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दारुल उलूम देवबंद के फतवे पर उठे सवाल: बैंक कर्मचारियों की तनख्वाह हराम, तो मदरसा मौलानाओं की तनख्वाह क्या?

इस्लामिक संस्था दारुल उलूम देवबंद द्वारा हाल ही में जारी किया गया फतवा, जिसमें बैंक कर्मचारियों के बच्चों से निकाह करने से मना किया गया है क्योंकि उनकी तनख्वाह ब्याज की कमाई से आती है।

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Mahak Singh

इस्लामिक संस्था दारुल उलूम देवबंद द्वारा हाल ही में जारी किया गया फतवा, जिसमें बैंक कर्मचारियों के बच्चों से निकाह करने से मना किया गया है क्योंकि उनकी तनख्वाह ब्याज की कमाई से आती है, एक बार फिर सुर्खियों में है। इस फतवे में यह कहा गया है कि बैंक कर्मचारियों की कमाई हराम है, क्योंकि इस्लाम में ब्याज को हराम माना गया है। यह फतवा अब न केवल मजहबी बल्कि सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर भी चर्चा का विषय बन चुका है।

राष्ट्रीय बाल आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने ट्वीट कर उठाए सवाल

इस फतवे को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो के ट्वीट के बाद, जिसमें उन्होंने इस फतवे पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने यह सवाल उठाया है कि मदरसों को सरकारी फंडिंग मिलती है, और यह फंडिंग ब्याज की कमाई से आती है, तो क्या मौलानाओं की लाखों रुपये की तनख्वाह भी हराम नहीं है? उनका कहना था कि अगर बैंक कर्मचारियों की मेहनत की कमाई हराम है, तो मदरसों को मिलने वाली सरकारी फंडिंग से मौलानाओं की तनख्वाह का क्या होगा?

आम मुसलमान के बच्चों की शिक्षा और तरक्की में रुकावट

प्रियंक कानूनगो का यह भी कहना है कि दारुल उलूम देवबंद जैसे संस्थानों का उद्देश्य आम मुसलमान के बच्चों की शिक्षा और तरक्की में रुकावट डालना हो सकता है।

मौलानाओं की तनख्वाह

सरकार से मदरसा को फंडिंग मिलती रहे इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में महंगे-महंगे कांग्रेसी वकील खड़े किए हैं। मदरसा दारुल उलूम देवबंद और अन्य मजहबी संस्थान सरकारी फंडिंग प्राप्त करते हैं, और यह फंडिंग ब्याज की कमाई से आती है।

मौलानाओं की तनख्वाह को क्या माना जाएगा?

अगर बैंक कर्मचारियों की तनख्वाह हराम मानी जाती है, तो उन फंडिंग से प्राप्त मौलानाओं की तनख्वाह को क्या माना जाएगा? यह एक बड़ा सवाल है।

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