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जिस सैयद गिलानी ने भारतीय संविधान का हमेशा किया विरोध उसे संविधान की शपथ लेते हुए किया याद, कश्मीर में ये क्या हो रहा

पाकिस्तान का चेहरा रहे सैयद अली शाह गिलानी को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में किया याद

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सोनाली मिश्रा

जम्मू-कश्मीर की नवनिर्वाचित विधानसभा के पहले सत्र के दूसरे दिन उन नेताओं को श्रद्धांजलि दी गई, जिनका निधन पिछले छह वर्षों के दौरान हुआ था। इन नेताओं में भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी, जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल जगमोहन मल्होत्रा, पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रोफेसर चमन लाल गुप्ता, पूर्व केंद्रीय मंत्री पी नामग्याल, विधान परिषद के पूर्व अध्यक्ष अब्दुल रशीद डार, पूर्व विधायक मियां बशीर अहमद, मदन लाल शर्मा, मुहम्मद शरीफ नियाज, सैयद मुश्ताक अहमद बुखारी, ठाकुर रणधीर सिंह, अब्दुल गनी मीर, गोविंद राम, पूरन सिंह, सरदार रफीक हुसैन खान, तोगदान रिम्पोछे, गुलाम कादिर मीर और काजी मुहम्मद अफजल, पूर्व विधायक प्रोफेसर भीम सिंह, कृष्ण देव सेठी सहित कई महत्वपूर्ण नाम शामिल थे।

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी को विशेष रूप से याद किया और जम्मू-कश्मीर को लेकर उनके विचारों और प्रयासों की सराहना की। परंतु जो सबसे चौंकाने और हैरान करने वाला नाम था, वह था दो विधायकों द्वारा कश्मीर के अलगाववादी और कश्मीर में पाकिस्तानी एजेंडा या कहें कट्टर इस्लामी एजेंडा चलाने वाले कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी का नाम।
गिलानी की मौत वर्ष 2021 में हुई थी। वह कश्मीर से 1972, 1977 और 1987 में विधायक रहा था। कुल 90 विधायकों में से दो विधायकों ने गिलानी का नाम अपने भाषणों में शामिल किया। सत्ताधारी नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी के विधायक बशीर अहमद वीरी और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के रफीक अहमद नाइक ने गिलानी को याद किया।

गिलानी की प्रतिबद्धता किसके प्रति थी, इसमें किसी को कभी भी कोई भी संदेह नहीं रहा। यह हैरान करने वाली बात है कि भारत के संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेने वाले दो नेताओं ने सैयद अली शाह गिलानी को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिसने हमेशा ही भारतीय संविधान का विरोध किया। गिलानी कश्मीर में पाकिस्तान का सबसे बड़ा चेहरा था। वह कश्मीर के मजहबी स्वरूप को लेकर पाकिस्तान में विलय की वकालत करता था। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के मालिक गिलानी, जिसे इन दोनों नेताओं ने यह कहते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की कि हमारी विचारधारा अलग थी, मगर फिर भी गिलानी ने कई लोगों को प्रेरणा दी थी। गिलानी का कश्मीर की मुस्लिम पहचान को लेकर जुनून और उसी मुस्लिम पहचान के आधार पर पाकिस्तान में मिलाने की जुनून किसी से छिपा नहीं है। वर्ष 2021 में उसकी मौत पर इंडिया टुडे में वर्ष 1994 उसके द्वारा जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला को भेजे गए पत्र का उल्लेख था, जिसमें उसने लिखा था कि “मुस्लिम अपने मजहब, तहजीब और रीति रिवाजों और विचारों के आधार पर एक पूरी तरह से अलग मुल्क हैं। उनकी एकता और राष्ट्रीयता उनकी मातृभूमि, नस्ल, भाषा, रंग या आर्थिक आधार पर नहीं हो सकती है। इसके स्थान पर उनकी एकता केवल और केवल इस्लाम है और उनका यह यकीन कि अल्लाह के अलावा कोई खुदा नहीं है और मुहम्मद अल्लाह के पैगंबर हैं।”

उसका एक वीडियो भी कई कश्मीरी पंडितों ने साझा किया है। इस वीडियो में वह अलकायदा के ओसामा बिन लादेन की मौत पर पाकिस्तान को नसीहतें देता हुआ दिखाई दे रहा है। वह पाकिस्तान के हुक्मरानों से यह कह रहा है कि पाकिस्तान इस्लाम के लिए हासिल किया गया है और उसका इस्लाम के लिए ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए। वहां सेक्युलरिज्म नहीं चलेगा, वहां सोशलिज़्म नहीं चलेगा, वहाँ नेशनलिज़्म नहीं चलेगा, अमेरिका का वर्ल्ड ऑर्डर नहीं चलेगा, वहाँ सिर्फ और सिर्फ इस्लाम चलेगा। इसमें आगे वह कहता हुआ दिखाई दे रहा है कि “इस्लाम की मोहब्बत से हम पाकिस्तानी हैं और पाकिस्तान हमारा है।” उसके लोगों की भीड़ उसका समर्थन कर रही है।

गिलानी ने पाकिस्तान में कश्मीर को मिलाने को लेकर कई किताबें भी लिखीं थीं। कश्मीर के पाकिस्तान में विलय को लेकर उसने भारत के प्रति अलगाववादी भावनाएं वहां के मुस्लिमों में भरी थीं। वह इतना पाकिस्तान परस्त था कि उसकी मौत पर उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी अफसोस जताया था। इमरान खान ने लिखा था, “हम गिलानी की जंग को सलाम करते हैं और गिलानी के उन शब्दों को याद करते हैं जिसमें कहा गया था कि हम पाक्सितानी हैं और पाकिस्तान हमारा है!”

ऐसे गिलानी को जम्मू-कश्मीर की विधानसभा के पहले सत्र के दूसरे दिन क्यों याद किया गया, यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है। यहाँ बात विचारधारा की नहीं है, विचार की है। गिलानी का विचार ही कट्टर इस्लाम वाला पाकिस्तान था, और कश्मीर का विचार भारत है। पाकिस्तान के विचार वाले आदमी को जिस तरह से कश्मीर की विधानसभा में श्रद्धांजलि व्यक्त की गई, वह “आइडिया ऑफ पाकिस्तान” को समर्थन और “भारत की पहचान” के प्रति धोखा है, भारत के संविधान के प्रति छल है।

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