच का समय तय किया गया था। लेकिन इससे पहले चुनाव परिणाम आ गया। हार के बाद मुस्लिम नेताओं ने यह कहकर मुसलमानों को उकसाया कि मस्जिद खतरे में है और मस्जिद को बचाना है। इसलिए दूसरे दौर के सर्वेक्षण से पहले ही मुसलमानों ने पूरी तैयारी कर ली थी।
उन्होंने अपने घरों पर ईंट-पत्थर एकत्र कर लिए थे। बड़ी संख्या में मुसलमानों का जमावड़ा भी हो गया था। 24 नवंबर को सुबह 6 बजे क्षेत्राधिकारी अनुज कुमार चौधरी पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंच गए थे। किसी भी तरह की अनहोनी या हिंसा से अनभिज्ञ हिंदू पक्ष के लोगों ने मस्जिद के सर्वेक्षण की कार्यवाही आगे बढ़ाई। इसी बीच, बड़ी संख्या में मुसलमानों की भीड़ जुट गई। उन्होंने घेर कर हमला कर दिया। उन्मादी भीड़ की ओर से गोलियां भी चलाई गईं।
इस जबरदस्त हिंसा में एक गोली क्षेत्राधिकारी अनुज कुमार चौधरी के पैर में गोली लगी। पथराव में पुलिसकर्मियों सहित कई लोग घायल हो गए। देखते-देखते पूरे इलाके में तनाव व्याप्त हो गया। सर्वेक्षण के लिए पहुंची टीम के सदस्यों ने भाग कर अपनी जान बचाई। उन्मादी और हिंसक भीड़ पर काबू पाने के लिए पुलिस बल ने मोर्चा संभाला। साथ ही, हिंसा की सूचना तत्काल आला अधिकारियों को दी गई। इसके बाद मंडल आयुक्त, जिलाधिकारी, पुलिस उपमहानिरीक्षक, पुलिस अधीक्षक समेत भारी संख्या में पुलिस बल मौके पर पहुंच गया।
आरोप है कि सपा सांसद जिया-उर-रहमान और विधायक इकबाल महमूद के बेटे सोहेल महमूद ने हिंसा भड़काई। सोहेल महमूद ने मुसलमानों को यह कहकर हिंसा के लिए उकसाया कि ‘हम लोग तुम्हारे साथ हैं। अपने मंसूबों को पूरा करो।’ उसके भड़काऊ भाषण के बाद ही मुसलमानों की भीड़ हिंसा पर उतर आई। हालांकि, पुलिस ने भीड़ से शांति बनाए रखने की अपील की, लेकिन उन्मादियों ने पुलिस पर ही पथराव शुरू कर दिया।
पुलिस के वाहनों में आग लगा दी। घटना के बाद तनाव को देखते हुए जनपद में इंटरनेट सेवा बंद करनी पड़ी। जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान हुई हिंसा में जिलाधिकारी ने आदेश जारी कर 7 दिन में घटना की जांच पूरी करने को कहा है। साथ ही, उपद्रवियों के पोस्टर जारी किए गए हैं। पुलिस प्रशासन का कहना है कि हिंसा में हुए नुकसान की वसूली उपद्रवियों से की जाएगी। इस बीच एक बातचीत का क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है जिसमें दो मुस्लिम कट्टरपंथी कथित तौर पर ‘मस्जिद पर हथियारबंद भीड़’ भेजने को कह रहे हैं। फिलहाल क्षेत्र में बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई है।
हिंदू पक्ष की ओर से याचिकाकर्ता में ऋषिराज गिरी, महंत दीनानाथ, वेदपाल सिंह मदनपाल एवं अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन शामिल हैं। इनका कहना है कि बाबर 1526 ई. में भारत आया। 1526-27 ई. में बाबर के सेनापति हिरदू बेग ने श्री हरिहर मंदिर को आंशिक रूप से तोड़ दिया था। उसके बाद मुसलमानों ने उस पर कब्जा कर लिया और इसे तोड़कर जामा मस्जिद बना दिया। याची ने इसके समर्थन में बाबरनामा का हवाला दिया है।
याचिका में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की लगभग 150 वर्ष पुरानी एक रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया है। इसमें कहा गया है कि मुसलामानों ने दीवारों पर जो प्लास्टर लगाया है, उससे यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि दीवारें किस सामग्री की बनी हुई हैं। कई स्थानों पर प्लास्टर उखड़ गया है और वहां कुछ पत्थर दिख रहे हैं। मुसलमानों ने हिंदू धर्म से जुड़े कई पत्थरों को हटा दिया है।
श्री हरिमंदिर चौकोर था और उसमें एक ही दरवाजा था। मुख्य दरवाजे के सामने हिंदू आबादी रहती थी। लेकिन मंदिर पर कब्जे के बाद मुसलमानों ने चार दरवाजे बना दिए। जो अन्य दरवाजे बनाए गए, उनके सामने मुस्लिम आबादी रहती थी।
याची महंत ऋषिराज कहते हैं, ‘‘श्रीहरिहर मंदिर की लड़ाई बहुत पुरानी है। हमारे पास जो भी साक्ष्य हैं, उन्हें न्यायालय में दे दिया गया है। इस क्षेत्र के सभी लोग जानते हैं कि यह हरिहर मंदिर है। बाबर ने अयोध्या और संभल के मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनवाई थीं। बाबरनामा में हरिहर मंदिर का उल्लेख तो है ही, आईन-ए-अकबरी में भी मंदिर का विवरण है। यह पूरा स्थल हिंदू समाज के लिए पूजनीय है।’’
हिंदू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि 1920 में अध्यादेश जारी हुआ था, तब से यह परिसर एएसआई के अधीन था। लेकिन मुसलमानों ने इस पर कब्जा कर लिया, तो एएसआई को हटना पड़ा। विधिक रूप से यह परिसर केंद्र सरकार द्वारा संरक्षित है। हम लोगों ने न्यायालय से अपील की है कि परिसर पर फिर से एएसआई को कब्जा दिलाया जाए और हिंदुओं को भी अंदर जाने का अधिकार दिया जाए। इस पर न्यायालय ने कमिशन मुआयना करने का आदेश जारी किया था, मगर हिंसा के कारण सर्वेक्षण का कार्य रुक गया।
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