दिल्ली के कनॉट प्लेस जैसे दिख रहे एक स्थान पर चार लोग खड़े हैं। दो लड़कियां हैं और दो लड़के। एक लड़की बुर्के में है, जिसने अपना चेहरा नहीं ढका हुआ है और दूसरी लड़की छोटे कपड़ों में है, जो ऐसे हर वीडियो में हिन्दू लड़की बनाई जाती है।
वीडियो में दिख रहा है कि दो लड़नके उनसे बात कर रहे होते हैं और इसी बीच एक आदमी आता है जो उस लड़की का शौहर, प्रेमी प्रतीत होता है। वह एक बहाना करके बाकी लोगों को भगाता है और अपनी प्रेमिका/बीवी को थप्पड़ मारता है और हाथ में कुछ थमाता है। वह कुछ आगे जाती है और अपने चेहरे को पूरी तरह से कवर कर लेती है। अर्थात बुर्के में नकाब भी लगा लेती है और फिर अपने आशिक/शौहर के साथ खुश होकर वहां से चली जाती है। इस वीडियो के इंस्टाग्राम पर 50 लाख से अधिक व्यूज हैं।
यह वीडियो हिंसक है। महिलाओं पर सार्वजनिक स्थानों पर भी हिंसा हो सकती है, यह इस वीडियो के जरिये बताया जा रहा है। इसके जरिये बताया जा रहा है कि पर्दे में रहने वाली लड़कियों की इज्जत होती है। कल्पना करें कि किसी सार्वजनिक स्थान पर एक लड़की को इसलिए मारा जा सकता है क्योंकि उसने हिजाब नहीं पहना है और उसके आसपास कोई पुलिस भी नहीं है जो एक आदमी को खुलेआम यह हिंसा करते हुए रोक सके। इसके जैसे एक नहीं बल्कि सैकड़ों वीडियो हैं, जिनमें हिजाब की महत्ता बताई जाती है। पूरे विश्व से ऐसे वीडियो आ रहे हैं। एक-दो वीडियो ऐसे हैं, जिनमें मुस्लिम लड़कियां हिंदू लड़कियों को हिजाब पहना रही हैं और फिर उन्हें ऐसा कहते हुए प्रचारित किया जा रहा है, “हिंदू लड़कियां और भी सुंदर हुईं, हिजाब पहनकर!”
हिजाब और नकाब को एक प्रकार से महिलाओं की सुरक्षा से जोड़ दिया गया है। यह भी बहुत ही हैरान करता है कि महिलाओं के प्रति इस प्रकार की हिंसक और पिछड़ी मानसिकता वाले वीडियो को लेकर विरोध की हलचल न तो मीडिया में है और न ही सोशल मीडिया में। क्या हिजाब एक चॉइस है? अब यह प्रश्न इसलिए उठ खड़ा हुआ है क्योंकि इस प्रकार के हिंसक वीडियो यह दिखाते हैं कि कैसे मुस्लिम महिलाओं के साथ हिंसा और वह भी सार्वजनिक स्थानों पर हिंसा करके उन्हें मजबूर किया जाता है कि वे हिजाब पहनें।
यदि वे हिजाब नहीं पहनती हैं, तो उन्हें मिठाई, चीनी आदि के जैसा बताया जाता है। उन्हें बताया जाता है कि उनमें चींटी लग जाएंगी और वे बर्बाद हो जाएंगी। जब ऐसे भी लड़कियां हिजाब पहनना शुरू नहीं करती हैं तो उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर यौन हिंसा से डराया जाता है कि उनके साथ यौन उत्पीड़न हो सकता है। मगर अब यह जो वीडियो है, यह इसलिए चिंताजनक है क्योंकि इसमें सार्वजनिक स्थान पर हिंसा है। इसी हिंसा का विरोध ईरान में लड़कियां कर रही हैं। इसी मजबूरी का विरोध अफगानिस्तान में भी कुछ लड़कियों ने शुरू किया था, मगर अब वे दमन और अपने साथ हो रही हिंसा से मजबूर हो गई हैं और घरों में कैद हो गई हैं। यही इस्लामिस्ट चाहते हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो इस्लाम के कथित उदार स्वर अपनी आवाज उठाते और कहते कि इस प्रकार के वीडियो रिलीज होना मुस्लिम महिलाओं के लिए खतरा हैं, मगर ऐसा कोई भी स्वर नहीं उठ रहा है।
आखिर महिलाओं के प्रति इतने घृणित और हिंसक वीडियो पर विरोध क्यों नहीं हो रहा है? सोशल मीडिया की गाइडलाइंस में ये वीडियो कैसे फिट जाते हैं, यह भी बड़ा सवाल है। ऐसे वीडियो इस्लामिस्ट, कम्युनिस्ट और कम्युनिस्ट फेमिनिस्ट समूह के इस झूठ का गुब्बारा फोड़ते हैं कि हिजाब एक चॉइस है। नहीं, हिजाब चॉइस नहीं है, कम से कम ऐसे वीडियो तो यही बताते हैं।
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