उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में पुलिस हिरासत से संबंधित एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है, जो पुलिस और मानवाधिकार के मुद्दों पर व्यापक चर्चा को जन्म दे सकती है। कोर्ट ने महाराजगंज के शाह फैसल की रिट याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि हर गिरफ्तारी और हिरासत में यातना का आरोप नहीं लगाया जा सकता।
जानिए क्या है पूरा मामला?
शाह फैसल ने पुलिस के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने अपनी गिरफ्तारी और हिरासत को अमानवीय करार दिया और उत्तर प्रदेश सरकार से मुआवजे की मांग की थी। उनका आरोप था कि परतावल थाने के पुलिसकर्मियों ने उनसे 50 हजार रुपये की मांग की और पैसे न देने पर उन्हें धमकाया। उन्होंने यह भी बताया कि जब उन्होंने पैसे देने से मना किया, तो उन्हें लॉकअप में पीटा गया।
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की
हालांकि, हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ पहले से मामला दर्ज है, और इसलिए मुआवजा देने का अनुरोध करना उचित नहीं होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ बिना ठोस सबूतों के आरोप लगाना मानवाधिकार के उल्लंघन के दावों को गलत प्रवृत्ति की ओर ले जा सकता है।
याचिकाकर्ता के पास कोई ठोस प्रमाण नहीं
हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि हर अपराधी, जो हिरासत में लिया जाता है, पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भारी मुआवजे की मांग करते हुए याचिका दायर करेगा, जिससे एक अनियंत्रित स्थिति उत्पन्न हो सकती है। अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता के पास हिरासत में यातना का कोई ठोस प्रमाण नहीं है।
यहां यह महत्वपूर्ण है कि न्यायालय ने मामले की गंभीरता को देखते हुए यह निर्णय लिया है। अगर कोई व्यक्ति कानून का उल्लंघन करता है और उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज है, तो उसे पुलिस द्वारा पूछताछ के लिए बुलाया जाना स्वाभाविक है।
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