नई दिल्ली । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि अध्यात्म एवं विज्ञान में कोई विरोध नहीं है। विज्ञान में भी और अध्यात्म में भी श्रद्धायुक्त व्यक्ति को ही न्याय मिलता है। अपने साधन एवं ज्ञान का अहंकार जिसके पास होता है, उसे नहीं मिलता है। श्रद्धा में अंधत्व का कोई स्थान नहीं है। जानो और मानो यही श्रद्धा है, परिश्रमपूर्वक मन में धारण की हुई श्रद्धा।
पूजनीय सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी मंगलवार को नई दिल्ली में मुकुल कानिटकर द्वारा लिखित एवं आई व्यू एंटरप्रायजेस द्वारा प्रकाशित जीवन मूल्यों पर आधारित पुस्तक ‘बनाएं जीवन प्राणवान’ के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे। दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में आयोजित इस पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में पंचदशनाम जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर पू. स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूजनीय सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि गत 2000 वर्षों से विश्व अहंकार के प्रभाव में चला है। मैं अपने ज्ञानेन्द्रिय से जो ज्ञान प्राप्त करता हूं वही सही है उसके पर एक कुछ भी नहीं है, इस सोच के साथ मानव तब से चला है जब से विज्ञान का अदुर्भाव हुआ है। परंतु यही सब कुछ नहीं है। विज्ञान का भी एक दायरा है, एक मर्यादा है। उसके आगे कुछ नहीं, यह मानना गलत है।
उन्होंने कहा कि यह भारतीय सनातन संस्कृति की विशेषता है कि हमने बाहर देखने के साथ-साथ अंदर देखना भी प्रारंभ किया। हमने अंदर तह तक जाकर जीवन के सत्य को जान लिया। इसका और विज्ञान का विरोध होने का कोई कारण नहीं है। जानो तब मानो। अध्यात्म में भी यही पद्धति है। साधन अलग है। अध्यात्म में साधन मन है। मन की ऊर्जा प्राण से आती है। यह प्राण की शक्ति जितनी प्रबल होती है उतना ही उसे पथ पर आगे जाने के लिए आदमी समर्थ होता है।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि पंचदशनाम जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर पू स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज ने कहा कि प्राण का आधार परमात्मा है जो सर्वत्र है। प्राण की सत्ता परमात्मा से ही है, उसमें स्पंदन है, उसी से चेतना है, उसी से अभिव्यक्ति है, उसी से रस संचार है और वहीं जीवन है। प्राण चैतन्य होता है।
पुस्तक के लेखक श्री मुकुल कानिटकर जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति में सब कुछ वैज्ञानिक है। आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र, स्थापत्य के साथ ही दिनचर्या और ऋतुचर्या के सभी नियम भी बिना कारण के नहीं है। हज़ार वर्षों के संघर्षकाल में इस शास्त्र का मूल तत्व विस्मृत हो गया। वही प्राणविद्या है। सारी सृष्टि में प्राण आप्लावित है। उसकी मात्रा और सत्व-रज-तम गुणों के अनुसार ही भारत में जीवन चलता है।
विभिन्न शास्त्र ग्रंथों में दिए तत्वों को इस पुस्तक में सहज भाषा में प्रस्तुत करने का प्रयत्न हुआ है। नई पीढ़ी के मन में आनेवाले सामान्य संदेहों के शास्त्रीय कारण स्पष्ट करने में सहयोगी होगी।
इस दौरान मुकुल कानिटकर ने उपस्थित श्रोताओं को मुद्राभ्यास द्वारा व्यान प्राण की अनुभूति करवाई।
बता दें कि मुकुल कानिटकर द्वारा लिखित पुस्तक बनाएं जीवन प्राणवान हिन्दू जीवन मूल्यों को समर्पित है। आई व्यू एंटरप्राइजेज द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक भारतीयता के गूढ़ रहस्यों और हिंदुत्व के सनातन दर्शन पर आधारित है, जिसमें प्राचीन ऋषियों के सिद्धांतों और उनके व्यावहारिक उपयोग को प्रस्तुत किया गया है।
यह पुस्तक प्राण की महत्ता और भारतीय जीवनशैली में इसकी केंद्रीय भूमिका को रेखांकित करती है। मुकुल कानिटकर ने इस पुस्तक के माध्यम से भारतीयता को समझने के लिए बाहरी निरीक्षण से अधिक आंतरिक अनुभव और अभ्यास की आवश्यकता का महत्व बताया है।
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