नैनीताल: सौंदर्य झील नगरी नैनीताल के ठीक मध्य में आलीशान मस्जिद का निर्माण संबंधी दस्तावेज और जानकारी सरकारी कार्यालयों से गायब है। यदि ये दस्तावेज होते तो आरटीआई एक्टिविस्ट को अब तक प्रशासन ने सूचना के अधिकार के तहत उपलब्ध करा दिए गए होते।
जानकारी के मुताबिक, नैनीताल नगर क्षेत्र ऐसा संवेदनशील क्षेत्र है जहां यदि एक ईंट भी किसी स्थानीय व्यक्ति को रखनी होती है तो झील विकास प्राधिकरण उसे रखने नहीं देता, बड़ा सवाल यही है कि आखिर ये मस्जिद इतने बड़े आकार में कैसे परिवर्तित हो गई? जबकि प्राधिकरण का मुख्यालय नैनीताल में है और तो और मस्जिद के ठीक बराबर में डीआईजी का कार्यालय है और मल्ली ताल थाना भी है। फिर भीं ऐसा निर्माण वो भी प्रशासन की अनुमति की बिना कैसे यहां हो गया?
ऐसा जानकारी में आया है कि यदि मस्जिद इंतजामिया कमेटी प्राधिकरण से नक्शा पास कराती तो उसकी बहुत से जमीन नियमों के हिसाब से छोड़नी पड़ती, इसका परिणाम ये भी हुआ कि मस्जिद की सीढ़ी बिल्कुल सड़क पर है और ये इमारत एक संकरे खतरनाक मोड़ को छिपाए हुए है जहां अक्सर दुर्घटनाएं होने का अंदेशा बना रहता है। हैरत की बात ये भी है कि नैनीताल में हाई कोर्ट भी है और अन्य कोर्ट भी है। क्या किसी की भी निगाहों में ये इमारत बिना किसी नियम कानून के बनती हुई दिखाई नहीं दी?
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आरटीआई एक्टिविस्ट नितिन कार्की इन्हीं सवालों के जवाब प्रशासन से मांग रहे हैं। इस जामा मस्जिद के इतिहास के बारे में विभिन्न समाचार पत्रों में लेख छपते रहे हैं। कुछ साल पहले यहां लाउडस्पीकर के शोर को लेकर भीं खबरें सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी, उस दौरान ये जानकारी में आया था कि मस्जिद ब्रिटिश काल की बनी हुई है। 30 अप्रैल 2022 को जागरण. कॉम की खबर में लिखा है कि ये मस्जिद 1882 में ब्रिटिश हुक्मरानों ने बनाई थी, ताकि उनकी सेना में भर्ती मुस्लिम जवान यहां इबादत कर सकें। उस समय ये मस्जिद बहुत ही छोटी ही थी।
मस्जिद के पुनर्निर्माण की जानकारी के वर्ष का उल्लेख भी इसी खबर में किया गया है। स्थानीय लोग भी बताते हैं कि 2004- 05 में इस मस्जिद का पुनर्निर्माण हुआ जब राज्य में एन डी तिवारी की सरकार थी और यहां से विधायक उत्तराखंड क्रांति दल के डा नारायण सिंह जंतवाल हुआ करते थे। जानकारी के मुताबिक, उस वक्त भी इस मस्जिद के फैलते आकार को लेकर सवाल उठे थे। उस वक्त झील विकास प्राधिकरण के सचिव उर्वा दत्त चैन, स्थानीय राजनीतिक नेताओं के दबाव में आ गए और वे इस मस्जिद के निर्माण पर मौन साधे रहे, यानि बिना प्राधिकरण के अनुमति के आलीशान मस्जिद खड़ी कर दी गई। जबकि प्राधिकरण उस दौरान किसी होटल या किसी निजी मकान के आगे एक बोरी रेता बजरी भी देख लेता था तो चालान कर देता था।
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जानकर बताते हैं कि 2005 में मस्जिद के निर्माण में स्थानीय मुस्लिम समुदाय के अलावा बाहर से भी फंडिंग हुई और चार मंजिला आलीशान इमारत खड़ी हो गई। उस दौरान फिर कुछ शोर-शराबा हुआ, मस्जिद निर्माण का काम रुक गया। बाद में जब 2016 में हरीश रावत की सरकार, उत्तराखंड में आई तो इसकी ऊंची मीनार का निर्माण हुआ, जो कि प्राधिकरण के द्वारा निर्धारित ऊंचाई से कई फुट ज्यादा है, बावजूद इसके इस पर कोई कारवाई आज तक झील विकास प्राधिकरण ने नहीं की।
जबकि सुप्रीम कोर्ट का ऐसा आदेश भी है कि किसी भी धार्मिक स्थल के पुनर्निर्माण या निर्माण के लिए उसे जिला प्रशासन से अनुमति लेना आवश्यक है।
एक्टिविस्ट नितिन कार्की कहते हैं कि प्राधिकरण की भूमिका इस मामले में संदेह पैदा करती है क्योंकि जब-जब नैनीताल के हिंदू सिख धार्मिक स्थलों पर कुछ भी पुनर्निर्माण या मरम्मत की बात होती है तो प्राधिकरण नोटिस जारी कर देता है। वे कहते हैं कि हम केवल जानकारी मांग रहे हैं कि इस मस्जिद के पुनर्निर्माण की अनुमति कब और कैसे दी गई ? कोई शुल्क जमा किया गया ? क्या वो प्राधिकरण या शासन के नॉर्म्स पर बनी है ?
बहरहाल नैनीताल मस्जिद का मामला सुर्खियों में है, आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी का जवाब जिला प्रशासन को देना है, अब प्रशासन ये जवाब कब और कैसे देता है? ये आने वाले कुछ दिनों में साफ हो पाएगा।
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