हिमाचल प्रदेश में छह मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति को लेकर हाई कोर्ट से बुधवार काे बड़ा फैसला आया है। हाई कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव अधिनियम 2006 को निरस्त कर दिया है। वर्तमान छह मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां रद्द करते हुए हाई कोर्ट ने मुख्य संसदीय सचिव की तैनाती को अवैध ठहराया है। हाई काेर्ट ने मुख्य सचिव को आदेश दिया कि मुख्य संसदीय सचिव काे हटाने और इन्हें मिल रहीं सभी सुविधाएं तत्काल प्रभाव से वापस ले ली जाएं।
जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर व जस्टिस बीसी नेगी की खंडपीठ ने बुधवार को तीन अलग-अलग याचिकाओं की सुनवाई करते हुए उक्त आदेश सुनाए। इस फैसले के बाद सत्तारूढ़ कांग्रेस की सुक्खू सरकार को बड़ा झटका लगा है। सुक्खू सरकार ने पिछले साल छह विधायकों को मुख्य संसदीय सचिव नियुक्त किया था। मुख्य संसदीय सचिवों के मामले में याचिका कल्पना और भाजपा नेता पूर्व सीपीएस सतपाल सत्ती सहित अन्य 11 भाजपा के विधायकों की ओर से दायर की गई थी।
दरअसल, भाजपा नेता सतपाल सत्ती सहित 12 भाजपा विधायकों ने हाई काेर्ट में याचिका दायर कर अर्की विधानसभा क्षेत्र से संजय अवस्थी, कुल्लू से सुंदर सिंह, दून से राम कुमार, रोहड़ू से मोहन लाल ब्राक्टा, पालमपुर से आशीष बुटेल और बैजनाथ से किशोरी लाल की मुख्य संसदीय सचिव के पद पर नियुक्ति को चुनौती दी गई थी। याचिका में सीपीएस नियुक्ति से जुड़े कानून को चुनौती देते हुए इस कानून को बनाने की सरकार की योग्यता पर प्रश्न चिह्न उठाया था। याचिका मेें प्रार्थियों की ओर से कहा गया कि प्रदेश में सीपीएस की नियुक्तियां सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के विपरीत है, इसलिए इनके द्वारा किए गए कार्य भी अवैध है। इतना ही नहीं इनके द्वारा गैरकानूनी तरीके से लिया गया वेतन भी वापस लिया जाना चाहिए। प्रार्थियों की ओर से सीपीएस की नियुक्तियों पर रोक लगाने की गुहार लगाते हुए कहा गया कि इन्हें एक पल के लिए भी पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है।
हाई काेर्ट के फैसले का सुप्रीम काेर्ट में चुनाैती देगी सरकार : एडवाेकेट जनरल
इस संबंध में हाई कोर्ट में एडवोकेट जनरल अनूप रत्न ने कहा कि हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी।हाई कोर्ट ने सीपीएस एक्ट 2006 को खत्म कर सीपीएस को हटाने के आदेश दिए हैं। हाई कोर्ट ने असम केस का हवाला देते हुए अपना निर्णय सुनाया है, जिसके खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी क्योंकि हिमाचल प्रदेश में सीपीएस एक्ट असम एक्ट से अलग था। असम एक्ट में मंत्री के समान शक्तियां और सुविधाएं सीपीएस को मिल रही थीं लेकिन हिमाचल में सीपीएस को इस तरह की शक्तियां नहीं थी। ऐसे में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी।
भाजपा ने हाई कोर्ट के फैसले का किया स्वागत
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डाॅ राजीव बिन्दल ने कहा कि हिमाचल प्रदेश हाई काेर्ट के महत्वपूर्ण फैसले ने साबित कर दिया कि हिमाचल प्रदेश की वर्तमान कांग्रेस सरकार किस प्रकार गैर कानूनी तरीके से मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति करते हुए दो साल व्यतीत कर दिए। उन्होंने कहा कि लगातार हिमाचल प्रदेश के पैसे का दुरुपयोग व शक्तियों का दुरुपयोग हुआ। कांग्रेस सरकार का छह मुख्य संसदीय सचिव बनाकर उनको मंत्रियों के बराबर शक्तियां देना गैर कानूनी और संविधान के खिलाफ रहा।
डाॅ बिन्दल ने कहा कि हम हिमाचल प्रदेश के हाई काेर्ट के निर्णय का स्वागत करते हैं, जिन्होंने सभी छह मुख्य संसदीय सचिवों को पदच्युत करने का आदेश दिया है। यह फैसला स्वागत योग्य है। हिमाचल प्रदेश की जनता के साथ अन्यायपूर्ण रवैया कांग्रेस सरकार ने किया है, हम उसकी निंदा करते हैं।
सीपीएस रह चुके विधायकों की सदस्यता रद्द हाे : जयराम
नेता प्रतिपक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी पहले दिन से ही सीपीएस बनाने के फैसले के खिलाफ थी क्योंकि यह असंवैधानिक था और यह संविधान के विरुद्ध निर्णय था। उन्होंने कहा कि जब वर्ष 2017 में हम सरकार में थे तो हमारे समय भी यह प्रश्न आया था तो हमने इसे पूर्णतया असंवैधानिक बताते हुए सीपीएस की नियुक्ति नहीं की थी। आज हाई कोर्ट ने फिर से कांग्रेस सरकार के तानाशाही पूर्ण और असंवैधानिक फैसले को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि हम मांग करते हैं कि इस पद का लाभ लेने वाले सभी विधायकों की सदस्यता भी समाप्त हो।
सौजन्य – सिंडिकेट फीड
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