‘‘लोकमंथन राष्ट्र प्रथम की भावना से कार्य करने वाले लोगों का परिसंवाद है। लोकमंथन भारतीय संस्कृति, परम्परा, कला, जनजीवन, सामाजिक चेतना, ज्ञान-विज्ञान, वाणिज्य, शिक्षा, स्वास्थ्य व औषधि, पर्यावरण सहित विविध क्षेत्रों में भारतीय लोक विचार, लोक व्यवहार व लोक व्यवस्था की विभिन्न धाराओं का मन्थन करने वाला संगम है। यह राष्ट्रीय एकता का संचार करने वाला कुम्भ मेला है।
इस चितंन-मंथन से भारतीय समाज को एक नई दिशा मिलने वाली है। इस लोकमंथन में भारत के वर्तमान व भविष्य की समस्याओं के समाधान के लिए ही नहीं वरन् विश्व के कल्याण के लिए भी चितंन व मंथन होता है। आज विश्व के विविध संघर्षों व पर्यावरण संबंधी चुनौतियों का हल जनजातीय जीवन पद्धति से मिल सकता है।
जनजातीय समाज की परम्पराएं, उत्सव, जीवन शैली, खान-पान, वेश-भूषा, व प्रकृति के साथ साहचर्य श्रेष्ठ व अनुकरणीय है। प्राचीन काल से ही जल, जंगल, जमीन और जानवर के साथ जनजातीय समाज साहचर्य पूर्ण जीवन व्यतीत करता आ रहा है। यह समाज की जिम्मेदारी है कि इस दिशा में पुन: हम बढ़ें।
अंग्रेजों के ‘‘डिवाइड एण्ड रूल’’ के षड्यंत्र के कारण जनजातीय समाज व शेष भारतीय समाज के बीच खाई पैदा करने का प्रयास किया गया था। निश्चित रूप से विकसित भारत के निर्माण के लिए चलने वाले अभियान हेतु विविध सुझाव इस लोकमंथन के माध्यम से आएंगें। भारत को संचार के विचारों से आगे ले जाना है। लोगों के आचार, व्यवहार को सुदृढ़ करना ही हमारा लक्ष्य होगा।
लगभग 450 साल के बाद अध्योध्या में रामलला का एक भव्य मंदिर बनाना इसके बाद भारत कें एक अध्यात्मिक और विकास की वातावरण देकर सभ्य समाज बनाने की ओर हम आगे बढ़ रहे हैं। आज देश में कुछ लोग अराजकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। इस सारी शक्तियों को तोड़कर भारत को विश्व गुरू बनाने के आगे भी ऐसे ही मिलजुलकर काम करेंगे।
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