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Bangladesh: जिस देश के किया कत्लेआम अब उसके छात्रों को ढाका विश्वविद्यालय में मिलेगा दाखिला

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WEB DESK

रजाकारों के वंशज बांग्लादेश के कट्टरपंथी शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से ही पाकिस्तान की ओर पींगें बढ़ाते दिखे हैं। कोशिश की जा रही है कि इस्लाम के नाम पर उस आतताई की गोद में बैठकर उसी की तरह ‘दर—दर भीख’ मांगी जाए और शरिया के नाम पर हिन्दुओं का सफाया किया जाए।


भारत के बंटवारे के बाद तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान पर इस्लामाबाद के फौजियों ने लाखों लोगों का कत्ल किया था, महिलाओं और बच्चों को गाजर—मूली की तरह काट डाला था, लाशों के अंबार लगाए थे। भारत की मदद से उसी पूर्वी पाकिस्तान से बना आज का बांग्लादेश अब पाकिस्तान को गले लगाने को तैयार बैठा है। बांग्लादेश में परोक्ष रूप से कुर्सी पर बैठे मजहबी उन्मादियों ने मजहब के नाम पर जिहादी पाकिस्तान के छात्रों के लिए अपने विश्वविद्यालयों के दरवाजे खोलने का मन बना ​लिया है।

ढाका विश्वविद्यालय सहित देश के अन्य विश्वविद्यालयों में आतताई पाकिस्तान के छात्रों के दाखिले पर वर्षों से लगा प्रतिबंध हटने जा रहा है। साफ है कि बांग्लादेश के कट्टरपंथी जिन्ना के मजहबी उन्मादी देश के जिहादियों के हाथों में खेलकर बांग्लादेश की रही—सही अस्मिता भी लुटाने को तैयार हैं। माना जा रहा है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच दूरियां पाटने के रास्ते का खाका जिन्ना के देश की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने रचा है।

5 अगस्त 2024 को कथित छात्र आंदोलन के नाम पर बांग्लादेश में अराजकता फैलाकर तत्कालीन हसीना सरकार को कुर्सी से हटाने का खाका भी कथित तौर पर आईएसआई ने ही रचा था। अब वहां के मजहबी उन्मादी सीधे तौर पर आईएसआई के हाथों में खेल रहे हैं और दुनिया को दिखाने के लिए नोबुल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार में मुख्य सलाहकार बनाकर बैठा दिया गया है।

ढाका विश्वविद्यालय

रजाकारों के वंशज बांग्लादेश के कट्टरपंथी शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से ही पाकिस्तान की ओर पींगें बढ़ाते दिखे हैं। कोशिश की जा रही है कि इस्लाम के नाम पर उस आतताई की गोद में बैठकर उसी की तरह ‘दर—दर भीख’ मांगी जाए और शरिया के नाम पर हिन्दुओं का सफाया किया जाए।

14 दिसंबर 2015 को पाकिस्तानी छात्रों के दाखिले पर प्रतिबंध लगाया गया था। पाकिस्तान के किसी भी शैक्षिक संस्थान से संबंध न रखने का फैसला ढाका विश्वविद्यालय के तब के कुलपति प्रोफेसर आरेफिन सिद्दीक की पहल पर शैक्षिक संघ ने ही लिया था।

बांग्लादेश की ओर से इसे शिक्षा के क्षेत्र में द्विपक्षीय संबंध बनाने की पहल बताई जा रही है। बांग्लादेश में राजधानी ढाका का विश्वविद्यालय उस देश का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय माना जाता है। पाकिस्तानी छात्रों के नाम पर वहां मजहबी उन्मादी तत्वों के आने पर कोई रोक नहीं रह जाएगी। ‘छात्र’ बनकर आईएसआई के एजेंट भी उस देश में अपना षड्यंत्र रचेंगे, इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता।

पाकिस्तानी छात्रों के दाखिले के संबंध में विश्वविद्यालय की उपकुलपति (प्रशासन) प्रो. सायमा हक ने बताया कि पाकिस्तान के छात्र भी अब ढाका विश्वविद्यालय में प्रवेश पा सकते हैं। इतना ही नहीं, बांग्लादेश के छात्र भी पाकिस्तान जाकर ‘उच्च शिक्षा’ ले सकते हैं। मजहबी उन्मादियों के देश पाकिस्तान में ‘उच्च शिक्षा’ किसी मजाक से कम नहीं लगता।

उपकुलपति प्रो. सायमा का कहना है कि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर नियाज़ अहमद खान के पास संबंधित दस्तावेज भेजे गए हैं। उनके उन पर हस्ताक्षर करने के बाद पाकिस्तानी छात्रों के दाखिले का रास्ता साफ हो जाएगा। खान अभी विदेश में हैं और उनके लौटते ही यह निर्णय लागू हो जाएगा।

वैसे, बताया यह भी गया है कि पहल पाकिस्तान की तरफ से ढाका विश्वविद्यालय के छात्रों तथा प्रोफेसरों को स्कॉलरशिप तथा गोष्ठियों में आने के न्योते से की गई। यह होने पर सोचा गया कि क्यों न पाकिस्तान से छात्रों को अपने यहां दाखिला देकर ‘शिक्षा के क्षेत्र में संबंध’ बढ़ाए जाएं। सायमा के अनुसार, इस बात का प्रस्ताव कुलपति ने रखा और विश्वविद्यालय के शैक्षिक संघ ने इस पर फौरन अपनी मंजूरी दे दी।

सवाल है कि पाकिस्तान से आने वाले छात्रों को क्या बांग्लादेश निर्माण का इतिहास बताया जाएगा? वह इतिहास जिसमें पाकिस्तानी हुक्मरानों और फौज की बर्बरता का कच्चा चिट्ठा है? क्या उन्हें बताया जाएगा कि बांग्लादेश में उनके जिहादी सोच वाले देश ने किस तरह 1970—71 में खून की नदियां बहाई थीं? मजे की बात है कि पाकिस्तान के साथ ‘शैक्षिक संबंध’ बनने को ढाका विश्वविद्यालय के लोग अपने विश्वविद्यालय के छात्रों और प्रोफेसरों के ‘हित’ में बता रहे हैं!

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