देहरादून । दीपावली से पूर्व एक सप्ताह तक राष्ट्रपति भवन में आयोजित आर्टिस्ट-इन-रेजिडेंस कार्यक्रम में देश के विभिन्न राज्यों से आए 15 अपनी अपनी कलाओं को प्रदर्शित किया गया था, जिसके समापन के पश्चात महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आर्टिस्ट -इन- रेजिडेंस कार्यक्रम में सभी कलाकारों की कला का अवलोकन किया और 15 कलाकारों को सम्मानित भी किया। राष्ट्रपति ने सभी कलाकारों की बेहतरीन कला को सराहा।
महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आर्टिस्ट -इन- रेजिडेंस कार्यक्रम के अवलोकन के दौरान उत्तराखंड की ऐपण में मीनाक्षी खाती द्वारा बनाए गए ऐपण उत्पादों की भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए सराहना की। राष्ट्रपति से सराहना पाने के बाद ऐपण गर्ल मीनाक्षी खाती बेहद खुश हैं। ऐपण में मीनाक्षी खाती कहती हैं कि चित्रकला ऐपण, पहाड़ के घर गांवों की देहली से राष्ट्रपति भवन तक अपनी चमक बिखेर रही है। मुझे खुशी है कि हमारी सैकड़ों वर्ष पुरानी पौराणिक लोक विरासत अपनी पहचान बनाने में सफल हुई है। गौरतलब है कि अपनी समृद्धशाली सांस्कृतिक विरासत व अनमोल परंपराओं, लोककलाओं के कारण उत्तराखंड देश ही नहीं बल्कि दुनिया में अपनी अलग ही पहचान रखता है। यहां पर एक से एक अनूठे लोकपर्व मनाए जाते हैं जो यहां की प्रकृति, भूमि ,जंगल, देवताओं को समर्पित रहते हैं। इसी के साथ ही यहां पर ऐसी कई सारी लोक कलाएं भी मौजूद है जो बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। इन्ही में से एक है गेरू अर बिस्वार संग कुमाऊँ की लोक चित्रकला ‘ऐपण’।
मीनाक्षी नें ‘ऐपण’ को दिया नया लुक, लोगों नें सराहा!
कुमाऊं मंडल में नैनीताल जनपद के छोई (रामनगर) की रहने वाली मीनाक्षी खाती वर्तमान में अपनी बेहतरीन चित्रकला से लोगों के मध्य चर्चित है। मीनाक्षी की शानदार कला को देखकर हर कोई मीनाक्षी को ‘ऐपण गर्ल’ कहकर संबोधित करते हैं। मीनाक्षी नें ऐपण कला नया लुक दिया ताकि इस कला को बढ़ावा मिले। मीनाक्षी नें चाय के कप, नेम प्लेट से लेकर चाबी के छल्ले, रिंग, पूजा की थाली सहित विभिन्न प्रकार अभिनव प्रयोग ऐपण कला को लेकर किया है। ये अभिनव प्रयोग लोगों को बेहद भाये। हर किसी नें इसकी भूरी भूरी प्रशंसा की। मीनाक्षी का मानना है कि हमें अपनी इस लोकविरासत को नयी पहचान दिलाने के लिए कुछ मार्डन प्रयोग करने होंगे ताकि ये कला लोगों तक आसानी से पहुंच सके। बकौल ‘ऐपण गर्ल’ मीनाक्षी खाती हमारी पहचान ही हमारी लोकसंस्कृति और सांस्कृतिक विरासत है। इसका संवर्धन और संरक्षण आवश्यक है। जिससे आने वाली पीढ़ियों को भी अपनी सांस्कृतिक विरासत की जानकारी हो। युवा पीढ़ी को चाहिए की अपनी लोकसंस्कृति को कभी भी न बिसराये। मैंने ऐपण के जरिये छोटी सी कोशिश की है कि अपनी लोकसंस्कृति को दूसरे लोगों तक पहुंचा सकूं। मैं ऐपण बनाने में गेरू और विस्वार का प्रयोग करती हूँ, लेकिन ज्यादातर में रंगो से ही ऐपण बनाती हूँ। मुझे खुशी है कि लोगों को मेरा कार्य पंसद आ रहा है।
दादी और माँ से विरासत में मिली ‘ऐपण’ बनाने की कला!
कुमाऊनी ऐपण का जो रूप सदियों पहले था वही रूप आज भी है बल्कि यूं कह सकते हैं कि समय के साथ-साथ यह और भी समृद्ध हो चला है। जिसमें सबसे अहम योगदान यहाँ की महिलाओं का रहा है। जो पीढी दर पीढी इस कला को एक दूसरे को हस्तांतरित करती है। मीनाक्षी नें भी ऐपण कला की बारकिंया अपनी दादी और माँ से सीखा। मीनाक्षी कहती है कि जब भी घर में मेरी दादी और माँ ऐपण बनाती थी तो मैं बडे ध्यान से देखती थी। मुझे बचपन से ही ऐपण कला आकर्षित करती थी और आज मैं भी ऐपण बनाने लगी हूँ। ऐपण गर्ल नें अपने पूरे घर के कोने कोने को ऐपण की खूबसूरती से सजाया है। जहां भी नजर पडे आपको बेहतरीन चित्रकारी का नमूना दिखाई देगा। ये घर नहीं बल्कि चित्रकला का कोई म्यूजियम नजर आता है। गौरतलब है कि कुमाऊं की इस समृद्धशाली कला को महिलाओं ने ह़ी जीवित रखा हैं। इस अनमोल धरोहर को सजाने, संवारने, सहेजने की जिम्मेदारी महिलायें बरसों से बखूबी निभाती आ रही है। महिलाएं इस चित्रकला के माध्यम से अपने मन के भाव व अपनी शुभकामनाओं की अभिव्यक्ति उस ईश्वर के प्रति व अपने घर के प्रति करती है। इससे न सिर्फ घर सुंदर दिखता है बल्कि पवित्र भी हो जाता है। मन व माहौल एक नये उत्साह और उमंग से भर जाता है।
ये है कुमाऊं की लोकविरासत ऐपण कला!
कुमाऊं में किसी भी मांगलिक कार्य के अवसर पर अपने अपने घरों को सजाने की परंपरा है। यह कुमाऊं की एक लोक चित्रकला की शैली है जो अपनी अलग पहचान बना चुकी है। परंपरागत ऐपण प्राकृतिक रंगों से बनाए जाते हैं जैसे गेरू (एक प्रकार की लाल मिट्टी जो पहाड़ में पाई जाती है ) और चावल के आटे (चावल के आटे में पानी मिलाकर उसे थोड़ा पतला बनाया जाता है जिसे स्थानीय भाषा में बिस्वार कहते हैं) से बनाई जाती है। इसमें महिलाएं विभिन्न प्रकार के चित्र बनाकर घर के आंगनों ,दरवाजों, दीवारों, मंदिरों को सजाती हैं जिन्हें ऐपण कहते हैं। जो घर की सुंदरता को तो बढ़ाते ह़ी है साथ ही साथ मन में पवित्रता का भाव भी पैदा कर देते हैं। ऐपण का अर्थ लीपने से होता है और लीप शब्द का अर्थ अंगुलियों से रंग लगाना है। ऐपण बनाने वक्त महिलाएं चांद, सूरज, स्वस्तिक, गणेश जी, फूल,पत्ते, बेल बूटे, लक्ष्मी पैर, चोखाने, चौपड़, शंख, दिये, घंटी आदि चित्र खूबसूरती से जमीन पर उकेरती हैं। जिस जगह पर ऐपण बनाने होते हैं उस जगह की पहले गेरू से पुताई की जाती हैं उसके बाद उसमें बिस्वार से डिज़ायन बनाये जाते हैं। दीपावली के अवसर पर कुमाऊं के घर-घर एपण से सज जाते हैं। घरों को आंगन से घर के मंदिर तक ऐपण देकर सजाया जाता है। दीपावली में बनाए जाने वाले ऐपण में मां लक्ष्मी के पैर घर के बाहर से अन्दर की ओर बनाए जाते है। दो पैरों के बीच के खाली स्थान पर गोल आकृति बनायी जाती है जो धन का प्रतीक माना जाता है। पूजा कक्ष में भी लक्ष्मी की चौकी बनाई जाती है। माना जाता है कि इससे लक्ष्मी प्रसन्न होती है और घर परिवार को धनधान्य से पूर्ण करती है। इनके साथ लहरों, फूल मालाओं, सितारों, बेल-बूटों व स्वास्तिक चिन्ह की आकृतियां बनाई जाती है माना जाता है यह इनमें तांत्रिक प्रभाव को प्रबलब नाती है। अलग-अलग प्रकार के ऐपण बनाते समय अनेक मंत्रों का भी उच्चारण करने की परंपरा है। ऐपण बनाते समय कई त्योहारों पर मांगिलक गीतों का गायन भी किया जाता रहा है। गोवर्धन पूजा पर ‘गोवर्धन पट्टा तथा कृष्ण जन्माष्टमी पर ‘जन्माष्टमी पट्टे बनाए जाते हैं। नवरात्र में ‘नवदुर्गा चौकी तथा कलश स्थापना के लिए नौ देवियों एवं देवताओं की सुंदर आकृतियों युक्त ‘दुर्गा चौकी बनाई जाती है। सोमवार को शिव व्रत के लिए ‘शिव-शक्ति चौकी बनाने की परंपरा है । सावन में पार्थिव पूजन के लिए ‘शिवपीठ चौकी तथा व्रत में पूजा-स्थल पर रखने के लिए कपड़े पर ‘शिवार्चन चौकी बनाई जाती है। ऐपण में लोगों की कलात्मक, आध्यात्मिक व सांस्कृतिक अभिव्यक्ति भी दिखाई देती है।
अलग अलग प्रदेशों में अलग अलग नामों से जाने जाते हैं!
रंगो और कूची की इस कला को उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में ऐपण नाम से जाना जाता है। वहीं केरल में कोल्लम, बंगाल त्रिपुरा व आसाम में अल्पना, उत्तर प्रदेश में साची और चौक पुरना, बिहार में अरिपन, आंध्र प्रदेश में मुग्गु, महाराष्ट्र में रंगोली और राजस्थान में इस कला को मॉडला के नाम से जाना जाता है। सभी कलाओं में रंगो से चित्रकारी की जाती है।
ऐपण गर्ल ने बनाया 5 हजार महिलाओं को आत्मनिर्भर, महिलाओं का बदला जीवन..
ऐपण गर्ल नाम से फेमस मीनाक्षी खाती ऐपण कला को जीवंत करने का काम तो कर ही रही हैैं, साथ ही कई महिलाओं को भी वे रोजगार भी दे रही हैैं। मीनाक्षी ऐपण कला को स्वरोजगार का जरिया बनाकर एक अनोखी मिसाल पेश कर रही हैं। उनका उद्देश्य युवाओं के बीच विलुप्त होती इस कला को लोकप्रिय बनाना था। इसके लिए उन्होंने दिसंबर 2019 में मीनाकृति – ऐपण प्रोजेक्ट नामक प्रोजेक्ट की शुरुआत की और इस कला के जरिए उत्तराखंड की लगभग 5,000 से अधिक महिलाओं का जीवन बदलकर उन्हें आर्थिक रूप से स्वालंबी बनाया है। मीनाक्षी बताती हैं कि उन्हें इस बात की खुशी है कि वो इस कला को रोजगार से जोड़ पाई और विलुप्त होती कुमाऊं की लोक कला को एक नई पहचान दिलाने में सफल हुई। वो ऐपण कला पर 2017 से काम कर रही हैं। इसी के तहत वो अपनी टीम के साथ खुद से माता की चौकी, थाली, प्लेट्स, केतली आदि चीजों पर ऐपण बना रही हैं। साथ वो राज्य के 5 हजार से ज्यादा लोगों को ऑफलाइन और पांच हजार से ज्यादा लोगों को ऑनलाइन प्रशिक्षण दे चुकी हैं। वे लोगों को स्कूलों, कॉलेजों और सोशल मीडिया पर वर्कशॉप्स के जरिए भी ये कला सिखा रही हैं।
मीनाक्षी को मिलें हैं कई पुरस्कार..
- मां नंदा शक्ति पुरस्कार
- महिला मातृशक्ति पुरस्कार
- वीर बालिका सम्मान
- कल्याणी सम्मान
- सर्वश्रेष्ठ उद्यमी पुरस्कार
वास्तव में देखा जाए तो वटसप यूनिवर्सिटी और फेसबुक यूनिवर्सिटी के दौर में जहाँ युवा पीढ़ी अधिकतर समय इन्ही सोशल साइटों पर अपना समय खर्च करते हैं वहीं दूसरी ओर ‘ऐपण गर्ल’ मीनाक्षी खाती जैसी युवाओं का अपनी लोकसंस्कृति के प्रति लगाव और उसे आगे बढ़ाने की ललक सुखद है।
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