केरल में कट्टरपंथी मुसलमानों की जोर-जबरदस्ती और उन्हें तुष्ट करने की कोशिशें चरम पर हैं। हाल ही में कन्नूर जिले के अलक्कोड में मुसलमानों का एक समूह ननों के रहने की इमारत में इस मांग के साथ दाखिल हुआ कि ‘वे वहां नमाज पढ़ना चाहते हैं।’ जब उन्हें अनुमति नहीं दी गई तो कट्टरपंथियों ने ननों से दुर्व्यवहार किया और उन्हें धमकाया। यही नहीं, जिहादियों ने चेम्बाथोन्टी सेंट जॉर्ज फेरोन चर्च से ऊरारा (ईसाइयों का पवित्र प्रतीक चिह्न) छीनकर शौचालय में फेंक दिया। इससे पूर्व मलप्पुरम जिला स्थित पुलमंथोल पलूर सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर के गर्भगृह के पास मुसलमानों को ईद-मिलाद-उन-नबी मनाने की अनुमति देकर मंदिर की परंपराओं को तोड़ा गया था।
इसी तरह की घटना मलप्पुरम जिले के नीलमपुर उप्पादा श्री अयप्पा मंदिर में भी हुई थी। राज्य में वक्फ बोर्ड मनमाने तरीके से एक-एक कर ईसाइयों की संपत्ति पर दावे कर रहा है। भाजपा युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं सांसद तेजस्वी सूर्या ने पलक्कड़ में कहा है कि वक्फ बोर्ड केरल में जमीन जिहाद करता है। यही कारण है कि सिरो-मालाबार चर्च के नेतृत्व में केरल में सैकड़ों चर्च ने वक्फ बोर्ड के विरुद्ध मोर्चा खोल रखा है। सिरो-मालाबार सभा के आर्च डायोसिस ऑक्जिलरी मेट्रोपॉलिटन मार टोनी नीलंकविल ने कहा है कि वक्फ के काले कानून भयावह हैं। चर्च पूरी ताकत से इससे लड़ेगा।
कट्टरपंथियों की जबरदस्ती
दरअसल, अलक्कोड में थालास्सेरी डायोसीज के एक चर्च परिसर में सेंट जॉर्ज हाई स्कूल और चेरुपुष्पम अपर प्राइमरी स्कूल में स्कूल यूथ फेस्टिवल चल रहा था। उसी समय अजीबोगरीब मांग के साथ मुस्लिम छात्रों का एक समूह एक मौलवी के साथ चर्च के पादरी के पास आया और चर्च के प्रांगण में नमाज पढ़ने की मांग की। इस पर पादरी ने कहा कि उनके पास तो दो मस्जिदें हैं, वे वहीं जाकर नमाज पढ़ें। इसके बाद मुस्लिम छात्रों का समूह ननों के पास गया और वहां भी यही मांग रखी। जाहिर है, ननों की प्रतिक्रिया भी पादरी जैसी ही थी। ननों के इनकार करने के बाद मुस्लिम छात्रों ने हंगामा शुरू कर दिया, तब ननों ने पुलिस को सूचना दे दी। पुलिस आई और हंगामा कर रहे मुस्लिम छात्रों को उस परिसर से बाहर कर दिया। शाम में ननों को पता चला कि ‘ऊरारा’ गायब है। खोजने पर वह शौचालय में मिला।
केरल में दूसरी उपासना पद्धति को मानने वालों पर इस्लामवादी प्रभुत्व थोपने का यह नया प्रयास है। कट्टरपंथी मुसलमान न तो देश के कानून को मानते हैं और न ही संविधान को। ऊपर से वक्फ बोर्ड की मनमानी। उनकी कबीलाई मानसिकता गाहे-बगाहे केरल में दिखाई देती है। इसी वर्ष मलप्पुरम जिले के पुलमंथोल पलूर सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर के गर्भगृह के सामने मुसलमानों ने जूते पहन कर ईद-मिलाद-उन-नबी पर इस्लामी कला का प्रदर्शन किया था, जहां हिंदू श्रद्धालु न केवल नंगे पैर जाते हैं, बल्कि पारंपरिक रूप से स्वीकार्य पोशाक पहन कर जाते हैं।
यह हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं आहत करने वाली हरकत नहीं है तो और क्या है? हालांकि इसके लिए मंदिर के पदाधिकारी सीधे-सीधे जिम्मेदार थे, क्योंकि उनकी अनुमति के बाद ही यह सब हुआ। उन्हें इसका ध्यान रखना चाहिए था कि तथाकथित पंथनिरपेक्षता साबित करने के लिए मंदिर कोई साधन नहीं है, जिसे अपवित्र कर समुदाय विशेष को तुष्ट किया जाए। इसी तरह की घटना दोबारा मलप्पुरम के नीलमपुर उप्पादा श्रीअयप्पा मंदिर में हुई।
प्रश्न है कि गैर-हिंदू आस्था वालों को मंदिर में नमाज की अनुमति देने का औचित्य है? ऐसी गतिविधियां मंदिर की पहचान के लिए एक चुनौती है। सस्ती लोकप्रियता के लिए मंदिर की परंपराओं का अपमान करने का अधिकार किसी को नहीं है। ऐसे तो किसी दिन वक्फ बोर्ड इस मजहबी प्रथा का हवाला देकर मंदिर या उसकी संपत्ति पर दावा कर देगा, तब क्या तथाकथित पंथनिरपेक्ष लोग कुछ बोलेंगे? दूसरी बात, किसी की उपासना का सम्मान करने का मतलब यह नहीं कि अपनी आस्था को ही कमजोर कर दें। ये वही लोग हैं, जो कहते हैं कि मंदिर प्रशासन समिति को फर्जी हिंदू निंयंत्रित करते हैं। वे छद्म पंथनिरपेक्षता के प्रभाव में हैं, जो खतरनाक सांप्रदायिकता जैसा है। गौरतलब है कि पुलमंथोल मंदिर की प्रबंधन समिति एक परिवार के अधीन है।
मुस्लिम-ईसाई एकता टूटी
केरल में पिछले 70 वर्ष से मुस्लिम और ईसाई एकजुट होकर हिंदुओं को सता रहे थे। लेकिन अब दोनों अलग हो गए हैं। इसका कारण यह है कि एक ओर कट्टरपंथी ईसाई लड़कियों को लव जिहाद का शिकार बना रहे हैं और उनके उपासना स्थलों पर जबरन नमाज पढ़ने की कोशिश भी कर रहे हैं। दूसरी ओर, वक्फ बोर्ड ईसाइयों की संपत्ति पर कब्जा करने के प्रयास में लगा है। इन कारणों से दोनों के संबंधों में खटास आ गई है। इसलिए अब दोनों के रास्ते अलग हो गए हैं। लोकसभा चुनाव से पहले चर्च ने ईसाई छात्राओं को लव जिहाद के प्रति जागरूक करने के लिए उन्हें ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म दिखाई थी।
महत्वपूर्ण बात यह है कि जब कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा ईसाई लड़कियों को लव जिहाद के कुचक्र में फंसाया जा रहा था, तब कोई छद्म धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक मोर्चा उन्हें बचाने तो दूर, सांत्वना देने भी नहीं आया। उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा से प्रेरित संगठन ही पीड़ित ईसाई परिवारों की सहायता के लिए आगे आए। इसका कारण यह है कि अधिकांश मामलों में चर्च असहाय हैं, क्योंकि वामपंथी सरकार में पुलिस भी उनकी मदद नहीं करती। उदाहरण के लिए, इस्लामी गतिविधियों के लिए कुख्यात मुनंबम में 620 परिवार रहते हैं, जिनमें लगभग 400 परिवार ईसाई हैं।
गत 12 नवंबर को तिरुअनंतपुरम में एक विशाल ईसाई एकजुटता सम्मेलन आयोजित किया गया था। कट्टरपंथी मुसलमानों के विरुद्ध पालयम शहीद स्तंभ के पास आयोजित इस सम्मेलन में कैथोलिक डायोसिस, विभिन्न ईसाई संप्रदायों और सामाजिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक संगठनों से जुड़े नेता भी शामिल हुए थे। नेताओं ने सभा को संबोधित किया। सम्मेलन के उद्घाटन संबोधन में लैटिन आर्क बिशप थॉमस जे. नेट्टो ने वक्फ बोर्ड के कुत्सित प्रयासों पर आश्चर्य जताते हुए कहा कि सरकारी एजेंसियों को ऐसे मामलों में तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए।
जब समाज अन्यायपूर्ण नियमों-कानूनों से पीड़ित हो तो समाधान भी होना चाहिए। केरल क्षेत्र के लैटिन कैथोलिक काउंसिल के सचिव थॉमस थारायिल का कहना था कि वे कुछ नेताओं का यह उदार बयान नहीं चाहते कि मुनंबम के लोगों को बेदखल नहीं किया जाएगा। चर्च मुनंबम में वक्फ के आतंक के स्थायी समाधान से कम किसी समझौते के लिए तैयार नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी खबरें हैं कि वक्फ बोर्ड को मुनंबम के बराबर कासरगोड में जमीन दी जाएगी। इस तरह पुरस्कार स्वरूप सरकारी भूमि नि:शुल्क बांटने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
तिरुअनंतपुरम के लैटिन आर्क डायोसिस के पादरी युगीन एच. परेरा ने कहा कि तत्काल एक सर्वदलीय बैठक बुलाई जाए और मुनंबरम के लोगों की जमीन और जन्मसिद्ध अधिकारों की रक्षा के लिए रास्ता निकाला जाए। इसी तरह, अन्य चर्च प्रतिनिधियों ने कट्टरपंथी मुसलमानों के विरुद्ध ईसाइयों से एकजुट होने का आह्वान करते हुए मुनंबम में वक्फ बोर्ड द्वारा प्रताड़ित ईसाइयों को तत्काल न्याय देने की मांग की। इसी तरह, 17 नवंबर को त्रिशूर के चावक्कड़ में पलायूर फोरेन द्वारा आयोजित एक विरोध रैली को संबोधित करते हुए सिरो-मालाबार सभा के आर्क डायोसिस ऑक्जिलरी मेट्रोपॉलिटन मार टोनी नीलंकविल ने कहा कि वक्फ बोर्ड नाजायज तरीके से जमीन हड़पने में लगा हुआ है।
भाकपा (सीपीआई) के राज्य सचिव बिनॉय विश्वम और वरिष्ठ कांग्रेस नेता वी.एम. सुधीरन ने भी सम्मेलन को संबोधित किया। लेकिन दूसरे दिन सुधीरन को ‘सत्याग्रह पंडाल’ में प्रवेश की अनुमति ही नहीं दी गई। दरअसल, माकपा की अगुआई वाले वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार में भाकपा भागीदार है, जबकि सुधीरन की पार्टी विपक्षी गठबंधन यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) का नेतृत्व करती है। इन दोनों ने एकजुट होकर वक्फ संशोधन विधेयक के विरुद्ध केरल विधानसभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया था। वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान से पीड़ित ईसाइयों को सांत्वना मिली है कि चाहे कुछ भी हो, वक्फ संशोधन विधेयक पारित होगा।
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