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‘आज भी सिहर उठता हूं’

गोधरा कांड के प्रत्यक्षदर्शी जनक भाई पंचाल को आज भी वह भयावह दृश्य परेशान करता है। मीडिया और कुछ संगठनों ने पैसे का लालच देकर उनसे झूठ बोलने को कहा, पर वे सत्य पर अडिग रहे

by पाञ्चजन्य ब्यूरो
Nov 25, 2024, 12:42 pm IST
in विश्लेषण, गुजरात
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गोधरा कांड के प्रत्यक्षदर्शी जनक भाई पंचाल कहते हैं, ‘‘घटना वाले दिन हम उसी ट्रेन में थे। इस घटना में कट्टरपंथियों ने जिन 58 लोगों को जिंदा जला दिया था, उनमें मेरे स्वजन और मित्रों सहित 21 लोग थे। वे सभी कॉलोनी में साथ रहते थे। रात को हम लोगों ने ट्रेन में भजन-कीर्तन किया था। अक्सर यह ट्रेन सुबह 4-5 बजे आ जाया करती थी, लेकिन उस दिन ट्रेन देरी से चल रही थी। इसलिए सुबह 7 बजे के बाद गोधरा स्टेशन पर आई।

जब हम लोग स्टेशन पर कुछ खाने-पीने का सामान लेने के लिए उतरे तो स्टेशन के ठीक सामने लगभग 2000 लोग दिखे। सामान लेकर हम अपनी-अपनी जगह बैठ गए। ट्रेन चलने लगी, तब कट्टरपंथियों की भीड़ ने चेन खींच दी, जिससे ट्रेन कुछ फर्लांग आगे सिंगल फालिया पर खड़ी हो गई। कट्टरपंथियों ने देखते-देखते ट्रेन को चारों तरफ से घेर लिया। सभी हथियारों से लैस थे। उन्होंने पथराव शुरू कर दिया। उनके ठीक सामने एस-6 कोच था। हमने तत्काल दरवाजे और खिड़कियां बंद कर दीं। स्थिति बहुत भयावह थी। उस समय कोच के अंदर बैठे लोग इतने डरे हुए थे कि उसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती।’’

पंचाल ने आगे बताया, ‘‘हमने तय किया कि अंदर रहे तब भी मरना है और बाहर निकले तब भी मरना है। इसलिए दरवाजा खोलकर हम लोग नीचे उतरे और हमलावरों की तरफ दौड़े। वे भागे तो हमने उनका पीछा किया। जब हमने पीछे मुड़कर देखा तो पूरी ट्रेन धू-धू कर जल रही थी। देखते ही देखते आग ने इतना विकराल रूप ले लिया कि उस पर काबू पाना असंभव था। हमने ट्रेन के अंदर जाने की कोशिश की तो हमें रोक दिया गया। उस समय ट्रेन के अंदर हमारे परिवार के लोग थे। उन्हें किसी तरह निकाला गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। आग बुझाने वाली दमकल की गाड़ियां देर से पहुंचीं, क्योंकि उपद्रवियों ने उन्हें रास्ते में रोक लिया था और दमकलकर्मियों को पीटा भी था। जो 58 लोग बलिदान हुए, उनमें एक परिवार के माता-पिता एवं दो भाई भी थे।

मेरे भाई शैलेश पंचाल ने गले में साईं बाबा का लॉकेट पहना हुआ था, उससे उसकी पहचान हुई। एक लड़की की पहचान जींस के छोटे टुकड़े से हुई, जो उसने पहन रखी थी। इसी तरह, कुछ लोगों की जेब में मिली चीजों आदि से पहचान हुई। हम जिस डिब्बे में थे, उसमें 4 लोग प्रवासी भी थे, जिनमें एक महिला और दो बच्चे थे। मां अपने दोनों बच्चों को हाथों से समेटे हुए थी। वह गर्भवती थी। उसका पेट जल रहा था और पेट के अंदर का बच्चा स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था। वह दृश्य आज तक मेरे मन-मस्तिष्क से नहीं निकला है।’’

हालांकि, उस वीभत्स घटना को दो दशक से अधिक समय बीत गया लेकिन आज भी जनक भाई उसे भुला नहीं पाए। अक्सर वह दृश्य उनकी आंखों के सामने घूमता है और वे परेशान हो उठते हैं। उन्हें लगता है कि घटना में मारे गए लोग आज भी उनके आसपास हैं। घटना के बाद दो वर्ष तक तो वे पूरी तरह सदमे में थे। इस दौरान उन्हें हर व्यक्ति निर्जीव दिखता था। गोधरा कांड के प्रत्यक्षदर्शी होने के कारण कई मीडियाकर्मी और संगठनों के लोग उनके पास आते थे। वे उन्हें पैसे का लालच देते थे और कहते थे कि जैसा वे कहें, वैसा बोलें, उनकी हां में हां मिलाएं। लेकिन उन्होंने साफ कहा कि वे जब भी बोलेंगे, सच ही बोलेंगे। उन लोगों के बताए अनुसार नहीं। वे दुखी स्वर में कहते हैं कि घटना के बाद जो माहौल बना, उसमें सच्चाई कम और राजनीति ज्यादा होरही थी।

‘साबरमती’ की करुण गाथा

 

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