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ममता राज,‘मुगलिस्तान’ की राह

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नाजिया इलाही खान

पिछले कई वर्ष से पश्चिम बंगाल की छवि एक ऐसे राज्य की बन चुकी है, जहां आए दिन दंगा—फसाद होता रहता है। लेकिन राज्य का मीडिया इसे दबा देता है या फिर एक कॉलम में इसे समेट देता है। दरअसल यहां के समाचार पत्र और टीवी चैनल सत्ता के शिकंजे में हैं, इसलिए सच लिखना या दिखा पाना इनके लिए संभव नहीं है। ऐसे में मुख्य धारा मीडिया के कुछ समाचार पत्र और टीवी चैनल ही राज्य के हिन्दुओं की आवाज उठाते नजर आते हैं। कुछ दिन पहले मुर्शिदाबाद जिले के बेलडांगा में कार्तिक पूजा पर जिहादियों ने हमला किया।

भगवान की प्रतिमा नष्ट कर दी और पंडाल के आस-पास आगजनी की। इस्लामिक जिहादियों ने पुलिस की मौजूदगी में दंगा-फसाद, पत्थरबाजी सब कुछ किया। यह भी खबर आई कि जिहादियों ने पुलिस प्रशासन को भी निशाना बनाया। हैरान करने वाली बात यह रही कि जिन दंगाइयों ने यह हिंसा की, स्थानीय प्रशासन ने उनके ऊपर कोई कार्रवाई नहीं की, उलटे हिंदू समुदाय के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर युवाओं को पुलिस द्वारा प्रताड़ित करने का सिलसिला शुरू हो गया। इस पूरे प्रकरण में हैरनी की बात यह भी रही कि जहां संविधान या नए कानून—2019 के बीएनएस, बीएनएसएस या पुराने कानून आईपीसी या सीआरपीसी में ईशनिंदा की कोई धारा नहीं है, वहीं पश्चिम बंगाल में ईशनिंदा की शिकायत पत्र पर धाराएं पैदा की जा रही हैं।

घटते हिंदू, बढ़ता खतरा

लेफ्टिनेंट कर्नल यूएन मुखर्जी ने लगभग 110 साल पहले एक पुस्तक लिखी थी। उस पुस्तक का नाम है Hindu, a dying race यानी ‘हिन्दू, एक मरती हुई नस्ल’। आजादी के 33 साल पहले लिखी गई इस पुस्तक में मुखर्जी ने पाकिस्तान बनने की भविष्यवाणी कर दी थी। 1914 में लिखी इस पुस्तक का आधार 1911 की जनगणना थी। आज से 110 साल पहले मुखर्जी ने जो महसूस किया, समय बीतने के साथ उसे भारत के मानस ने भी महसूस किया है। लेकिन आजादी के बाद लम्बे समय तक सत्ता में रहने वाली ताकतों ने बदलती जनसांख्यिकी को लेकर जिस तरह आंखें मूंदीं या कहें कि उलटे इसे हवा ही दी, उसने बड़े खतरे का रास्ता ही तैयार किया।

देश के अलग-अलग हिस्सों में होने वाले नरसंहारों और दंगों पर गौर करें। उनके इतिहास, भूगोल और वर्तमान पर नजर डालें। उनकी विचारधाराओं को खंगालें। सच उभरकर सामने आ जाएगा। इसकी सबसे बड़ी वजह है इस्लामिक कट्टरवाद। काबुल से लेकर ढाका तक हिन्दू शरीयत के राज में समाप्त हो गए और सनातन मार्ग पर चलने वालों के लिए जो जमीन बची, उसे हिन्दुओं के लिए ‘मॉडर्न संविधान’ के आधार पर टिकाया गया। इसमें मुसलमानों के लिए शरीयत की छूट है, कन्वर्जन की छूट है, चार निकाह की छूट है, अलग पर्सनल लॉ की छूट है, हिन्दू तीर्थों पर कब्जे की छूट है। वोट बैंक के लिए इनसे आंखें चुराने और शह देने का सिलसिला जारी है। यह प्रवृत्ति आज राष्ट्र के अस्तित्व के लिए चुनौती के रूप में उभरी है।

1947 में सीरिल जॉन रेडक्लिफ ने अविभाजित भारत के नक्शे पर एक लाइन खींचकर दो देश बना दिए। भारत इसलिए बंटा क्योंकि भारतीय मुसलमानों ने मजहब के आधार पर मुस्लिम लीग के उम्मीदवारों को थोक के भाव जिताया। लेकिन मुस्लिम लीग के 28 विजयी प्रतिनिधि पाकिस्तान की जगह भारत की संविधान सभा में शामिल हुए। पाकिस्तान तो बनवा लिया, पर ये लोग पाकिस्तान गए ही नहीं। यह वोट बैंक का असर है। थोक वोट बैंक की परिणति है। इस थोक वोट बैंक के असर को तब की कांग्रेस और आज की कांग्रेस जैसी पार्टियों ने गहराई से समझा और अब तक उसे भुनाने की कोशिश जारी है। मकसद है देश भले बंट जाए लेकिन सत्ता बनी रहे। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आज उसी राह पर यानी मुस्लिमपरस्ती की दिशा में सरपट दौड़ रही हैं।

ममता बनर्जी ने अपनी तानाशाही में मुस्लिम तुष्टीकरण के नाम पर हिंदुओं के खिलाफ कई ऐसे कदम उठाए हैं, जिनसे लगता है कि वे पश्चिम बंगाल को बांग्लादेश, पाकिस्तान या फिर अफगानिस्तान बनाने पर तुली हैं। ममता बनर्जी की वोट बैंक की राजनीति के कारण बंगाल के कई इलाके मुस्लिम बहुल हो चुके हैं और हिंदुओं का इन इलाकों में जीना दूभर हो गया है। राज्य में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या एक करोड़ से भी ज्यादा हो चुकी है। इस घुसपैठ ने राज्य की जनसंख्या के समीकरण को बदल दिया है। उन्हें सियासत के चक्कर में देश में वोटर कार्ड, राशन कार्ड जैसी सुविधाएं मुहैया करवा दी जाती हैं और इसी आधार पर वे देश की आबादी से जुड़ जाते हैं।

इन्हें बांग्लादेश के रास्ते पहले पश्चिम बंगाल में प्रवेश दिलाया जाता है। फिर राशन कार्ड, आधार कार्ड, वोटर कार्ड बनवाकर जम्मू से केरल तक पहुंचा दिया जाता है। नौबत यहां तक आ गई हैै कि ममता बनर्जी के करीबी और तृणमूल कांग्रेस के नेता फिरहाद हकीम कोलकाता के ही एक हिस्से को ‘मिनी पाकिस्तान’ कहते हैं और पाकिस्तानी पत्रकार को वहां घुमाने ले जाते हैं। इसकी वजह पश्चिम बंगाल की जनसांख्यिकी है, जिसका असर राजधानी कोलकाता से लेकर पूरे राज्य में दिखता है।

भारत के दस सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाले राज्यों की सूची देखें तो दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल आता है। 2011 की जनगणना के मुताबिक पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की आबादी 2.46 करोड़ है। लेकिन घुसपैठ की वजह से यह संख्या असल में कहां तक पहुंच चुकी है, इसे दावे से कोई नहीं बता सकता। यहां की ममता बनर्जी सरकार को अपनी इस मुस्लिम परस्त राजनीति का लाभ भी मिला। 2021 में हुए चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने 42 मुसलमानों को टिकट दिए और केवल एक की हार हुई।

दरअसल, बांग्लादेशी मुसलमानों को 1971 से एक योजना के तहत पूर्वोत्तर भारत, बंगाल, बिहार और दूसरे प्रांतों में बसा कर ‘इस्लामिस्तान’ बनाने की योजना चल रही है। फरवरी, 2018 में तब के सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने इस ओर इशारा किया था। लेकिन सत्ता के लिए मुसलमानों को वोटबैंक की तरह इस्तेमाल करने वालों को दुश्मन मुल्कों के मुसलमानों पर प्रेम लुटाने और उन्हें अपनी हद में पनाह देने से भी गुरेज नहीं है। कुछ समय पहले अमेरिकी पत्रकार जेनेट लेवी ने अपने लेख The Muslim Takeover of West Bengal में ऐसी आशंका भी व्यक्त की है कि पश्चिम बंगाल जल्द ही एक इस्लामिक देश बन जाएगा! जेनेट लेवी ने दावा किया है कि भारत का एक और विभाजन होगा और वह भी तलवार के दम पर।

जेनेट के दावे कपोल-कल्पना नहीं हैं। आशंका व्यक्त की गई है कि कश्मीर के बाद अब पश्चिम बंगाल में गृहयुद्ध होगा और अलग देश की मांग की जाएगी। बड़े पैमाने पर हिंदुओं का कत्लेआम होगा और मुगलिस्तान की मांग की जाएगी। उन्होंने यह भी दावा किया है कि यह सब ममता बनर्जी की सहमति से होगा। जेनेट लेवी ने आगे कहा है कि 2013 में पहली बार बंगाल के कुछ कट्टरपंथी मौलानाओं ने अलग ‘मुगलिस्तान’ की मांग शुरू की। इसी साल बंगाल में हुए दंगों में सैकड़ों हिंदुओं के घर और दुकानें लूट ली गईं और कई मंदिरों को तोड़ दिया गया।

इन दंगों में सरकार द्वारा पुलिस को ये आदेश दिए गए कि वह दंगाइयों के खिलाफ कुछ ना करे। जेनेट लेवी ने इसके लिए बंगाल के जनसांख्यिकीय असंतुलन को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने हिंदुओं की घटती और मुस्लिमों की तेजी से बढ़ती आबादी का जिक्र करते हुए देश के एक और विभाजन की तस्वीर प्रस्तुत की है।

अब कुछ तथ्यों पर गौर करें। स्वतंत्रता के समय पूर्वी बंगाल में हिंदुओं की आबादी 30 प्रतिशत थी, लेकिन अब यह घटकर 8 प्रतिशत से भी कम हो चुकी है। जबकि पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की आबादी 27 प्रतिशत से अधिक हो चुकी है। इतना ही नहीं, कई जिलों में तो यह आबादी 63 प्रतिशत तक है। दुनिया के जिस हिस्से में भी मुस्लिम संगठित होकर रहते हैं, वहां 27 फीसदी आबादी होते ही इस्लामिक शरिया कानून की मांग करते हुए अलग देश बनाने तक की मांग करने लगते हैं। इसलिए बंगाल में जनसांख्यिक बदलाव और ममता बनर्जी सरकार के रवैये को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

कानून का डर खत्म

वस्तुत: राज्य की जमीनी हकीकत इन तमाम अंदेशों से मेल खाती है। पश्चिम बंगाल में जहां मुसलमानों की सघन आबादी है, वहां हिन्दू कारोबारियों का अघोषित बहिष्कार होता है। मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तरी दिनाजपुर जिलों में मुसलमान हिन्दुओं की दुकानों से सामान नहीं खरीदते। इन इलाकों में जबरन कन्वर्जन अब सामान्य बात हो चुकी है। कन्वर्जन और बहिष्कार यहां से हिंदुओं के पलायन की बड़ी वजहें हैं। इन जिलों में हिन्दू बहुसंख्यक से अल्पसंख्यक होने लगे हैं।

पश्चिम बंगाल के मुसलमानों में अब कानून का डर नहीं रहा है। खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का हिन्दू त्योहारों को लेकर जैसा रवैया रहता है, वह भी इसकी बड़ी वजह है। मोहर्रम के जुलूस को ‘परंपरा’ और रामनवमी की शोभायात्रा को ‘साम्प्रदायिक’ कहने के पीछे मुस्लिम तुष्टीकरण वाली मानसिकता ही है। जय श्रीराम नारे को लेकर ममता की नफरत अब किसी से छिपी नहीं रही है। दशहरे की शोभा यात्रा पर पाबंदी, हनुमान जयंती पर श्रद्धालुओं पर लाठीचार्ज, कई गांवों में दुर्गा पूजा और सरस्वती पूजा पर रोक जैसे हालात इसी मानसिकता की बानगी हैं।

ममता सरकार की मानसिकता ही नहीं, कुछ तथ्य भी पश्चिम बंगाल सरकार के सच को उजागर करते हैं। एक सच राज्य में हिन्दुओं की आबादी में लगातार गिरावट से सामने आता है। पश्चिम बंगाल में 2011 की जनगणना ने खतरनाक जनसंख्यिकीय तथ्यों को उजागर किया था। जब सम्पूर्ण देश के स्तर पर हिन्दू आबादी 0.7 प्रतिशत कम हुई है तो वहीं केवल बंगाल में ही हिन्दुओं की आबादी में 1.94 प्रतिशत की गिरावट आई है। यह बहुत ज्यादा है। राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों की आबादी में 0.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जबकि केवल बंगाल में मुसलमानों की आबादी 1.77 फीसदी की दर से बढ़ी है, जो राष्ट्रीय स्तर से दुगुनी से भी अधिक है।

हिन्दू विहीन हो रहे गांव

बंगाल की जनसांख्यिकी में आया बदलाव वाकई डरावना है। एक रिपोर्ट के मुताबिक प. बंगाल के 38,000 गांवों में 8000 गांव ऐसे हैं, जहां एक भी हिन्दू नहीं रहता। इसका मतलब यह है कि यहां से हिन्दुओं को भगा दिया गया है। बंगाल के तीन जिले, जहां मुस्लिमों की जनसंख्या बहुमत में है, वे हैं मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तरी दिनाजपुर। मुर्शिदाबाद में 47 लाख मुस्लिम और 23 लाख हिन्दू हैं। इसी तरह मालदा में 20 लाख मुस्लिम और 19 लाख हिन्दू हैं तो उत्तरी दिनाजपुर में 15 लाख मुस्लिम और 14 लाख हिन्दू हैं।

दरअसल बांग्लादेश से आए घुसपैठिए प. बंगाल के सीमावर्ती जिलों के मुसलमानों से हाथ मिलाकर गांवों से हिन्दुओं को भगा रहे हैं और हिन्दू डर के मारे अपना घर-दुकान-मकान छोड़कर शहरों में आकर बस रहे हैं। अब इसका बुरा असर तो होगा ही। हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार आम हैं। मजहबी नफरत से भरे फतवे जारी होने आम हो गए हैं। मैं खुद इसकी भुक्तभोगी हूं, जिसे ‘सिर तन से जुदा’ गिरोह के फतवे का सामना आयेदिन करना पड़ता है।

(लेखिका सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता हैं।)

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