यूके में “अब्राहमिक पंथों की बेअदबी” पर कानून पर उठे प्रश्न: क्या हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख के अपमान पर बात नहीं होगी?
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यूके में “अब्राहमिक पंथों की बेअदबी” पर कानून पर उठे प्रश्न: क्या हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख के अपमान पर बात नहीं होगी?

रिफॉर्म पार्टी के सांसद Rupert Lowe ने एक्स पर ही लिखा कि “इस्लामोफोबिया अवेयर महीना हो या नहीं- हम कभी भी अपने देश में बेअदबी के कानून को स्वीकार नहीं करेंगे!”

by सोनाली मिश्रा
Nov 30, 2024, 12:04 pm IST
in विश्व, विश्लेषण
blashphemy law in uk
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यूके में कीर स्टर्मर की सरकार द्वारा अब्राहमिक पंथों और उनके पैगंबरों की बेअदबी करने पर सजा या रोक को लेकर लोग प्रश्न कर रहे हैं। वहाँ पर प्रश्न उठ रहे हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जमीन कहे जाने वाले ब्रिटेन में अब बेअदबी की परिभाषा केवल अब्राहमिक पंथों तक ही सिमट कर रह गई है, ऐसा लगता है। 27 नवंबर को यूके में लेबर सांसद ताहिर अली के प्रधानमंत्री से प्रश्नों के मध्य का एक वीडियो वायरल हो रहा है।

उसमें वे प्रधानमंत्री से प्रश्न करते हुए दिखाई दे रहे हैं। वे प्रश्न कर रहे हैं कि “क्या प्रधानमंत्री सभी अब्राहमिक पंथों के धार्मिक ग्रंथों और पैगम्बरों के अपमान पर रोक लगाने के लिए उपाय लागू करने के लिए प्रतिबद्ध होंगे?”

हालांकि, यह वीडियो यहीं पर समाप्त होता है। इस वीडियो में ताहिर के प्रश्न पर लोगों ने तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं दी हैं। इसे लेकर रिफॉर्म पार्टी के सांसद Rupert Lowe ने एक्स पर ही लिखा कि “इस्लामोफोबिया अवेयर महीना हो या नहीं- हम कभी भी अपने देश में बेअदबी के कानून को स्वीकार नहीं करेंगे!”

रिफॉर्म पार्टी अपने देश में बढ़ रहे इस्लामी चरमपंथ के प्रति मुखर हैं और वह अवैध शरणार्थियों को लेकर भी लगातार प्रश्न उठाते रहते हैं। इसी पोस्ट पर आम लोगों ने भी टिप्पणी की है। कई यूजर्स ने कहा कि “बेअदबी शरिया कानून का हिस्सा है। हम किसी भी कीमत पर इसे अनुमति नहीं दे सकते हैं।“

मगर इस वीडियो में दिखाए गए प्रश्न पर प्रधानमंत्री कीर स्टर्मर के उत्तर ने लोगों को चकित कर दिया। कीर स्टर्मर ने कहा कि किसी भी प्रकार का विद्रुपीकरण खराब है और इसकी निंदा सभी सदनों में की जानी चाहिए। इसके साथ ही यह भी कहा कि हर प्रकार के इस्लामोफोबिया से निबटा जाएगा।

इसे लेकर प्रधानमंत्री कीर स्टर्मर की आलोचना हो रही है। नेशनल सेक्युलर सोसाइटी नामक संस्था ने इस कदम की आलोचना करते हुए सरकार से अनुरोध किया है कि वह नए ब्लासफेमी अर्थात बेअदबी के कानूनों की मांग को निरस्त कर दें।

इससे पहले इस संस्था ने यह भी बताया था कि यह कदम और मांग कितनी घातक है। इस संस्था ने लिखा कि अली की ब्लासफेमी कानूनों को दोबारा लागू करने की मांग बहुत घातक है। उन्होंने यह भी कहा कि सांसदों को उन मूल्यों को समाज में लाने पर जोर देना चाहिए, जो यूके के लोकतान्त्रिक समाज के लिए आवश्यक हैं, न कि उन्हें नष्ट करने का प्रयास करें।

प्रश्नोत्तर में एक और सांसद इमरान हुसैन ने प्रधानमंत्री कीर स्टर्मर से यह अनुरोध किया था कि इस्लामोफोबिया की परिभाषा को अपनाया जाए। इमरान हुसैन ने उसी परिभाषा को अपनाने पर जोर दिया था, जिसे ऑल पार्टी पार्लियामेंट्री ग्रुप ऑन ब्रिटिश मुस्लिम्स ने दिया था और जिसे पहले ही सितंबर में समानता कानून के साथ टकराव के चलते सरकार ने अस्वीकार कर दिया था।

spectator.co.uk में एक रिपोर्ट में भी ऐसे ही प्रश्न उठाए गए हैं। इसमें प्रश्न उठाए गए हैं कि क्या इस समय देश के सामने यही सबसे बड़ा मामला है? और ताहिर अली केवल अब्राहमिक पंथों तक ही सीमित क्यों हैं? इसमें प्रश्न किया गया कि क्या मैं अली के आदर्श समाज में विष्णु या गणेश के विषय में अपमानजनक बातें बोलकर आजाद रह सकता हूँ, क्योंकि मैंने कुरान को कुछ नहीं कहा है? इस लेख के लेखक ने प्रश्न किया है कि यदि मैं एक ब्रिटिश हिन्दू होता और इसे सुन रहा होता तो मेरे दिल में अली की मंशा के बारे में चिंताऐं पैदा होतीं।

इसमें प्रधानमंत्री कीर स्टर्मर से भी प्रश्न किया गया है कि यह सच है कि विकृतिकरण एक ताकतवर भावना है और इसी के कारण एक समय में ब्रिटेन में ईसाइयत के सच से इनकार करने वाले लोगों के लिए सजा थी। मगर समय के साथ लोग सहिष्णु हुए और पश्चिमी समाज ने इस विचार को अपनाया कि जहां तक ​​संभव हो, हमें विनम्र और मिलनसार बने रहने का प्रयास करना चाहिए, वहीं हमें खुले समाज में अपमान करने और आक्रामक होने की भी स्वतंत्रता होनी चाहिए। और यही कारण है कि यूके के ब्लैस्फेमी के कानूनों को हटाया गया।

इसमें पाकिस्तान का भी उल्लेख है और कहा गया है कि कैसे सुशासन का नमूना पाकिस्तान में असंख्य कैदी बेअदबी के कानून के कारण मौत की सजा पा चुके हैं या उम्रकैद काट रहे हैं या फिर इनकी कतार में है। ताहिर अली के इस बेअदबी के कानून की बात को लेकर कई उदारवादी मुस्लिम भी चिंता में हैं। वे आलोचना कर रहे हैं।

सोहेल अहमद ने ताहिर अली के इस प्रस्ताव के विषय में एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा कि यह बहुत अपमानजनक है। आप मुस्लिमों को बच्चे जैसा और भावनात्मक दिखा रहे हैं। आप बहुत ही असहिष्णु, स्वतंत्रता विरोधी, तर्क विरोधी, मुक्त भाषण विरोधी और स्पष्ट रूप से ब्रिटिश विरोधी हैं। एक मुसलमान के रूप में, मैं यहाँ ब्रिटेन में आप जैसे सांसदों को नहीं चाहता।

ताहिर अली के प्रस्ताव की तमाम आलोचनाएं सोशल मीडिया पर हैं। परंतु यह बात सत्य है कि इस्लामोफोबिया पर बहस होनी चाहिए और यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि आखिर बेअदबी की आड़ में किस प्रकार स्वतंत्र आवाजों को दबाने का कार्य किया जाता है। यदि अब्राहमिक पंथों के पैगंबरों और उनके पंथों की किताबों का विकृतिकरण अपराध होना चाहिए, तो फिर हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, यजीदी आदि धर्मों के धार्मिक चरित्रों के अपमान पर बात क्यों नहीं होनी चाहिए?

अब्राहमिक पंथों में ईसाई, इस्लाम और यहूदी पंथ आते हैं। क्या पूरी दुनिया में मात्र इन्हीं के धार्मिक अधिकारों पर बात होनी चाहिए? परंतु इन सबसे बढ़कर प्रश्न यह है कि पूरी दुनिया में अपनी मजहबी असहिष्णुता का परिचय देने वाले समुदाय को बेअदबी की इतनी चिंता क्यों है?

ताहिर अली के इस भाषण के विरोध में आम लोग भी आए हैं। रोजर जैक्सन नामक एक यूजर ने लिखा कि “मैं आपको व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता। मुझे नहीं पता कि आप किस तरह के व्यक्ति हैं। मैं सिर्फ़ आपके कामों को देखता हूँ। मैं देखता हूँ कि आप बेअदबी कानून की माँग कर रहे हैं। 2024 में पश्चिमी उदार लोकतंत्र में आप बेअदबी कानून की माँग कर रहे हैं। सच में? मुझे लगता है कि आप महोदय को पता ही नहीं है कि आप कहाँ हैं।“

 

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