वो दिन इसी साल 15 अगस्त का था, जब पहली बार मध्य प्रदेश के सागर में परसोरिया के पास गिरवर के मिडिल स्कूल में कब्रिस्तान बनाने के लिए इस्लामिक योजना बनाई गई और सरकारी विद्यालय परिसर में इस दिन शासकीय अवकाश होने का लाभ उठाते हुए यहां पर कब्र खोदकर गांव के एक व्यक्ति को सुपुर्दे खाक कर दिया गया। इसके बाद कब्र पर पत्थर भी लग गया। अब फिर एक बार 15 नवंबर को जब छुट्टी का दिन था और स्कूल परिसर में कोई नहीं था, तब नई कब्र खोदी जाना शुरू कर दी गई। कब्र खुद गई, बस अब इस्लामिक रिति-रिवाज के साथ मुर्दा को सुपुर्दे खाक किया ही जा रहा था कि समय रहते मध्य प्रदेश बाल संरक्षण आयोग को अज्ञात द्वारा सूचना दे दी गई कि कैसे एक शासकीय विद्यालय में कब्रिस्तान बनाने का षड्यंत्र शुरू हो गया है और आयोग सदस्य ओंकार सिंह सक्रिय हो उठते हैं । वे स्थानीय शासन की निष्क्रियता पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते है, जिसके बाद यह दूसरा शव यहां हमेशा के लिए दफन होते-होते रुक गया।
इस संबंध में कहना होगा कि यदि समय पर सूचना बाल आयोग तक नहीं पहुंचती तो लोग दफनाने की प्रक्रिया पूरी कर देते और स्कूल परिसर में दूसरी कब्र तैयार हो जाती। दरअसल, यह प्रकरण न सिर्फ शिक्षा विभाग की लापरवाहियों की कहानी कहता है, बल्कि न जानें प्रदेश और देश भर में ऐसे कितने ही लैंड जिहाद के मामलों की ओर इशारा करता है, जोकि आए दिन अस्तित्व में आ रहे हैं। जिसमें कि कई जगह इसी तरह देखते ही देखते कुछ वक्त में ही पूरा इलाका कबिस्तान में बदल दिया गया है ।
दरअसल, इस प्रकरण में सामने आया है कि गिरवर गांव निवासी अहमद खाँन पिता बब्लू खाँन उम्र 62 साल का शुक्रवार सुबह बीमारी के चलते निधन हो गया था। उनको सुपुर्दे खाक करने के लिए गांव के शासकीय उच्चतर माध्यमिक स्कूल परिसर की बावड़ी के अंदर कब्र खोदी जाने लगी । इसकी सूचना स्थानीय लोगों ने बाल आयोग सदस्य ओंकार सिंह और पुलिस को दी, जिसके बाद आयोग सदस्य ओंकार सिंह ने इसे गंभीरता से लिया कि कैसे एक विद्यालय में किसी मुर्दे को गाड़ा जा सकता है, जबकि वह कब्रिस्तान की जमीन नहीं है। उन्होंने इस पूरे प्रकरण में तत्परता दिखाई और पुलिस-प्रशासन, जिलाधीश से इस तरह के अनैतिक कार्य को रोकने के लिए कहा, जिसके बाद मौके पर पहुंचकर पुलिस ने कब्र खोदने के काम को बीच में रुकवा दिया।
जब पुलिस ने यहां कब्र के काम को रोका तो स्थानीय स्तर पर इस्लामिक भीड़ विरोध करने पर उतारु हो उठी, तब मौके पर रहली एसडीओपी प्रकाश मिश्रा, नायाब तहसीलदार विजय कांद्र त्रिपाठी, थाना प्रभारी भरत सिंह ठाकुर, एसआई बालाराम छारी, शाहपुर चौकी प्रभारी राजेश शर्मा, गढ़ाकोटा थाना प्रभारी रजनीश दुबे, पटवारी नंदनी मिश्रा और सरपंच रमेश गौर सहित भारी पुलिस बल पहुंच गया, और मुसलमानों को समझाया गया कि यह स्कूल की जगह है कोई कब्रिस्तान नहीं, जहां शवों को दफनाया जा सके। लेकिन शुरू में कोई मुसलमान (ईमानवाला) इस बात को मानने को तैयार नहीं हुआ। इसके लिए पुलिस और प्रशासन को काफी मशक्कत करना पड़ी, कानूनी तौर पर उन्हें समझाया गया, आखिर लम्बे समय तक चली बहस के बाद इस्लामवादियों को उनकी गलती का अहसास हुआ। तब जाकर दूसरे स्थान पर शव सुपुर्दे खाक किया गया ।
इस संबंध में बाल आयोग सदस्य ओंकार सिंह का कहना है कि विद्यालय परिसर में पहले भी इस तरह का अनुचित कार्य हुआ है। स्कूल में पहले कब, किसने कब्र बनाई, स्थानीय स्तर पर यह जानकारी कम से कम विद्यालय प्रबंधन सहित पंचायत को अवश्य ही रही होगी। अफसर भी विद्यालयों के समय-समय पर निरीक्षण के लिए जाते हैं, क्या उन्हें पता नहीं चला कि कैसे इस पूरे विद्यालय परिसर को कब्रगाह बनाने का षड्यंत्र किया जा रहा है। मेरा मानना है कि स्कूल प्रांगण में जब पहले एक शव को दफनाया गया था जिसकी जानकारी स्कूल स्टाफ सहित गांव के सरपंच को जरूर रही होगी, लेकिन किसी ने कोई कार्रवाई नहीं की, जिसके चलते उन्हें अपने मंसूबों को फिर पूरा करने का अवसर मिल गया। ओंकार सिंह ने कहा कि स्कूल के प्रबंधन ने इसे पहले क्यों गंभीरता से नहीं लिया ? यह बड़ा प्रश्न है। विद्यालय से आयोग जरूर जवाब मांगेगा । वहीं, मामले में जिला शिक्षा अधिकारी अरविंद जैन का कहना था कि पूरे प्रकरण में सही जानकारी लेकर संबंधितों के खिलाफ नोटिस जारी किए जाएंगे। दूसरी ओर ग्रामीणों का कहना है कि स्कूल प्रबंधन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की लापरवाही के चलते विद्यालय परिसर को अवैध कब्रिस्तान बनाया जा रहा है। इसके कारण से स्कूल के खेल मैदान का अस्तित्व खत्म होता जा रहा है।
देखा जाए तो इस तरह का मुसलमानों द्वारा किया गया यह पहला प्रयास नहीं है, इससे पहले भी वे देश भर में इस तरह के प्रयोग जमीन हथियानें को लेकर होते दिखे हैं। हाल ही में ऐसा ही एक मामला बिहार से सामने आया। यहां राजधानी पटना के पास बिहटा के कंचनपुर गांव में कब्रिस्तान की जमीन को लेकर तनाव पसरा हुआ है। गांव के लोगों का आरोप है कि प्रशासन कब्रिस्तान की 15 डिसमिल जमीन की जगह 1 एकड़ 15 डिसमिल जमीन की घेराबंदी कर दी । जिसके बाद कंचनपुर गांव के हिन्दू लोगों ने प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया। स्थानीय हिन्दुओं का कहना है कि ‘पटना प्रशासन जानबूझकर मुस्लिम समुदाय का पक्ष ले रहा है। जिस एक एकड़ जमीन की घेराबंदी हो रही है वह आम जमीन है। गांव वालों के पास इस जमीन से जुड़े अपने कागजात भी हैं। इसी तरह का बिहार में पूर्णिया जिले के कस्बा प्रखंड की मोहिनी पंचायत के टीकापुर गांव से जुड़ा मामला है, जिसमें एक शिव मंदिर है और मंदिर समिति के पास 250 बीघा जमीन है। जब इस जमीन पर कुछ जिहादी तत्व कब्रिस्तान बनवाने लगे तो हिन्दुओं ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई।
स्थानीय हिंदू बताते हैं कि जिहादी तत्व कई साल से इस जमीन पर नजर गड़ाए हुए हैं। जानकारी में सामने आया कि इस कस्बे में जब इकबाल अंसारी मुस्लिम अधिकारी की नियुक्ति हुई, तो उसके रहते फर्जी कागज बनवाए गए और मंदिर की जमीन पर कब्जा करने का प्रयास किया गया। हिंदुओं को इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने प्रशासन से शिकायत की, लेकिन प्रशासन ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। इस संबंध में सामने आया है कि जब मंदिर की जमीन को कब्रिस्तान की बताकर इसकी चारदीवारी बनाने का काम शुरू हुआ तो मंदिर पक्ष ने इसका विरोध किया, जिस पर कि प्रशासन ने शिकायत कर्ताओं के विरुद्ध ही कार्रवाई कर दी । मंदिर समिति के अध्यक्ष शिवशंकर सरकार सहित कुछ अन्य लोगों को जेल भेज दिया गया। इस कारण कुछ समय के लिए चारदीवारी का काम बंद हो गया। स्थानीय हिन्दुओं ने बताया है कि स्थानीय स्तर पर बांग्लादेशी घुसपैठियों का यहां प्रभाव दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। वे बड़ी तादात में यहां रह रहे हैं।
ऐसे ही उत्तरप्रदेश के मथुरा से जुड़े एक प्रकरण में पिछले साल सुनवाई के दौरान इलाहबाद इाईकोर्ट ने मथुरा में बने बांके बिहारी मंदिर के नाम दर्ज जमीन को कब्रिस्तान दर्ज किए जाने के मामले में सुनवाई करने के पश्चात अपने दिए आदेश में मंदिर की जमीन को सरकारी दस्तावेजों में गलत तरीके से दर्शाना बताया था और सभी एंट्रियों को रद्द करते हुए कोर्ट ने जमीन को 30 दिनों में बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट के नाम दर्ज किए जाने का आदेश दिए थे। उल्लेखनीय है कि राम अवतार गुर्जर ने इस मामले में हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी । उन्होंने बताया कि सपा के एक स्थानीय नेता ने लेखपाल के साथ कागजों में हेरा-फेरी की थी । इनके मुताबिक गांव में पहले सिर्फ हिंदू रहते थे, बाद में हरियाणा से मुसलमान आकर बस गए। जमीन पर कब्जा करने की कोशिश 1970 में शुरू हुई । अक्टूबर, 2019 में एक दिन मुस्लिम पक्ष के लोग इस स्थान पर बुलडोजर लेकर आए और चबूतरे के पास बने कुएं को तोड़ दिया। इसके बाद 15 मार्च, 2020 को चोरी-चुपके चबूतरे पर बना बिहारी जी का सिंहासन तोड़ दिया गया और मजार बना दी गई। ये मामला फिर पुलिस और प्रशासन के हाथ में चला गया। तब से ही मजार पर यहां पुलिसवाले तैनात हो गए । अब हाई कोर्ट ने इस जमीन को बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट के नाम दर्ज किए जाने का आदेश दिया है।
इसी प्रकार का प्रकरण उत्तर प्रदेश के जोनपुर जिले में मड़ियाहूं के सदरगंज उत्तरी मोहल्ले का है। यहां कोतवाली क्षेत्र के सदरगंज उत्तरी निवासी लालजी मौर्या का पौड़ी तारा मोहल्ले में 16 विस्वा जमीन है। कई दशक पूर्व उनकी जमीन में किसी ने कब्र बनाकर किसी को दफना दिया था, जिसके बाद मामला शव का होने के नाते लालजी मौर्या उस समय कुछ नहीं बोले थे । फिर फिर कुछ समय बाद वहां लालजी मौर्या की जमीन पर कब्रिस्तान लिखा पत्थर का नेम प्लेट गाड़ दिया गया। इस बात की भनक लाल जी मौर्य के पुत्र गिरजा शंकर को लगी तो मौके पर पहुंचकर उन्होंने उस पत्थर को वहां से हटाया । बताया गया कि यहां पर काजीकोट निवासी मुख्तार की साली की मौत हो गई थी, जिसके बाद उनके शव को मिट्टी देने के लिए कब्र को पौड़ी तारा में आकर गिरजा शंकर मौर्या की जमीन पर खोदी जाने लगी थी अब पीड़ित जयशंकर मौर्या अपने जमीन में कब्रिस्तान नहीं बनाने देने पर अड़े हुए हैं। इस तरह यदि देखें तो देश भर में कई जगह जबरन जमीन हड़पने की कोशिश करते हुए मजहब के नाम पर ये इस्लामवादी दिखाई देते है। जिसमें कि वक्फ बोर्ड इनका सबसे बड़ा जमीन हड़पाऊ का चेहरा बना हुआ है ।
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