गत 10 नवंबर को भोपाल में दत्तोपंत ठेंगड़ी स्मृति राष्ट्रीय व्याख्यानमाला के अंतर्गत ‘भारत की विविधता में सांस्कृतिक एकात्मता’ विषय पर एक गोष्ठी हुई। मुख्य वक्ता और केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने इस अवसर पर कहा कि भारतीय मनीषियों ने हजारों वर्ष पहले जो ज्ञान दिया, वह अनमोल है।
उन्होंने विविधता में एकता के सूत्र दिए हैं। बड़े पेड़ की जड़ें गहरी होती हैं। ऐसे ही कुछ लोग होते हैं, जिनके अंदर गहन समर्पण भाव होता है। दत्तोपंत ठेंगड़ी का व्यक्तित्व ऐसा ही था। उन्होंने कहा कि अंतिम समय में गौतम बुद्ध के एक शिष्य ने उनसे पूछा कि पथ भ्रष्ट न हो, इसके लिए उपाय बताइए।
तब बुद्ध ने कहा कि ‘अप्प दीपो भव’, मैंने जो बात बताई है उसे भी स्वीकार मत करो। जो बात मेरे लिए सत्य है, वह दूसरे के लिए भी सत्य हो, यह जरूरी नहीं है। उन्होंने कहा कि आद्य शंकराचार्य से लेकर स्वामी विवेकानंद ने जो दर्शन दिया, उसकी झलक पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के विचारों में परिलक्षित होती है और उसी को ठेंगड़ी जी ने विस्तार किया, लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि ये मेरा विचार है।
हमारे ऋषियों ने कभी नहीं कहा कि ये सिद्धांत हमारे दिमाग की उपज हैं। उन्होंने कहा कि ये नैसर्गिक है, प्राकृतिक है, दैविक है, हमने केवल ढूंढा है। उनका कहना था कि व्यक्ति के लिए समाज चाहिए, समाज को व्यवस्थित रखने के लिए संगठन चाहिए। संगठन के लिए आधार चाहिए और यह आधार सभ्यता और संस्कृति को बढ़ाता है।
हमारे यहां आस्था की अभिव्यक्ति में विविधता है। अत: जब आस्था एक है तो हम सबको एक होना चाहिए। वहीं नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष और प्रख्यात अर्थशास्त्री डॉ. राजीव कुमार ने कहा कि दत्तोपंत जी बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने विविध संगठनों की स्थापना के साथ समाज को एक नई दिशा दी।
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