पश्चिम बंगाल में छह विधानसभा सीटों के लिए उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी पूरी शक्ति के साथ सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को चुनौती देने का प्रयास कर रही है। इन उपचुनावों का दौर आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, कोलकाता में एक प्रशिक्षु डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के कारण बदले हुए राजनीतिक और सामाजिक परिवेश में हो रहा है। भाजपा के लिए यह उपचुनाव ममता बनर्जी के प्रति राज्य में बढ़ती सत्ता-विरोधी लहर को भुनाने का भी एक अवसर है। भाजपा की रणनीति का आकलन भी इन उपचुनावों में किया जाएगा, जहां विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी के रणनीतिक कौशल का परीक्षण भी देखने को मिलेगा।
इन छह विधानसभा सीटों में सभी सीटें स्थानीय विधायकों के सांसद चुने जाने के कारण खाली हुई हैं, जिनमें से पांच सीटों पर तृणमूल कांग्रेस और एक सीट पर भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इस चुनावी दौड़ में आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की घटना का भी मतदाताओं पर असर देखने को मिलेगा। यह उपचुनाव अलीपुरद्वार जिले के मदारीहाट, कूच बिहार जिले के सीताई, उत्तर 24 परगना जिले के नैहाटी और हरोआ, बांकुड़ा जिले के तलडांगरा, और पश्चिम मेदिनीपुर जिले के मेदिनीपुर विधानसभा क्षेत्रों में हो रहे हैं।
फुटबॉल क्लबों का विवादित समर्थन
चुनाव के दौरान, कोलकाता के तीन प्रसिद्ध फुटबॉल क्लबों के पदाधिकारियों द्वारा नैहाटी विधानसभा सीट से तृणमूल उम्मीदवार सनत डे को समर्थन देने के कारण विवाद खड़ा हो गया है। भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी ने इस मुद्दे को गंभीरता से उठाते हुए इसे “निर्लज्ज राजनीतिक समर्थन” करार दिया और केंद्रीय खेल मंत्री मनसुख मंडाविया को मामले का संज्ञान लेने के लिए पत्र भी लिखा है। इस समर्थन को तृणमूल कांग्रेस की कमजोरी के रूप में भी देखा जा रहा है।
कांग्रेस और वाम दलों की अस्तित्वहीन भूमिका
इन उपचुनावों में मुख्य मुकाबला भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच है, जबकि कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टियों और अन्य छोटे दलों की कोई चर्चा नहीं हो रही है। इसका कारण भी स्पष्ट है – 2021 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और वामपंथी दलों के गठबंधन के बावजूद, ये दल अपना जनाधार बचाने में असफल रहे हैं। विधानसभा चुनाव में यह गठबंधन इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) के जरिए एक सीट जीत पाया, जो उनके लिए ही लाभकारी साबित हुई।
हालांकि, कांग्रेस-वाम गठबंधन को कोई खास फायदा मिलता नहीं दिखा। विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और आईएसएफ के गठबंधन के बावजूद कांग्रेस पार्टी शून्य सीटों पर सिमट गई, जबकि पिछले विधानसभा में कांग्रेस के पास 44 सीटें थीं और वह मुख्य विपक्षी दल थी। कांग्रेस पार्टी के अब्दुल मन्नान राज्य में विपक्ष के नेता रहे, लेकिन वर्तमान विधानसभा में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला। वहीं, माकपा का भी इस गठबंधन के बावजूद खाता नहीं खुल पाया, जबकि उनके पास पिछली विधानसभा में 26 सीटें थीं।
लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस और वाम दलों का गठबंधन असफल साबित हुआ। कांग्रेस को लाभ के बदले हानि उठानी पड़ी और वाम दलों का खाता भी राज्य में नहीं खुल सका। कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब बहरामपुर के पांच बार के सांसद अधीर रंजन चौधरी चुनाव हार गए। इस हार के बारे में कहा जाता है कि यह गांधी परिवार और ममता बनर्जी की मिली-जुली साजिश का परिणाम था, क्योंकि गांधी परिवार राहुल गांधी का कद बढ़ाना चाहता था, वहीं ममता बनर्जी का व्यक्तिगत विरोध अधीर रंजन चौधरी के खिलाफ था।
सागरदिघी उपचुनाव और कांग्रेस की अस्थायी सफलता
2023 में, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को थोड़े समय के लिए एक राहत तब मिली, जब तृणमूल कांग्रेस के विधायक के निधन के कारण सागरदिघी विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ। मुस्लिम बहुल इस सीट पर कांग्रेस की जीत ने कुछ नई राजनीतिक संभावनाओं को जन्म दिया। कांग्रेस ने तृणमूल के उम्मीदवार को हराकर सागरदिघी उपचुनाव जीता, लेकिन विधायक बायरन बिस्वास ने चुनाव जीतने के 100 दिनों के भीतर ही ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने का निर्णय लिया। यह कदम उस समय उठाया गया जब कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन का हिस्सा थे, और ममता बनर्जी ने सुनिश्चित किया कि कांग्रेस का विधानसभा में प्रतिनिधित्व समाप्त हो।
कांग्रेस का वर्तमान संकट
वर्तमान में पश्चिम बंगाल सहित पांच राज्यों – पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, नागालैंड और सिक्किम में कांग्रेस का कोई विधायक नहीं है। कांग्रेस पार्टी के लिए यह स्थिति गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि यह राज्य विधानसभा में पूरी तरह से अप्रभावी हो चुकी है। कांग्रेस के पास इन राज्यों में अपने खोए जनाधार को वापस लाने की कोई स्पष्ट रणनीति नहीं है।
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