भारत के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने एक बार फिर से भारत की न्यायपालिका की स्वतंत्रता की बात की। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र न्यायपालिका का अर्थ केवल सरकार की बुराई करना नहीं होता। यदि न्यायपालिका स्वतंत्र है तो इसका अभिप्राय यह नहीं होता कि वह सरकार के खिलाफ ही निर्णय देगी। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल 10 नवंबर को समाप्त हो रहा है। उनके कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण निर्णय आए हैं, जिनमें से इलेक्टोरल बॉन्ड का निर्णय उल्लेखनीय रहा है।
क्या होते हैं प्रेशर ग्रुप्स.?
भारत की मीडिया और कथित एक्टिविस्ट का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है, जिसका उद्देश्य हमेशा ही सरकार के हर कदम की बुराई करना और हर कदम को रोकना होता है। एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जिसका कहना है कि सामाजिक कार्यकर्ताओं को केवल सरकार के हर निर्णय का विरोध करना चाहिए क्योंकि वह जनता का पक्ष होता है। मगर वह कौन सी जनता है फिर जो सरकार को चुनती है? फिर वह कौन है जो सरकार का चयन करके अपने लिए कानून बनाने का अधिकार सरकार को देती है? जब से नरेंद्र मोदी की सरकार आई है, तब से यह प्रेशर ग्रुप और भी अधिक सक्रिय हुआ है और नरेंद्र मोदी सरकार के हर कानून, हर निर्णय का विरोध करना और उसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करके कार्य को रोकना वह अपना सबसे बड़ा कर्तव्य समझता है।
कौन भूल पाएगा भारत की निर्वाचन व्यवस्था को बार-बार कठघरे में खड़े करने वाली याचिकाएं, जिनमें बार-बार यह कहा गया कि ईवीएम में छेड़छाड़ हो सकती है। ऐसे एक नहीं तमाम मामले रहे हैं, जिन्हें लेकर सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर की गईं और उनका उद्देश्य सरकार और भारत की संवैधानिक संस्थाओं के प्रति अविश्वास उत्पन्न करना था। वह प्रेशर ग्रुप मीडिया में बैठे अपने इकोसिस्टम के माध्यम से दबाव पैदा करता है और न्यायपालिका पर भी दबाव डलवाने का पूरा प्रयास करता है। ऐसे-ऐसे लेख लिखे जाते हैं, कि जिससे न्यायाधीशों पर दबाव पड़े और कानून के आधार पर नहीं, बल्कि उनके एजेंडे के आधार पर निर्णय आएं। उसी प्रेशर ग्रुप पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अब अपनी बात कही है।
मुख्य न्यायाधीश ने खुलकर रखी बातें
सोमवार को इंडियन एक्सप्रेस द्वारा आयोजित एक समारोह में, भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि जब उन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को रद्द किया था, तो उनकी प्रशंसा हुई थी और यह कहा गया था कि न्यायपालिका आजाद है। उन्होंने कहा कि जब आप चुनावी बॉन्ड पर कोई निर्णय देते हैं, तो आप स्वतंत्र न्यायपालिका हो जाते हैं, और जब कोई निर्णय सरकार के पक्ष में जाता है, तो आप स्वतंत्र नहीं होते, यह स्वतंत्रता की मेरी परिभाषा नहीं है!
सोशल मीडिया पर भी बोले
उन्होंने सोशल मीडिया और प्रेशर ग्रुप के बारे में बात करते हुए कहा कि पहले स्वतंत्र न्यायपालिका का अर्थ होता था कि वह अधिकारियों और नेताओं के प्रभाव से मुक्त है। मगर अब एक नई परिभाषा हो गई है। न्यायपालिका का अर्थ अब सरकार से स्वतंत्रता है। मगर यही अकेली बात नहीं है। हमारा समाज बदल चुका है और सोशल मीडिया के आने के बाद से कई इन्टरेस्ट ग्रुप, प्रेशर ग्रुप और ऐसे समूह हैं, जो अपने मनपसंद निर्णय पाने के लिए न्यायालय पर दबाव बनाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया का सहारा लेने का प्रयास करते हैं!
उन्होंने यह भी कहा कि इससे मेरी आपत्ति है। यदि कानून के अनुसार मामले का निर्धारण सरकार के पक्ष में होना है तो ऐसा क्यों नहीं होना चाहिए। लोगों को न्यायाधीशों को यह स्वतंत्रता देनी चाहिए कि वह यह तय कर सकें कि न्याय का संतुलन क्या है और फिर वह निर्णय किसी के भी पक्ष में जाए। उन्होंने उमर खालिद की जमानत वाले प्रश्न पर कहा कि उन्होंने ए से जेड तक जमानत दी है।
ए से जेड का अर्थ उन्होंने अर्नब से ज़ुबैर तक बताया। उन्होंने कई बातें बताईं कि जमानत देते समय देखना होता है कि अपराध क्या है, अपराध की प्रवृत्ति क्या है और आरोपी किस सीमा तक सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है आदि। उन्होंने कहा कि एक ऑर्डर होता है। यदि कोई सीधे केवल इस कारण सुप्रीम कोर्ट आता है कि उसके पास साधन है, उसके पास वकील हैं जो उसका केस लड़ सकते हैं, तो न्यायालय यह कह सकता है कि आपके लिए हम कोई अपवाद नहीं कर सकते, आपको निचली अदालत में जाना होगा।
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