डाइवर्सिटी, इक्वालिटी और इन्क्लूशन अध्ययन से बढ़ रही हिंदुओं के प्रति घृणा, मुस्लिमों के प्रति बेचारापन
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डाइवर्सिटी, इक्वालिटी और इन्क्लूशन अध्ययन से बढ़ रही हिंदुओं के प्रति घृणा, मुस्लिमों के प्रति बेचारापन

विविधता, समानता और समावेशी प्रशिक्षण कार्यक्रमों में ऐसे काल्पनिक दृश्यों की बात की जा रही है, जिनके आधार पर हिंदू धर्म के उच्च वर्गों और विशेषकर ब्राह्मणों के विरुद्ध घृणा फैल रही है, घृणा बढ़ रही है।

by सोनाली मिश्रा
Dec 1, 2024, 07:33 pm IST
in भारत, विश्लेषण
Diversity, equality and inclusion study reveals hatred towards Hindus
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विविधता, समानता और समावेशी अध्ययन, सुनने में कितने अच्छे शब्द लगते हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि इनके आधार पर किया जाने वाला अध्ययन समाज में और विभिन्न समुदायों के बीच एकता लाने वाला होगा। मगर अमेरिका में जो यह अध्ययन किया जा रहा है, जो विविधता, समानता और समावेशी प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं, वे अंतत: हिंदुओं और विशेषकर ब्राह्मणों के विरुद्ध घृणा फैलाने वाले साबित हो रहे हैं।

नेटवर्क कॉन्टैगियन रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनसीआरआई) और रटगर्स यूनिवर्सिटी द्वारा विविधता, समानता और समावेशी प्रशिक्षण कार्यक्रमों के विषय में बहुत ही चिंताजनक रिपोर्ट प्रकाशित की है। दुर्भाग्य इस बात का है कि ऐसी महत्वपूर्ण रिपोर्ट और उसके निष्कर्षों को मीडिया में वह स्थान नहीं मिला है, जो मिलना चाहिए था। इस रिपोर्ट में इक्वालिटी लैब द्वारा कराए जा रहे प्रशिक्षण कार्यक्रमों की बात की गई है। ये वही इक्वालिटी लैब संस्थान है, जो जाति को लेकर विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम और शोध आदि करता है।

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि विविधता, समानता और समावेशी प्रशिक्षण कार्यक्रमों में ऐसे काल्पनिक दृश्यों की बात की जा रही है, जिनके आधार पर हिंदू धर्म के उच्च वर्गों और विशेषकर ब्राह्मणों के विरुद्ध घृणा फैल रही है, घृणा बढ़ रही है।

यह वही अकादमिक घृणा है, जो भारत में भी अब देखी जा रही है। साधारण घटनाओं में जातिगत विद्वेष उत्पन्न किया जा रहा है। नेटवर्क कॉन्टैगियन रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनसीआरआई) और रटगर्स यूनिवर्सिटी ने रिपोर्ट में जिस पद्धति का प्रयोग किया है, उसमें कहा गया है कि

“अध्ययन ने इक्वालिटी लैब्स से जाति संवेदनशील प्रशिक्षण सामग्रियों को प्रयोग के रूप में इस्तेमाल किया, जिन्हें डीईआई अर्थात विविधता, समानता और समावेशी के शोर के प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिए बनाया गया है। एनसीआरई ने नियंत्रण की स्थिति के लिए बर्कले, कैम्ब्रिज और अन्य संस्थानों के सुप्रसिद्ध विद्वानों के कार्यों से जाति पर एक अकादमिक निबंध संकलित किया। नियंत्रण निबंध को जानबूझकर एक तटस्थ, अकादमिक परिप्रेक्ष्य प्रदान करने के लिए चुना गया था, जो सनसनीखेज या आरोप लगाने वाली भाषा से मुक्त था। इस नियंत्रण ने हमें जाति के विषय को नियंत्रित करते हुए अत्यधिक आवेशित डीईआई आख्यानों के विशिष्ट प्रभावों को मापने की अनुमति दी, जिससे यह स्पष्ट रूप से पता चला कि कैसे उत्पीड़न विरोधी नैरेटिव उस दृष्टिकोण का निर्माण कर सकता है जो दंडात्मक है।“

इसके बाद रिपोर्ट में इंटरवेंशन और कंट्रोल टेक्स्ट के कुछ उदाहरण दिए गए हैं।

इंटरवेंशन टेक्स्ट के रूप में इक्वालिटी लैब्स का उदाहरण दिया है, जिसमें लिखा है कि “शूद्र और दलित जाति-उत्पीड़ित हैं; वे उच्च जातियों के हाथों सामाजिक-आर्थिक कठिनाई और क्रूर हिंसा सहित गंभीर अन्याय का अनुभव करते हैं। दलित अलग-अलग बस्तियों में रहते हैं, उन्हें मंदिरों में जाने से प्रतिबंधित किया जाता है, और उन्हें स्कूलों और सार्वजनिक सुविधाओं तक पहुँच से वंचित रखा जाता है। 2,500 साल पुरानी जाति व्यवस्था को हिंसा के ज़रिए लागू किया जाता है और दुनिया की सबसे पुरानी, ​​सबसे स्थायी संस्कृतियों में से एक द्वारा इसे बनाए रखा जाता है।”

और कंट्रोल टेक्स्ट के रूप में लिखा है

““जाति और वर्ण भारत की अवधारणाएँ हैं जो लोगों की पहचान और सामाजिक रूप से बातचीत के तरीकों का वर्णन करती हैं। जाति का तात्पर्य उन समूहों से है जिनमें सामान्य विशेषताएँ होती हैं, जिनमें कुल, वर्ग, भाषा, पारिवारिक पृष्ठभूमि, मूल क्षेत्र, धर्म और व्यवसाय शामिल हैं। वर्ण हिंदू धर्मग्रंथों में मानव विविधता और उद्देश्य को समझने के दर्शन का वर्णन करता है।”

इस रिपोर्ट में कई काल्पनिक दृश्य भी बताए गए हैं, जिनके आधार पर सामान्य घटनाओं में भी जाति द्वेष की कल्पना सहज हो जाती है।

ब्राह्मणों के प्रति घृणा

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि जाति अध्ययन में यह भी स्पष्ट होता है कि एडोल्फ़ हिटलर की बातों से शैतान बनाने वाले बयान लिए गए हैं और जिनमें यहूदियों के स्थान पर ब्राह्मण को रख दिया है। जिन प्रतिभागियों को यह सामग्री पढ़ने के लिए दी गई थी, उनमें से कई हिटलर के ऐसे बयानों से सहमत दिखे कि “ब्राह्मण “परजीवी” (+35.4%), “वायरस” (+33.8%), और “शैतान का व्यक्तित्व” (+27.1%) हैं”

इसके साथ ही इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में मुस्लिमों को बेचारा बताए जाने की भी बात की है। इस्लामोफोबिया की बात की गई है कि कैसे ये अध्ययन आतंकी घटनाओं को दरकिनार करके यह बता रहे हैं कि अमेरिका में इस्लामोफोबिया है। मुस्लिम विरोधी कानून बनाए जा रहे हैं और न्यायिक व्यवस्था में भी भेदभाव है। लिखा है कि “शरिया विरोधी, अप्रवास विरोधी और मतदाता पहचान पत्र कानून कट्टरता और भय पैदा करने में साथ-साथ चलते हैं। ऐसे प्रतिबंधात्मक उपाय मुसलमानों और अल्पसंख्यकों की स्वतंत्रता को सीमित करते हैं।“

यह रिपोर्ट कहती है कि ऐसे एजेंडे का सामना आतंकी घटनाओं के विषय में विस्तार से बताकर करना चाहिए।

इस रिपोर्ट के आने के बाद हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन ने इस बात पर हैरनाई जताई है कि आखिर कैसे हिंदुओं के विरुद्ध इतनी महत्वपूर्ण रिपोर्ट को अमेरिका के बड़े मीडिया समूहों ने दबा दिया है। हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन ने अमेरिका के दो बड़े समाचार आउटलेट द न्यूयॉर्क टाइम्स और ब्लूमबर्ग पर यह आरोप लगाया कि उन्होनें उस अध्ययन को पूरी तरह से दबा दिया है, जो यह बताता है कि कैसे हिंदुओं के साथ अमेरिका में जाति-आधारित विविधता, समानता और समावेश (डीईआई) प्रशिक्षण कार्यक्रमों के कारण हिंदुओं को भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

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