देहरादून । तीन दिवसीय क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल के समापन पर प्रतिष्ठित लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक को लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया। इस सम्मान के बाद उन्होंने कहा, “यह मेरे लिए एक बड़ी खुशी की बात है कि तीन पीढ़ियों ने मुझे पढ़ा और मेरी रचनाओं को सराहा। मैं एक सामान्य लेखक हूं, लेकिन जब तीन पीढ़ियां मेरी किताबों को पढ़ती हैं और उन्हें सिफारिश करती हैं, तो यही मेरे लिए सबसे बड़ा सम्मान और उपलब्धि है।”
सुरेन्द्र मोहन पाठक ने इस सम्मान को और सम्मानित होने को न केवल अपनी सफलता बल्कि तीन पीढ़ियों के बीच अपनी रचनाओं का असर और प्रभाव मानते हुए इसे अपनी असल उपलब्धि बताया। उनके इस वक्तव्य ने यह स्पष्ट किया कि उनका लेखन केवल साहित्यिक दुनिया तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विभिन्न पीढ़ियों तक अपना प्रभाव छोड़ चुका है।
बता दें कि यह लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड उनके द्वारा किए गए अद्वितीय योगदान को मान्यता देता है, और यह दर्शाता है कि सुरेन्द्र मोहन पाठक का लेखन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा।
फॉरेंसिक और अपराध जांच पर चर्चा
एक महत्वपूर्ण सत्र में कानून और व्यवस्था के वरिष्ठ अधिकारी आईजी (लॉ एंड ऑर्डर) निलेश आनंद भारने और प्रसिद्ध अपराध संवाददाता शम्स ताहिर खान ने फॉरेंसिक और अपराध जांच के क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता साझा की। इस सत्र का संचालन डॉ. प्राची कंडवाल ने किया, जिन्होंने कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए, खासकर पोस्टमॉर्टम रूम और फॉरेंसिक की भूमिका पर।
श्री भारने ने कहा, “अपराधी फॉरेंसिक को धोखा देने की कोशिश करते हैं और भागने का प्रयास करते हैं, लेकिन फॉरेंसिक सभी को पकड़ लेती है। हम 90 प्रतिशत मामलों को फॉरेंसिक के माध्यम से हल कर लेते हैं।” उन्होंने फॉरेंसिक जांच के महत्व पर जोर दिया और कहा कि इससे अपराधियों को पकड़ने में काफी मदद मिलती है।
पत्रकार शम्स ताहिर खान ने कहा, “बड़े मामले तकनीकी के माध्यम से हल होते हैं।” इसके साथ ही उन्होंने अपराध जांच में तकनीकी के इस्तेमाल पर चर्चा की और उसके प्रभाव को स्वीकार किया।
डॉ. प्राची कंडवाल ने फॉरेंसिक पोस्टमॉर्टम रूम की निरीक्षण की महत्ता पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा इसका निरीक्षण किया जाए, क्योंकि पोस्टमॉर्टम और ऑटोप्सी दोनों ही केस को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
श्री भारने ने आगे कहा, “किसी भी मामले का निष्कर्ष केवल एक चीज़ से नहीं निकाला जा सकता, हम पूरी प्रक्रिया में काम करते हैं।” इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि अपराध स्थल को हमेशा घेराबंदी में रखना चाहिए और इस दौरान साक्ष्य का महत्व अत्यधिक होता है। आईपीएस अधिकारी मीरा ने सुझाव दिया कि एक सप्ताह का ओपन फॉरेंसिक लैब छात्रों के लिए आयोजित किया जाना चाहिए ताकि वे फॉरेंसिक जांच के महत्व को समझ सकें।
इस सत्र में निठारी कांड और लंबित मामलों पर भी चर्चा हुई। अधिकारियों ने कहा कि अदालत में साक्ष्य के बिना कहानी नहीं चल सकती, जिसके कारण कई अपराधी बच जाते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि वर्तमान में फॉरेंसिक लैब में हजारों मामले लंबित हैं। अंत में, अधिकारियों ने यह निष्कर्ष निकाला कि अपराध जांच में पूरी प्रक्रिया और तकनीकी का सही इस्तेमाल बेहद महत्वपूर्ण है, और इसके लिए निरंतर विकास और प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
साइबर अपराध और डिजिटल अरेस्ट पर विशेषज्ञों की महत्वपूर्ण चर्चा
साइबर अपराध पर आयोजित एक सत्र में, साइबर विशेषज्ञ ओ. पी. मिनोचा, आईपीएस अधिकारी वरुण सिंगला, और लेखक मज़हर फारूकी ने इस बढ़ते खतरे पर चर्चा की। पूर्व डीजीपी अशोक कुमार ने भी साइबर अपराध पर अपने प्रभावशाली विचार साझा किए। सत्र का संचालन श्रीष्टी सेठी ने किया, जिसमें साइबर अपराधों और उनके समाधान के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी साझा की गई।
एसपी वरुण सिंगला का बयान
आईपीएस अधिकारी एसपी वरुण सिंगला ने कहा, “साइबर अपराध के दो प्रमुख हिस्से हैं – एक जो भारत के अंदर हो रहा है और दूसरा जो विदेशों से हो रहा है।” उन्होंने मेवात और जमतारा जैसे क्षेत्रों को साइबर अपराध के हब के रूप में पहचाना और बताया कि अपराधी अब नए तरीकों का इस्तेमाल कर लोगों को ठग रहे हैं। “साइबर अपराधी अक्सर लोगों को डर का सामना कराकर डिजिटल अरेस्ट करने का प्रयास करते हैं। वे खुद को पुलिस या सीबीआई अधिकारी बताकर किसी पर ड्रग ट्रांसपोर्टेशन का झूठा आरोप लगा देते हैं। इसका सबसे खतरनाक पहलू यह है कि लोग बिना सही जानकारी के इन अपराधियों के झांसे में आ जाते हैं।”
पूर्व डीजीपी अशोक कुमार का बयान
पूर्व डीजीपी उत्तराखंड अशोक कुमार ने इस बात पर जोर दिया कि साइबर अपराधियों का तरीका लगातार बदलता रहता है, और उनका मोडस ऑपेरांडी दिन-ब-दिन और जटिल हो रहा है। “आजकल, अपराधी साइबर अपराध में लोगों को डराकर डिजिटल अरेस्ट के नाम पर फंसाते हैं। वे खुद को पुलिस या सरकारी अधिकारी के रूप में पेश कर देते हैं और साइबर अपराध का आरोप लगाकर लोगों को परेशान करते हैं। ये अपराधी डर की मनोविज्ञान का इस्तेमाल करते हैं, ताकि लोग बिना सोच-विचार किए उनके झांसे में आ जाएं,” उन्होंने कहा।
उन्होंने यह भी बताया कि डिप-फेक और वॉयस क्लोनिंग जैसी नई तकनीकों का इस्तेमाल अपराधी कर रहे हैं, जिससे यह और भी खतरनाक हो जाता है। उन्होंने कहा – “यह एक बड़ा चैलेंज है क्योंकि अपराधियों की पहचान करना और उन्हें पकड़ना अब और भी मुश्किल हो गया है,” ।
साइबर विशेषज्ञ ओ. पी. मिनोचा का दृष्टिकोण
साइबर विशेषज्ञ ओ. पी. मिनोचा ने इस सत्र में जागरूकता को प्रमुख बताया। उन्होंने कहा, “साइबर अपराधों से बचने के लिए सबसे जरूरी कदम है जागरूकता। किसी अनजान कॉल पर प्रतिक्रिया न दें और किसी भी संदिग्ध व्यक्ति से संपर्क करने से पहले उसकी सत्यता की जांच जरूर करें।” उन्होंने यह भी कहा कि लोगों को इस बारे में जानकारी दी जानी चाहिए कि किस प्रकार साइबर अपराधी उन्हें डराकर उनके साथ धोखाधड़ी कर सकते हैं।
साइबर अपराधों से निपटने के उपाय
इस सत्र में यह भी बात की गई कि साइबर अपराधों से निपटने के लिए और अधिक सतर्कता और तकनीकी उपायों की जरूरत है। अधिकारियों ने यह निष्कर्ष निकाला कि साइबर सुरक्षा के लिए निरंतर प्रशिक्षण और जनता को जागरूक करना बेहद जरूरी है। IPS एसपी वरुण सिंगला ने कहा कि सरकार इस दिशा में काम कर रही है और इस संबंध में समन्वय में वृद्धि की जा रही है।
“स्ट्राइप्स और पॉज़ की सुरक्षा : जानवरों के खिलाफ अपराधों पर संवाद”
क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल के चौथे सत्र का विषय था “स्ट्राइप्स और पॉज़ की सुरक्षा: जानवरों के खिलाफ अपराधों पर संवाद।” इस पैनल चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार गर्गी रावत, पशु अधिकार कार्यकर्ता सामिया अख्तर खान और सीमा शर्मा ने भाग लिया। इस सत्र का संचालन अरीता सरकार ने किया।
गार्गी रावत की टिप्पणी
वरिष्ठ पत्रकार गार्गी रावत ने कहा कि बाघों और तेंदुओं का शिकार देश में बढ़ चुका है। उन्होंने बताया कि “शिकार में वृद्धि हो रही है, और वन विभाग पुलिस के साथ मिलकर इस पर काम कर रहा है। कई बार अदालतों में साक्ष्य के न होने के कारण शिकारियों को बचा लिया जाता है। अब सभी हितधारक बाघों के लिए विशेष क्षेत्र और परिदृश्य बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं, जो एक अच्छा कदम है।”
सीमा शर्मा की राय
पशु अधिकार कार्यकर्ता सीमा शर्मा ने कहा, “पशु क्रूरता से संबंधित कानून बहुत कमजोर हैं। पुलिस पर काम का दबाव बहुत ज्यादा होता है, और कई बार इन मामलों में नेता भी हस्तक्षेप करते हैं।” उन्होंने यह भी कहा, “पशु शोषण अब एक व्यवसाय बन चुका है, क्योंकि यह पैसे कमाने का एक तरीका बन गया है। हालांकि, अब कानून में कुछ बदलाव आया है, और हम अब मामलों को दर्ज करने, जुर्माना लगाने और पीड़ित जानवरों का इलाज करने में सक्षम हैं। वैक्सीनेशन बेहद जरूरी है, लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं देता।”
सीमा शर्मा ने यह भी कहा, “पशु अभिभावकों के रूप में हमें अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे पालतू जानवरों से किसी और को परेशानी न हो।”
मॉडरेटर अरीता सरकार का सवाल
मॉडरेटर अरीता सरकार ने पूछा कि इंसान और जानवरों के बीच एक गहरा संबंध है, लेकिन इस संबंध को बनाए रखने के लिए लोगों को जानवरों की देखभाल और पालन के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है। इस पर सभी पैनलिस्टों ने सहमति व्यक्त की और कहा कि यह शिक्षा का समय है।
सत्र का निष्कर्ष
इस सत्र में जानवरों के खिलाफ अपराधों, कमजोर कानूनों, और जागरूकता की कमी पर चर्चा की गई। पैनलिस्टों ने कहा कि पशु अधिकारों की रक्षा के लिए कानून में सख्ती और शिक्षा के माध्यम से जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, यह भी बताया गया कि पशु पालन और देखभाल के बारे में लोगों को शिक्षित करना समय की जरूरत है।
फेस्ट में फिल्मकार प्रकाश झा, आकाश खुराना, फिल्म लेखक अविनाश सिंह तोमर, पूर्व डीजीपी अशोक कुमार, नवनीत सेकरा, निधि कुलपति, अनिल रतूड़ी, सतीश शर्मा, बंशीधर तिवारी, सिद्धांत अरोरा, रणधीर अरोरा सहित कई लेखकों के सत्र हुए।
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