उत्तर प्रदेश महिला आयोग की अध्यक्ष ने महिलाओं को बैड टच से बचाने के लिए और महिलाओं की सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए कुछ सुझाव सरकार को दिए हैं। हालांकि उनके इन विचारों का विरोध शुरू हो गया है और महिलाओं के परंपरागत बाजारों पर जिस प्रकार से पुरुषों का कब्जा हो गया है, तो ऐसे में उनके हिमायती लोग भी भड़क रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं की सुरक्षा बाजार में उस समय खतरे में आई है, जब महिलाओं के साथ टेलर, जिम ट्रेनर, बाल काटने वाले आदि लोगों ने अभद्रता की। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में एक महिला की जिम ट्रेनर विमल ने हत्या कर दी। इन दिनों महाराष्ट्र की एक लड़की का मामला चर्चा में है, जिसमें वह एक जिम ट्रेनर के जाल में फंसी और उसे बाद में पता चला कि वह मुस्लिम है। उसकी प्रॉपर्टी पर भी नजर है।
उत्तर प्रदेश महिला आयोग ने प्रस्ताव दिए हैं कि पुरुषों को अर्थात पुरुष दर्जियों को महिलाओं के कपड़े नहीं सिलने चाहिए और न ही उनके बाल काटने चाहिए। यदि लोगों को ध्यान हो तो पिछले दिनों सेलेब्रिटी हेयर स्टाइलिस्ट जावेद हबीब का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे एक महिला के बालों में थूक लगाते हुए देखे जा रहे थे। हंगामा हुआ था, महिला ने शिकायत की थी और राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी जावेद हबीब पर कार्यवाही की मांग की थी। हालांकि जावेद हबीब ने माफी मांग ली थी, मगर फिर भी महिला सम्मान को लेकर प्रश्न तो उठते ही हैं।
ऐसे में जब महिला को बाजार ने केवल एक वस्तु या देह तक ही सीमित कर दिया है तो यह देखा जा रहा है कि महिलाओं के प्रति पुरुषों के एक वर्ग का दृष्टिकोण भी बदल रहा है। ऐसा नहीं है कि सभी पुरुष अपराधी हैं, परंतु यदि जहां पर देह का स्पर्श सम्मिलित है, वहां पर यदि महिलाएं भी सामने होंगी या महिलाएं भी टीम में शामिल होंगी, तो देह संबंधी असहजता का जन्म नहीं होगा। उत्तर प्रदेश महिला आयोग ने प्रस्ताव दिए हैं कि पुरुष दर्जियों की दुकानों में महिला का नाप लेने के लिए महिला दर्जी होनी चाहिए और जिम में भी महिला ट्रेनर हों और डांस अकेडमी में महिला डांस शिक्षक भी हों। अर्थात जहां पर शरीर का स्पर्श सम्मिलित है, वहां पर महिलाओं की उपस्थिति होनी चाहिए।
महिला आयोग के अनुसार उनके पास शारीरीक उत्पीड़न के अतिरिक्त दर्जियों द्वारा बैड टच की भी शिकायत आती थी। हालांकि इस मामले को लेकर राजनीति भी तेज हो गई है। जहां महिला आयोग का कहना है कि ये कदम महिलाओं की सुरक्षा को लेकर हैं, तो वहीं विरोध करने वालों का कहना है कि यह समानता का विरोध है। एक मीडिया संस्थान के साथ बात करते हुए समाजवादी पार्टी की प्रवक्ता पूजा शुक्ला ने कहा कि इन गाइडलाइंस को बनाकर क्या लोगों का दिमाग बदला जा सकता है? और ये गाइडलाइंस पिछड़ी मानसिकता को दिखाती हैं, समानता कहां है? कांग्रेस की प्रवक्ता ने इस कदम को किसी की रोजी रोटी पर हमला बताया। मगर यदि ये दिशानिर्देश लागू होते हैं तो इनमें कहीं भी यह नहीं है कि पुरुष महिलाओं के लिए दर्जी या जिम ट्रेनर आदि का काम नहीं कर सकते हैं। बस यही कहा गया है कि जो पुरुष दर्जी हैं, वे महिलाओं का नाप लेने के लिए महिलाओं की नियुक्ति करें और जिम और योग और डांस अकेडमी में पुरुषों के साथ महिलाएं भी हों। वैसे तो पहले भी महिलाओं के लिए जो व्यापार हुआ करते थे, उनमें महिलाओं की संख्या होती थी। फिर चाहे वे मेहंदी लगाने वाली महिलाएं हों, चूड़ी बेचने वाली हों या फिर महिलाओं के अंत: वस्त्र बेचने वाली। इन सभी कामों में अधिकांश महिलाएं ही होती थीं।
विवाह आदि अवसरों पर महिला का मेकअप करने के लिए महिलाएं ही आती थीं। महिलाओं की एक मजबूत अर्थव्यवस्था इन कार्यों से बनती रहती थी। महिलाएं अपने घर और परिवार और व्यापार सभी को सही तरह से संभालते हुए संचालित करती थीं। परंतु समय के साथ महिलाओं के क्षेत्रों में पुरुषों का भी आगमन हुआ। परस्पर हस्तक्षेप के चलते तमाम परिवर्तन हुए हैं। मगर देह और देह के स्पर्श की अपनी एक अलग भाषा होती है। कब किसकी मानसिकता बदल जाए, कहा नहीं जा सकता है। और यदि महिलाओं से संबंधित कार्य महिलाओं के ही हाथ में रहते हैं तो समस्या क्या है? महिलाओं के लिए रोजगार में वृद्धि होगी, वे महिलाओं के मध्य और भी सुरक्षित माहौल में रहेंगी और सबसे बढ़कर सिस्टरहुड की भावना का भी विस्तार होगा।
महिला आयोग के प्रस्तावों में किसी भी पुरुष के हाथों से रोजगार छीनने की बात नहीं कही गई है, बस उनमें महिलाओं को नियुक्त करने का प्रस्ताव है। इससे एक जो महिला नियुक्त होगी उसके लिए भी रोजगार बढ़ेगा और आने वाली महिला ग्राहक भी अधिक सुरक्षित अनुभव करेंगी।
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