भारत एवं भारतीयता के पोषण के लिए दीनानाथ जी बत्रा द्वारा किए गए संघर्ष व पुरुषार्थ
May 28, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम विश्लेषण

भारत एवं भारतीयता के पोषण के लिए दीनानाथ जी बत्रा द्वारा किए गए संघर्ष व पुरुषार्थ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक वरिष्ठ प्रचारक ब्रह्मदेव शर्मा ने अपने किसी उद्बोधन में कहा था कि "स्वयंसेवकों को शिक्षक या वकील बनना चाहिए, क्योंकि उनके पास देश व समाज का काम करने के लिए पर्याप्त अवसर एवं समय होता है", तभी से उनके मन में शिक्षक बनने का संकल्प जगा।

by प्रणय कुमार
Nov 14, 2024, 12:30 pm IST
in विश्लेषण
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के पूर्व अध्यक्ष,  शिक्षा बचाओ आंदोलन के संयोजक, विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के पूर्व महामंत्री एवं प्रख्यात शिक्षाविद दीनानाथ जी बत्रा का गत 7 नवंबर, 2024 को दिल्ली में निधन हो गया। एक ओर उनके जीवन में तपस्वियों जैसी अपरिग्रही वृत्ति, ध्येयनिष्ठा, अनुशासनबद्धता थी तो दूसरी ओर उनमें अपने ध्येय के लिए संघर्ष व पुरुषार्थ करने का अद्भुत साहस एवं अडिग संकल्प था। इसलिए योद्धा-तपस्वी विशेषण उनके लिए सर्वाधिक उपयुक्त रहेगा। उनका पूरा जीवन त्याग, साधना व संघर्ष से भरा रहा। प्रारंभ में वे कुछ वर्ष प्रचारक भी रहे। गृहस्थ जीवन में प्रवेश के पश्चात भी संघ के सेवाव्रती प्रचारकों की भाँति उनका जीवन-ध्येय “तेरा तुझको अर्पण” का बना रहा।

समाज व राष्ट्र के लिए आयु के अंतिम क्षण तक वे अहर्निश एवं अनथक कार्य करते रहे। संघ की शाखा में मिले संस्कारों के कारण विद्यार्थी-काल से ही उनके मन में समाज व देश के लिए कुछ शुभ, सुंदर व सार्थक करने की जो भावना पलती थी, समय व्यतीत होने के साथ-साथ वह और अधिक दृढ़ एवं बलवती होती चली गई।  विभाजन की विभीषिका उन्होंने स्वयं झेली थी। विभाजन के कारण उन्हें परिवार समेत अपने जन्मस्थल डेरा गाजी खां (अब पाकिस्तान) छोड़कर भारत आना पड़ा था। विभाजन के कारण हिंदुओं के समक्ष उत्पन्न विषम एवं भयावह परिस्थितियों के वे केवल भुक्तभोगी या मूकद्रष्टा मात्र नहीं थे, अपितु उन्होंने दंगाइयों के शिकार हिंदुओं को पाकिस्तान से सुरक्षित भारत लाने तथा उनके पुनर्वास आदि में प्रत्यक्ष योगदान भी दिया था।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक वरिष्ठ प्रचारक ब्रह्मदेव शर्मा ने अपने किसी उद्बोधन में कहा था कि “स्वयंसेवकों को शिक्षक या वकील बनना चाहिए, क्योंकि उनके पास देश व समाज का काम करने के लिए पर्याप्त अवसर एवं समय होता है”, तभी से उनके मन में शिक्षक बनने का संकल्प जगा। और यह संकल्प  इतना सुदृढ़ था कि वे न केवल एक अच्छे, ख्यातिलब्ध एवं राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक बने, अपितु आगे चलकर संपूर्ण शिक्षा-जगत के लिए जीवंत प्रेरणास्रोत एवं अनुकरणीय आदर्श भी बन गए। शिक्षक एवं प्राचार्य के रूप में उनके व्यापक अनुभव एवं सुदीर्घ सेवाओं का लाभ केवल कुछेक विद्यालयों एवं वहाँ अध्ययनरत विद्यार्थियों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वह विद्या भारती, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास एवं शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति के माध्यम से संपूर्ण देश में पहुँचा।

शिक्षा के क्षेत्र में किए गए उनके प्रयोगों को भरपूर सफलता व सराहना मिली और विद्या भारती से लेकर अन्यान्य सरकारी एवं गैर सरकारी विद्यालयों में भी उन्हें अपनाया गया। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि व्यावसायिक दौड़ एवं आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा से दूर विद्या भारती आज जिस ऊँचे व श्रेष्ठ वैचारिक अधिष्ठान पर खड़ी है, उसकी पृष्ठभूमि में भाऊराव देवरस, कृष्णचंद्र गाँधी, लज्जाराम तोमर, ब्रह्मदेव शर्मा, दीनानाथ बत्रा जैसे अनेकानेक साधकों की साधना एवं विचार-दृष्टि ही मजबूत आधारशिला का कार्य करती रही है। अन्यथा पश्चिम से आयातित भौतिकता की आँधी, सिनेमा, टेलीविजन एवं ओटीटी से उपजी अपसंस्कृति की बयार तथा मार्क्स-मैकॉले की मानस संतानों द्वारा पोषित-पालित परकीय वैचारिकी के मध्य विद्या भारती जैसे पवित्र शैक्षिक अभियान व अनुष्ठान का उत्तरोत्तर आगे बढ़ना तथा उसे समाज का व्यापक समर्थन मिलना, सरल व संभव नहीं था। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की संकल्पना को साकार करने तथा उसके कार्य एवं संगठन को विस्तार देने में भी उनकी महती व अग्रणी भूमिका थी। शिक्षा बचाओ आंदोलन के तो वे प्रणेता ही थे।

दीनानाथ बत्रा भारत और भारतीयता के प्रबल पक्षधर एवं पैरोकार थे। पक्षधर होना या पैरोकारी करना एक बात है, परंतु जिसके पक्ष में खड़े हैं, उसके लिए निरंतर अध्ययन करना, शोध करना, लिखना-पढ़ना और आवश्यकता पड़ने पर उसके लिए सड़क पर उतरकर आंदोलन करना या न्यायालय के दरवाजे खटखटाना दूसरी बात। जब हम छोटे-छोटे स्वार्थ, प्रलोभन, सम्मान-पुरस्कार के मोहपाश, पुलिस-प्रशासन एवं निरंकुश सत्ताओं के दबाव तथा अहं के टकराव आदि के कारण झुकते, समझौता करते या पाला बदलते बुद्धिजीवियों को देखते हैं तो बत्रा जी जैसे ध्येयनिष्ठ योद्धा का महत्त्व व वैशिष्ट्य समझ में आता है। वे अपने ध्येय एवं संकल्प के लिए बड़ी-से-बड़ी शक्तियों से लड़ने-भिड़ने-टकराने की सामर्थ्य रखते थे। विचारधारा को ताक पर रखकर सत्ता-प्रतिष्ठानों से समझौता-समन्वय करने का भाव उनमें कभी नहीं रहा, न ही प्रिसिद्धि के शिखर पर पहुँचने के बाद उनमें बुद्धिजीवियों में पाई जाने वाली चयनित-सुविधावादी तटस्थता ही देखने को मिली। सबको साथ लेकर चलने की सांगठनिक कुशलता एवं कार्यकर्त्ताओं के हितचिंतन को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए भी उन्होंने कभी तत्त्व-दर्शन को दृष्टिपथ से ओझल नहीं होने दिया।

साहस उनका इतना प्रबल था कि 30 मई, 2001 को उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को नोटिस भेजकर कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में पारित प्रस्ताव में विद्या भारती के प्रति  की गई प्रतिकूल, अपमानजनक एवं नकारात्मक टिप्पणी को हटाने की पुरजोर माँग की। उन्होंने तमाम प्रामाणिक तथ्यों, तर्कों एवं साक्ष्यों के द्वारा कांग्रेस द्वारा लगाए गए इस आरोप को निराधार  सिद्ध किया कि “विद्या भारती की पाठ्यपुस्तकों में अल्पसंख्यकों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण हैं एवं वे जाति-व्यवस्था, सती-प्रथा एवं बाल-विवाह को उचित ठहराती हैं।” कांग्रेस के पास उनके अकाट्य तर्कों, प्रामाणिक तथ्यों एवं विपुल मात्रा में प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों आदि का कोई ठोस प्रत्युत्तर नहीं था।

2006 में उन्होंने एक जनहित याचिका दायर कर एनसीईआरटी की सामाजिक विज्ञान एवं इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में प्रकाशित सामग्री पर 70 आपत्तियाँ उठाईं। उन आपत्तियों के औचित्य एवं आधार का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उनमें से कुछ सामग्री में लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल, अरबिंदो घोष एवं भगत सिंह को ‘उग्रवादी’ तथा प्राचीन काल में ब्राह्मणों एवं आर्यों को गोमांस का सेवन करने वाला तक बताया गया था। बत्रा जी ने सप्रमाण यह सिद्ध किया कि ये मनगढ़ंत, मिथ्या एवं भ्रामक बातें हैं और इनका ऐतिहासिक तथ्यों से कोई लेना-देना नहीं है। बौद्धिक सत्य के प्रति उनके आग्रह, संघर्ष व पुरषार्थ का ही परिणाम था कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने उनकी आपत्तियों का संज्ञान लेते हुए एनसीईआरटी को इन आपत्तियों का अध्ययन करने के लिए एक समिति बनाने का निर्देश दिया। कामुकता एवं भोगवादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से क्षद्म वेष में बाजारवादी शक्तियों और उनके बौद्धिक समर्थकों ने जब विद्यालयी स्तर पर यौन-शिक्षा को संपूर्ण देश में अनिवार्य किए जाने की माँग उठाई, तब दीनानाथ बत्रा भारतीय समाज पर पड़ने वाले उसके दुष्प्रभावों एवं संभावित खतरों को समझने वाले प्रमुख व्यक्ति थे।

तब उनके तार्किक प्रतिरोध के कारण ही कुछ प्रादेशिक सरकारों ने अपने राज्य में यौन शिक्षा को विद्यालयी स्तर पर अनिवार्य करने से मना कर दिया था। 2008 में उन्होंने शिक्षा बचाओ आंदोलन की ओर से दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास के पाठ्यक्रम में से एके रामानुजन के निबंध “थ्री हंड्रेड रामायणाज : फाइव एग्जांपल एंड थ्री थॉट्स ऑन ट्रांसलेशन” को हटाने की माँग की, परिणामस्वरूप 2011 में विश्वविद्यालय के अकादमिक परिषद द्वारा उक्त निबंध को पाठ्यक्रम से हटा लिया गया। 3 मार्च, 2010 को  उन्होंने वेंडी डोनिगर, पेंगुइन समूह, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं पेंगुइन इंडिया की सहायक कपंनी को एक वैधानिक चेतावनी भेजकर “द हिंदुज : एन अल्टरनेटिव हिस्ट्री” में उल्लिखित सामग्रियों पर कई आपत्तियाँ उठाईं। उन आपत्तियों का संज्ञान न लिए जाने पर 2011 में उन्होंने डोनिगर एवं पेंगुइन प्रकाशन के विरुद्ध धार्मिक समुदायों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने तथा जान-बूझकर अपमानित किए जाने की मंशा से किए गए कृत्यों के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 295 ए के अंतर्गत मुकदमा भी दायर किया, अंततः फरवरी 2014 में पेंगुइन इंडिया को इस पुस्तक की मुद्रित सभी प्रतियाँ वापस लेने के लिए बाध्य होना पड़ा और बिना बिकी प्रतियों को नष्ट भी करना पड़ा।

2011 में ही उन्होंने वामपंथी विचारधारा से प्रेरित पत्रिका ‘द फ्रंटलाइन’ के संपादक एन. राम को ‘शॉर्टकट टू हिंदू राष्ट्र’ शीर्षक से आवरण-कथा प्रकाशित करने के लिए वैधानिक चेतावनी भेजी। भारतवर्ष की महान परंपरा में किसी की मृत्यु को वैचारिक मतभेद या विरोध आदि प्रकट करने का अवसर नहीं माना जाता, परंतु दीनानाथ बत्रा के प्रति ‘द फ्रंटलाइन’ पत्रिका की चिढ़ या घृणा का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उनकी मृत्यु के मात्र दो दिनों बाद उसमें “दीनानाथ बत्रा : द एजुकेशनिस्ट हू वेज्ड वार एगेंस्ट नॉलेज” शीर्षक से लेख छपा। उनके मरणोपरांत भी उनके विरुद्ध विषवमन करने में इस पत्रिका ने कोई संकोच नहीं दिखाया। उन्होंने वेंडी डोनिगर की एक और पुस्तक ‘ऑन हिंदुइज्म’ के लिए  एलेफ़ बुक कंपनी, मेघा कुमार की पुस्तक ‘सांप्रदायिकता और यौन हिंसा : अहमदाबाद 1969 से’ तथा शेखर बंद्योपाध्याय की पुस्तक ‘फ्रॉम प्लासी टू पार्टीशन : ए हिस्ट्री ऑफ मॉडर्न इंडिया के लिए ओरिएंट ब्लैकस्वान को कानूनी नोटिस भेजा। उनके इन प्रयासों से जहाँ एक ओर जनसाधारण में हिंदू धर्म व सनातन संस्कृति के संरक्षण-संपोषण के प्रति व्यापक जागरुकता आई, वहीं अराष्ट्रीय एवं सनातन विरोधी शक्तियों में यह संदेश भी गया कि तथ्यहीन व निराधार सामग्री प्रस्तुत करने पर वैधानिक कार्रवाई झेलनी पड़ सकती है। सोचकर देखें कि सनातन विरोधी बौद्धिक शक्तियों एवं गतिविधियों पर उनकी कितनी सजग व सतर्क दृष्टि रही होगी तथा उनकी नैतिक शक्ति कितनी प्रबल रही होगी कि वे अकेले उन शक्तिशाली संगठनों एवं साधन-संपन्न प्रकाशकों से मोर्चा लेते रहे और उनके मनमानेपन एवं निरंकुशता पर एक सीमा तक लगाम लगाए रखा।

उनके महाप्रयाण के पश्चात यह विचार करना सर्वथा उचित रहेगा कि शिक्षा में जिन मूल्यों, विचारों एवं आदर्शों की स्थापना के लिए दीनानाथ बत्रा जैसे योद्धा-तपस्वी जीवनपर्यंत संघर्षरत रहे, उसमें कहाँ तक और कितनी सफलता मिली? क्या शिक्षा के भारतीयकरण एवं पाठ्यक्रम-परिवर्तन की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है या उसकी गति बहुत धीमी एवं सुस्त है? सुखद है कि बत्रा जी जैसे अनेक शिक्षाविदों के सतत चिंतन, अध्ययन, अनुभव, प्रयास एवं पुरषार्थ के बल पर देश को राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2020 जैसी युगांतकारी नीति तो मिल गई, पर क्या उसके क्रियान्वयन की गति एवं दिशा संतोषजनक है? ऐसे सभी प्रश्नों का यथार्थ, प्रामाणिक एवं समग्र उत्तर बत्रा जी को कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

Topics: Contribution of Dinanath Batraशिक्षा बचाओSave EducationRashtriya Swayamsevak Sanghराष्ट्रीय स्वयं सेवक संघदीनानाथ बत्राDinanath Batraदीनानाथ बत्रा के योगदान
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

RSS Mohan bhagwat Shakti

शक्ति हो तो दुनिया प्रेम की भाषा भी सुनती है – सरसंघचालक डॉ. भागवत

राष्ट्र हित में प्रसारित हो संवाद : मुकुल कानितकर

मणिपुर में सम्पन्न हुआ संघ शिक्षा वर्ग 2025 : 7 जिलों के 71 स्वयंसेवकों ने 15 दिनों तक लिया राष्ट्र सेवा का प्रशिक्षण

Vijaydashmi program RSS

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी वर्ष: पंच परिवर्तन के माध्यम से समाज और राष्ट्र निर्माण

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी

समरसता हेतु समाज के समस्त वर्गों के लिए एक मंदिर, एक कुआं, एक श्मशान हो

PM Narendra Modi about RSS

जहां सेवा कार्य, वहां स्वयंसेवक, बोले PM मोदी

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

यज्ञ शाला

हरिपुर कालसी में छिपा है अश्वमेघ यज्ञ का इतिहास

सेतु आयोग की नई पहल, UPES University में पॉलिसी और लॉ लैब शुरू

अजमेरी हक, अभिनेत्री

हिंदी फिल्म में रॉ एजेंट बनी अभिनेत्री अजमेरी हक पर बांग्लादेश में लगा RAW एजेंट होने का आरोप

दुष्कर्म का आरोपी मोहसिन

हिन्दू युवतियों का वर्जिनिटी टेस्ट भी कराता था दुष्कर्म का आरोपी मोहसिन

Operation sindoor

दुनिया के हर बड़े आतंकी हमले के पीछे पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका में भारत ने जिन्ना के देश को किया बेनकाब

विनायक दामोदर सावरकर

सावरकर जयंती पर विशेष : हिंदू राष्ट्र के मंत्रद्रष्टा

वीर सावरकर

वीर सावरकर : हिंदुत्व के तेज, तप और त्याग की प्रतिमूर्ति

आज़हरुल इस्लाम

बांग्लादेश में आजाद घूमेगा 1000 से अधिक हत्या करने का आरोपी, जमात नेता आज़हरुल इस्लाम की सजा रद

मुख्य आयोजन स्थल

उत्तराखंड : 21 जून को भराड़ीसैंण में होगा योग दिवस का मुख्य आयोजन, सीएम के साथ 10 देशों के राजदूत होंगे शामिल

विजय पुनम

ओडिशा में नक्सलियों को बड़ा झटका : रायगडा में कुख्यात विजय ने किया आत्मसमर्पण

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies