शिक्षा के मुद्दे पर अक्सर प्रोपागेंडा फैलाकर केंद्र सरकार को घेरने वाली कांग्रेस शासित कर्नाटक के स्कूलों की हालत वास्तव में बहुत ही दयनीय है। वहां 6,158 सरकारी स्कूलों में सिर्फ़ एक शिक्षक है, इतने ही शिक्षकों पर 1.38 लाख छात्रों को पढ़ाने की जिम्मेदारी है। जबकि, सैकड़ों की संख्या में ऐसे भी स्कूल हैं, जहां पर बच्चे ही नहीं, लेकिन शिक्षक एक से अधिक हैं। ये कर्नाटक सरकार की शिक्षा प्रणाली और व्यवस्था का सबसे बड़ा दोष उजागर हो गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, पता चला है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अगुवाई वाली सरकार में करीब 530 ऐसे सरकारी स्कूलों के बारे में पता चला है कि इन स्कूलों में एक भी छात्र ने अपना नामांकन नहीं करवाया। हैरानी की बात ये है कि एक भी छात्र नहीं होने के बाद भी यहां पर 358 शिक्षक हैं। हालांकि, जब से इस बात का खुलासा हुआ है तो अब अधिकारी ये सफाई देने की कोशिशों में लगे हुए हैं कि जिन स्कूलों में एक भी छात्र ने अपना नामांकन नहीं कराया था, वहां के शिक्षकों को जरूरत के लिहाज से दूसरे स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया गया है।
कहा ये भी जा रहा है कि 2023-24 में इस तरह के स्कूलों की संख्या 6,360 थी, जो कि 2024-25 में 202 घटकर अब 6,158 हो गई है। लेकिन, दूसरा भयावह सत्य ये भी है कि प्रदेश में 33,794 नामांकनों की भी कमी आई है। साधारण शब्दों में कहा जाय तो 33,794 छात्रों का सरकारी स्कूलों से मोहभंग हो गया है। कर्नाटक के स्कूलों के इस हालात को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों में केवल कन्नड़ और सामाजिक विज्ञान की पढ़ाई कराई जाती है। वहां गणित, अंग्रेजी और विज्ञान जैसे विषयों की पढ़ाई नहीं होती है। शिक्षक भी केवल एक ही विषय पढ़ाते हैं। यही वजह है कि मजबूरी के कारण बच्चों के माता-पिता को प्राइवेट स्कूलों का रूख करना पड़ता है।
रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों में अगर कोई छात्र उच्च प्राथमिक स्कूलों में पहुंच भी जाता है तो कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा में शत प्रतिशत रिजल्ट को बनाए रखने के लिए जानबूझकर छात्रों को स्कूलों से बाहर कर दिया जाता है।
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