भारत

परंपरा से परिवर्तन तक : गुवाहाटी विश्वविद्यालय और असम की छात्र राजनीति में ABVP की ऐतिहासिक जीत

Published by
अनूप कुमार

असम के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. गोपीनाथ बरदलै सरकार के तत्वाधान में एवं उनके स्वप्न स्वरूप पूर्वोत्तर भारत का प्रथम एवं सबसे बड़े विश्वविद्यालय गुवाहाटी विश्वविद्यालय की स्थापना 26 जनवरी 1948 यानी देश की आजादी के छह महीने के भीतर होती है। संस्थापक कुलपति के रूप में संस्कृत के प्रकांड विद्वान, विचारक एवं समाजसेवी प्राध्यापक कृष्ण कांत संदिकै नियुक्त होते हैं। गुवाहाटी विश्वविद्यालय को एक ऊंचाई पर ले जाने में एक मजबूत शिक्षा एवं संस्कृति की नींव डालने का कार्य प्राध्यापक कृष्ण कांत संदिकै ने किया। विश्वविद्यालय के आधिकारिक गीत को पूर्णता देने का काम प्रसिद्ध संगीतकार एवं गायक डॉ. भूपेन हजारिका ने किया। ब्रह्मपुत्र घाटी को ज्ञान की ज्योति से उज्ज्वल करने की आकांक्षा इस संगीत में मिलती है:-

“जिलिकाब लुइतरे पार
आंधारर भेंटा भाङि
प्रागज्योतिषत बइ
जेउति निज़रारे धार…”

अर्थात् , गुवाहाटी विश्वविद्यालय लुइत (ब्रह्मपुत्र) नद के दोनों पार के अंधेरे का शमन कर ज्ञान के प्रकाश के किरण से प्रागज्योतिष को आलोकित करेगा। पूर्वोत्तर का सबसे पहला एवं बड़ा विश्वविद्यालय होने के नाते इस विश्वविद्यालय ने पूर्वोत्तर क्षेत्र एवं विशेषकर असम के भीतर सिर्फ शिक्षा ही नहीं, हर क्षेत्र में नेतृत्व खड़ा करने का कार्य किया है। उच्च शिक्षा का क्षेत्र हो, सामाजिक क्षेत्र हो, सांस्कृतिक क्षेत्र हो या राजनीतिक क्षेत्र हो अब तक तीन मुख्यमंत्री ऐसे हैं जो गुवाहाटी विश्वविद्यालय के छात्र रहे। शिक्षाविद अमर ज्योति चौधरी, अर्थशास्त्री एवं लेखक भवानंद डेका, वैज्ञानिक जितेंद्र नाथ गोस्वामी, अभिनेत्री कश्मीरी सैकिया बरुआ, शिक्षाविद महिम बरा, साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त नगेन सैकिया, स्त्री शक्ति सम्मान प्राप्त श्रीमती पूर्णिमा देवी बर्मन, उपन्यासकार ध्रुव हजारिका, पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री राजकुमार रंजन सिंह, प्रसिद्ध उपन्यासकार डॉक्टर रीता चौधरी, बोड़ो सामाजिक कार्यकर्ता उपेंद्रनाथ ब्रह्म जैसे विभूतियों को इसी विश्वविद्यालय ने जन्म दिया है।

गुवाहाटी विश्वविद्यालय असम में हुए माध्यम आंदोलन का भी बड़ा केंद्र रहा है। सरकार द्वारा त्रिभाषी व्यवस्था लागू करने के विरोध में 1972 में इस विश्वविद्यालय में बड़ा आंदोलन होता है। आंदोलन के फलस्वरूप ब्रह्मपुत्र घाटी में असमिया भाषा एवं बराक घाटी में बांग्ला भाषा को माध्यम के रूप में स्वीकृति दी जाती है एवं बराक घाटी में एक तीसरे विश्वविद्यालय की स्वीकृति केंद्र सरकार से मिलती है, जिसे आज असम विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है। असम में बांग्लादेशी घुसपैठ की गंभीर समस्या है, जो मुस्लिम वोट बैंक के लालच में कांग्रेस की दीर्घकालीन सरकार की देन है। मंगलदै लोकसभा के निवर्तमान सांसद श्री हीरालाल पटवारी के आकस्मिक निधन के कारण उपचुनाव होना था। उपचुनाव के वोटर लिस्ट में लोगों को ध्यान में आया कि लगभग 45 हजार अवैध मुस्लिम घुसपैठियों के नाम वोटर लिस्ट में दर्ज हैं। पूरा असम इस विषय के ध्यान में आने से स्तब्ध हो गया। इस विषय को लेकर आंदोलन शुरू होता है। जिसे असम आंदोलन के रूप में जाना जाता है। जिसका नेतृत्व ऑल असम स्टूडेंटस यूनियन (आसू ) करती है। बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठ को राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से खतरा देखते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने भी इस आंदोलन को समर्थन दिया। परिषद ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर ले जाकर घुसपैठ जैसी गंभीर समस्या के बारे में देशव्यापी जनजागरण किया। उस समय के विद्यार्थी परिषद के नेता श्रीमान सुशील कु. मोदी एवं श्री हरेंद्र प्रताप जी के नेतृत्व में विद्यार्थी परिषद का एक प्रतिनिधिमंडल आसू से मिलता है। असम आंदोलन के नेताओं श्री प्रफुल्ल कुमार महंत एवं स्व.भृगु कुमार फूकन जैसे नेताओं को भारत के बड़े एवं प्रतिष्ठित विश्विद्यालयों में घुसपैठ की समस्या को लेकर संगोष्ठी एवं अलग-अलग जनजागरण के कार्यक्रम आयोजित किए, जिसमें आसू के नेताओं को वक्ता के नाते आमंत्रित किया गया एवं उन्होंने असम में चल रही समस्या से देशभर को अवगत कराया। जिस कारण यह समस्या सिर्फ असम की स्थानीय समस्या न होकर एक राष्ट्रीय समस्या बनी।

जब कांग्रेस सरकार ने करवाया लाठीचार्ज

इस आंदोलन को दबाने के लिए असम की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने देशभर से आए छात्रों के ऊपर वीभत्स लाठीचार्ज करवाया। सैकड़ों छात्र इस आंदोलन में घायल हुए एवं पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए। गुवाहाटी विश्वविद्यालय शुरुआती दिनों से ही सामाजिक एवं राजनैतिक गतिविधियों का बड़ा केंद्र रहा है। असम आंदोलन का भी केन्द्रबिन्दु आसू ने गुवाहाटी विश्वविद्यालय के छात्रावास को ही बनाया। यह आंदोलन विश्विद्यालय के छात्रावासों से परिचालित होता था। धीरे-धीरे आंदोलन हिंसक होने लगा एवं 855 लोग पुलिस की गोली से मारे गए। इस समस्या के समाधान के लिए आसू, असम सरकार एवं भारत सरकार के बीच असम एकार्ड हस्ताक्षर होने के बाद आसू ने “असम गण परिषद” नामक एक क्षेत्रीय राजनैतिक दल गठन कर विधानसभा चुनाव में भाग लिया था।1985 में हुए इस चुनाव में असम गण परिषद की जीत होती है एवं देश के इतिहास में ऐसा पहली बार होता है कि एक छात्र संगठन (आसू ) के अध्यक्ष रहे श्री प्रफुल्ल कुमार महंत मात्र 33 वर्ष की आयु में गुवाहाटी विश्वविद्यालय छात्रावास से चुनाव जीतकर सीधा मुख्यमंत्री की शपथ लेते हैं एवं मुख्यमंत्री आवास पहुंचकर असम की बागडोर संभालते हैं।लेकिन सत्ता में शामिल होते हीं असम गण परिषद अपनी असमिया जाति की रक्षा के लिए किए गए वादे एवम् संकल्प को सत्ता मद में भूल जाती है एवं आकंठ भ्रष्टाचार में डूब जाती है।अंग्रेजी इतिहासकार एवं विचारक लॉर्ड ऐक्टन की एक प्रसिद्ध पंक्ति है “Power tends to corrupt, and absolute power corrupts absolutely” असम गण परिषद के साथ यह चरितार्थ होता हुआ दिखता है।

गौहाटी विश्वविद्यालय के चुनाव का असम में विशेष प्रभाव

गुवाहाटी विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर छात्र संघ चुनाव का पूरे असम के भीतर विशेष प्रभाव होता है। इस चुनाव के परिणाम पर पूरे राज्यवासी की नजर होती है। भाषा आंदोलन एवं असम आंदोलन का नेतृत्व देने के कारण आसू का गहरा प्रभाव विश्वविद्यालय के छात्र संघ में होता है। साथ ही साथ कांग्रेस की छात्र इकाई एन.एस.यू.आई, वामपंथी पार्टी का छात्र इकाई एस.एफ.आई. एवं असम गण परिषद की छात्र इकाई असम छात्र परिषद भी छात्र संघ चुनाव में भाग लेते आए हैं। आसू के पुराने कार्यकर्ता जो सरकार या सत्ता में बैठे हैं या विश्वविद्यालय प्रशासन में शामिल हैं, उनकी मदद भी आसू को आंतरिक तौर पर मिलती रहती है, जिससे आसू को विश्वविद्यालय परिसर में और भी मजबूती मिलती है। किंतु समय-समय पर आसू के ऊपर तथाकथित रूप से क्षेत्रवाद के नाम पर भावना भड़का कर अराजकता फैलाने का एवं डरा-धमकाकर जबरन चंदा वसूलने का आरोप लगता है। जिस कारण आज असम की आम जनता एवं आम छात्र समाज का आसू के प्रति मोह भंग हो रहा है एवं धीरे-धीरे आसू की लोकप्रियता आम छात्रों के बीच से कम होती जा रही है। वहीं दूसरी ओर राष्ट्रवादी छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जिसने एक समय असम आंदोलन के लिए आसू को समर्थन दिया था उसके कार्यकर्ता गुवाहाटी विश्विद्यालय के परिसर में छात्र हित के मुद्दों को लेकर समय-समय पर संघर्षरत रहे हैं। क्षेत्रवाद की भावना असम में प्रबल होने के कारण एबीवीपी का विश्वविद्यालय परिसर में कार्य करना आसान नहीं था, जहाँ कि आसू का मुख्य कार्यालय भी उसी परिसर में मौजूद है। गुवाहाटी विश्वविद्यालय असम में हुए माध्यम आंदोलन का भी बड़ा केंद्र रहा है। सरकार द्वारा त्रिभाषी व्यवस्था लागू करने के विरोध में 1972 में इस विश्वविद्यालय में बड़ा आंदोलन होता है। आंदोलन के फलस्वरूप ब्रह्मपुत्र घाटी में असमिया भाषा एवं बराक घाटी में बांग्ला भाषा को माध्यम के रूप में स्वीकृति दी जाती है एवं बराक घाटी में एक तीसरे विश्वविद्यालय की स्वीकृति केंद्र सरकार से मिलती है जिसे आज असम विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है। असम में बांग्लादेशी घुसपैठ की गंभीर समस्या है, जो मुस्लिम वोट बैंक के लालच में कांग्रेस की दीर्घकालीन सरकार की देन है। मंगलदै लोकसभा के निवर्तमान सांसद श्री हीरालाल पटवारी के आकस्मिक निधन के कारण उपचुनाव होना था। उपचुनाव के वोटर लिस्ट में लोगों को ध्यान में आया कि लगभग 45 हजार अवैध मुस्लिम घुसपैठियों के नाम वोटर लिस्ट में दर्ज हैं । पूरा असम इस विषय के ध्यान में आने से स्तब्ध हो गया। इस विषय को लेकर आंदोलन शुरू होता है। जिसे असम आंदोलन के रूप में जाना जाता है। जिसका नेतृत्व ऑल असम स्टूडेंटस यूनियन (आसू ) करती है। बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठ को राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से खतरा देखते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने भी इस आंदोलन को समर्थन दिया।

अभाविप ने देशव्यापी जनजागरण किया

परिषद ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर ले जाकर घुसपैठ जैसी गंभीर समस्या के बारे में देशव्यापी जनजागरण किया। उस समय के विद्यार्थी परिषद के नेता श्रीमान सुशील कु. मोदी एवं श्री हरेंद्र प्रताप जी के नेतृत्व में विद्यार्थी परिषद का एक प्रतिनिधिमंडल आसू से मिलता है। असम आंदोलन के नेताओं श्री प्रफुल्ल कुमार महंत एवं स्व.भृगु कुमार फूकन जैसे नेताओं को भारत के बड़े एवं प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में घुसपैठ की समस्या को लेकर संगोष्ठी एवं अलग-अलग जनजागरण के कार्यक्रम आयोजित किए, जिसमें आसू के नेताओं को वक्ता के नाते आमंत्रित किया गया एवं उन्होंने असम में चल रही समस्या से देशभर को अवगत कराया। “Save Assam Today to Save Bharat Tomorrow” का नारा देते हुए विद्यार्थी परिषद के हजारों कार्यकर्ताओं ने देशभर से 2 अक्तूबर 1983 को गुवाहाटी के ऐतिहासिक जजेज फील्ड में बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठ के खिलाफ हुंकार भरा। इस आंदोलन को दबाने के लिए असम की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने देशभर से आए छात्रों के ऊपर वीभत्स लाठीचार्ज करवाया। सैकड़ों छात्र इस आंदोलन में घायल हुए एवं पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए। गौहाटी विश्विद्यालय शुरुआती दिनों से ही सामाजिक एवं राजनैतिक गतिविधियों का बड़ा केंद्र रहा है। असम आंदोलन का भी केन्द्रबिन्दु आसू ने गुवाहाटी विश्विद्यालय के छात्रावास को ही बनाया। यह आंदोलन विश्वविद्यालय के छात्रावासों से परिचालित होता था। धीरे-धीरे आंदोलन हिंसक होने लगा एवं 855 लोग पुलिस की गोली से मारे गए। इस समस्या के समाधान के लिए आसू, असम सरकार एवं भारत सरकार के बीच असम एकार्ड हस्ताक्षर होने के बाद आसू ने “असम गण परिषद” नामक एक क्षेत्रीय राजनैतिक दल गठन कर विधानसभा चुनाव में भाग लिया था। 1985 में हुए इस चुनाव में असम गण परिषद की जीत होती है एवं देश के इतिहास में ऐसा पहली बार होता है कि एक छात्र संगठन (आसू ) के अध्यक्ष रहे श्री प्रफुल्ल कुमार महंत मात्र 33 वर्ष की आयु में गुवाहाटी विश्वविद्यालय छात्रावास से चुनाव जीतकर सीधा मुख्यमंत्री की शपथ लेते हैं एवं मुख्यमंत्री आवास पहुंचकर असम की बागडोर संभालते हैं। लेकिन सत्ता में शामिल होते ही असम गण परिषद अपनी असमिया जाति की रक्षा के लिए किए गए वादे एवं संकल्प को सत्ता मद में भूल जाती है एवं आकंठ भ्रष्टाचार में डूब जाती है। अंग्रेजी इतिहासकार एवं विचारक लॉर्ड ऐक्टन की एक प्रसिद्ध पंक्ति है “Power tends to corrupt, and absolute power corrupts absolutely” असम गण परिषद के साथ यह चरितार्थ होता हुआ दिखता है।

पूरे असम पर विशेष प्रभाव

गुवाहाटी विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर छात्र संघ चुनाव का पूरे असम के भीतर विशेष प्रभाव होता है। इस चुनाव के परिणाम पर पूरे राज्यवासी की नजर होती है। भाषा आंदोलन एवं असम आंदोलन का नेतृत्व देने के कारण आसू का गहरा प्रभाव विश्वविद्यालय के छात्र संघ में होता है। साथ ही साथ कांग्रेस की छात्र इकाई एन.एस.यू.आई, वामपंथी पार्टी का छात्र इकाई एस.एफ.आई. एवं असम गण परिषद की छात्र इकाई असम छात्र परिषद भी छात्र संघ चुनाव में भाग लेते आए हैं। आसू के पुराने कार्यकर्ता जो सरकार या सत्ता में बैठे हैं या विश्विद्यालय प्रशासन में शामिल हैं, उनकी मदद भी आसू को आंतरिक तौर पर मिलती रहती है, जिससे आसू को विश्विद्यालय परिसर में और भी मजबूती मिलती है। किंतु समय-समय पर आसू के ऊपर तथाकथित रूप से क्षेत्रवाद के नाम पर भावना भड़का कर अराजकता फैलाने का एवं डरा धमकाकर जबरन चंदा वसूलने का आरोप लगता है। जिस कारण आज असम की आम जनता एवं आम छात्र समाज जिसके लिए आसू ने संघर्ष किया उसके प्रति मोह होता हुआ दिखाई देता है एवं धीरे धीरे आसू की लोकप्रियता आम छात्रों के बीच से कम होती दिख रही है। इनका कथनी और करनी में अंतर आज लोगों को दिख रहा है। विद्यार्थी परिषद के पूर्व कार्यकर्ता श्री समीरन फुकन जिन्होंने 1996 में गुवाहाटी विश्विद्यालय के छात्र संघ चुनाव में जीत दर्ज की थी ,जो अभी हैदराबाद के एक मल्टी नेशनल कंपनी में कार्यरत हैं बातचीत के दौरान बताते हैं कि 1996 में विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता जब गौहाटी विश्विद्यालय में कार्य करते थे तो उस समय आसू के लोग उन्हें रोकने के लिए हिंसा का भी सहारा लेते थे। उन्होंने अपने विद्यार्थी परिषद के दिनों को याद करते हुए बताया कि उसी वर्ष विद्यार्थी परिषद ने परिसर के भीतर 200 छात्रों को विद्यार्थी परिषद का सदस्य बनाया ज्ञात एवं छात्र संघ चुनाव में भाग लेते हुए वाद विवाद एवं सम्मेलन सचिव के पद पर जीत दर्ज की गई एवं पहली बार विद्यार्थी परिषद के सहयोग से राष्ट्रीय स्तर का अंतर विश्विद्यालय वाद विवाद प्रतियोगिता गौहाटी विश्वविद्यालय में आयोजित होती है। उस समय के विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीमान दत्तात्रेय होसबाले जो वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माननीय सरकार्यवाह हैं, उनका वक्तव्य “राष्ट्रनिर्माण में छात्र युवाओं की भूमिका” विषय पर विश्विद्यालय परिसर में आयोजित किया जाता था, जिसमें 96 विश्वविद्यालय के छात्र-छात्रा भाग लेते हैं।

जब लहराया एबीवीपी का परचम

विद्यार्थी परिषद के निवर्तमान राष्ट्रीय महामंत्री श्री वी. मुरलीधरण, जो वर्तमान में भारत सरकार में मंत्री हैं, उनका प्रवास भी गौहाटी विश्विद्यालय में उस दौरान होता है। उसके बाद समय जैसे जैसे बीतता गया आसू, एन.एस.यू.आई.,एस.एफ.आई. जैसे छात्र संगठनों का प्रभाव कम होता दिखता है एवं अधिकांश संस्थानों में विशेषकर कॉलेजों में विद्यार्थी परिषद की जीत होती गई। 2019 में गुवाहाटी विश्वविद्यालय स्नातकोत्तर छात्र संघ चुनाव में विद्यार्थी परिषद ने महासचिव समेत कई महत्वपूर्ण पदों पर जीत दर्ज की। 2019 में केंद्र सरकार द्वारा नागरिक संशोधन कानून (CAA) लागू करने के विरोध में आसू पूरे असम के भीतर हिंसक आंदोलन करती है। जिसकी शुरुआत गौहाटी विश्विद्यालय एवं कॉटन विश्वविद्यालय से होती है। हिंसक आंदोलन के कारण 6 लोगों की जान चली जाती है एवं हजारों करोड़ों की संपति का नुकसान भी होता है। महीनों भर असम बंद होता है जगह-जगह आगजनी एवं हिंसा होती है। असम फिर से पुराने हड़ताल बंद अशांति की आग में झोंकता हुआ दिखता है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, असम प्रदेश CAA का समर्थन करते हुए गुवाहाटी महानगर में एक रैली आयोजित करती है, जिसमें हजारों छात्र-छात्रा भाग लेते हैं। CAA का समर्थन करने के कारण विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं को आसू के लोग निशाना बनाते हैं। विद्यार्थी परिषद एवं संघ विचार परिवार के कार्यालय एवं कार्यकर्ताओं के ऊपर हमले किए जाते हैं। सैकड़ों कार्यकर्ता अपने घर व कार्यालय छोड़ के पलायन करने पर विवश होते हैं। 2019 में विद्यार्थी परिषद की बढ़ती ताकत से चिंतित आसू CAA को ढाल बनाकर राष्ट्रवादी ताकतों को दबाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से परिषद व संघ कार्यकर्ता, कार्यालय एवं उनके घरों पर हमले करती हैं। परिषद के कार्यकर्ताओं ने इस परिस्थिति का डटकर सामना किया। CAA आंदोलन के बहाने से आसू के मंच से दूसरे राजनैतिक दल का जन्म होता है। तत्कालीन आसू के महासचिव लुरिनज्योति गोगोई के नेतृत्व में “असम जातीय परिषद” नामक राजनैतिक दल का गठन होता है। लुरिनज्योति गोगोई के नेतृत्व में असम जातीय परिषद 2021 में असम विधानसभा चुनाव में उतरती है, पर एक भी सीट उस दल के हाथ नहीं लगती है, क्योंकि आसू द्वारा जन्म लिए राजनैतिक दल ए.जी.पी. के भ्रष्ट शासन को असम के लोग भूले नहीं थे।

कांग्रेस पर जनता ने नहीं किया भरोसा

कांग्रेस सरकार की नीतियों के खिलाफ आसू ने 1979 में असम आंदोलन किया था, जहां सैकड़ों लोग बलिदान हुए थे। इसी आसू से जन्मे असम जातीय परिषद 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव में उतरी। पर अफसोस असम की जनता ने इस दल पर भरोसा नहीं दिखाया। अभी असम में होने वाले उप चुनाव में कांग्रेस से मिली उपेक्षा से असम जातीय परिषद आहत है एवं उनकी नाराजगी साफ दिखती है। लूरिन कांग्रेस को मनाने के लिए कई पैंतरे अपनाने में लगे हैं। लेकिन असम की जनता ने आसू द्वारा जन्म दिए गए असम गण परिषद द्वारा सत्ता में आने के बाद का हश्र देखा है, इसलिए आज ऐसे राजनैतिक दल पर इनका भरोसा नहीं है। गौहाटी विश्विद्यालय में आसू एवम् एनएसयूआई ने एक विशेष प्रकार का चुनाव तंत्र खड़ा किया है। उनकी बनाई व्यवस्था में छात्रावास में अवैध रूप से रहने वाले सीनियर,सुपर सीनियर पूर्व छात्र पढ़ाई पूरी होने के बाद भी छात्रावास में रहकर चुनाव को संचालित करते हैं।इनके ऊपर आम छात्रों की रैगिंग एवम् डरा धमकाकर आसू के पक्ष में वोट डलवाने के लिए विवश करने का आरोप लगता हैं।वहीं दूसरी ओर एनएसयूआई धनबल,बाहुबल एवं मुस्लिम वोट बैंक को पुष्ट करते हुए परिसर के छात्रावासों को नशा का अखाड़ा बनाया है एवं विशेषकर चुनाव के समय शराब,मांस पैसे इत्यादि बांटकर चुनाव को प्रभावित करने का हथकंडा अपनाता है। दोनों छात्र संगठन छात्रावास में रैगिंग के नाम पर छात्रों को नशाग्रस्त करने का षडयंत्र करते हैं , जिसकी शिकायत समय-समय पर छात्र विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को करते रहते हैं। इसी नशे का ही परिणाम है कि 2024 के छात्र संघ चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद रात्रि को दो छात्रावासों के बीच में खूनी संघर्ष होता है। देश के अन्य राज्यों की तरह असम में भी विद्यार्थी परिषद कई रचनात्मक काम करती आई है। इसी प्रक्रिया में असम के अनेक शैक्षिक संस्थानों की तरह गौहाटी विश्वविद्यालय में भी परिषद छात्रों के सर्वांगीण विकास से संबन्धित कई कार्यक्रम करती आई है। 2024 के 18 मार्च को गुवाहाटी विश्वविद्यालय में परिषद की तरफ से छात्र नेता सम्मेलन का आयोजन किया गया था। उस वर्ष गुवाहाटी विश्वविद्यालय एवं अन्य कॉलेजों में हुए छात्र संघ चुनाव में विद्यार्थी परिषद के एक हजार से अधिक पदाधिकारी छात्र संघ चुनाव में अप्रत्याशित रूप से जीते थे।इन जीते हुए पदाधिकारियों का एक सम्मान कार्यक्रम अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद असम प्रांत द्वारा 18 मार्च 2024 को विश्वविद्यालय के बिरिंची कुमार बरुआ(बी.के.बी.) सभागार में प्रदेश स्तरीय छात्र नेता सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें राज्य भर के विभिन्न महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालयों के हजार से अधिक छात्र एवं छात्र नेताओं ने भाग लिया। अभाविप द्वारा आयोजित इस सम्मेलन को विफल करने करने के लिए आसू और एनएसयूआई के कार्यकर्ताओं ने CAA की आड़ कार्यक्रम स्थल में ही विरोध प्रदर्शन किए।दोनों पक्षों के बीच मारपीट भी होती एवं कार्यक्रम के बैनर में लगे असम गौरव महावीर लाचित बरफूकन एवं मां कामख्या की तस्वीर को आंदोलनकारियों न केवल फाड़े बल्कि उनके साथ अभद्रतापूर्ण व्यवहार करते हुए जलाया भी। अभाविप कार्यकर्ताओं ने उस समय धैर्य का परिचय देते हुए अपने सम्मेलन को जारी रखा।सम्मेलन में अभाविप के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. याज्ञवल्क्य शुक्ल उपस्थित थे। छात्र नेता सम्मेलन के मुख्य अतिथि शिक्षाविद् प्राध्यापक ननी गोपाल महंत थे जो वर्तमान में गुवाहाटी विश्विद्यालय के सम्माननीय कुलपति हैं।कार्यक्रम में नागालैंड विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री समुद्र गुप्त कश्यप भी उपस्थित थे।18 मार्च को विश्विद्यालय में मां कामाख्या एवं लाचित बरफुकन को अपमानित कर वहां कि उज्जवल गरिमा को धूमिल किया गया।सभी शिक्षक एवं गौहाटी विश्विद्यालय प्रेमी शिक्षाविद् इस घटना से आहत हुए।उन्हें इस बात को लेकर ठेस पहुंचती है कि जिस आसू ने कभी असम को बचाने के लिए आंदोलन किया था वही आसू आज महावीर लाचित बरफूकन एवम् मां कामाख्या तस्वीर को अपने पैरों तले रौंद रही है। पूरे प्रदेश में एबीवीपी मां कामाख्या एवं लाचित बरफूकन के अपमान के विरोध में प्रदर्शन करती है। 2024 में हुए गुवाहाटी विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में एबीवीपी ने दबदबा बनाते हुए अध्यक्ष समेत 3 महत्वपूर्ण पदों पर जीत दर्ज की। छह महीने पूर्व गौहाटी विश्वविद्यालय में महावीर लाचित बरफूकन और मां कामाख्या के अपमान की टीस का जवाब छात्रों ने बैलेट में प्रकट किया। लाचित विरोधी एनएसयूआई एवं आसू को छात्रों ने पूरी तरह से छात्र संघ चुनाव में नकार दिया। पूर्वोत्तर भारत के प्रतिष्ठित गुवाहाटी विश्वविद्यालय में हुए छात्र संघ चुनाव में विद्यार्थी परिषद ने पहली बार अध्यक्ष पद जीत कर इतिहास रच दिया। गत 26 सितंबर को हुए विश्विद्यालय स्नातकोत्तर छात्र संघ चुनाव में अध्यक्ष पद पर विद्यार्थी परिषद के प्रत्याशी “फी बेवर बॉय” के नाम से प्रसिद्ध मानस प्रतीम कलिता गुवाहाटी विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर छात्र संघ (PGSU) के चुनाव में जीत हासिल की है। मानस गरीब छात्रों के सस्ती शिक्षा के लिए लंबा एवम् चरणबद्ध आंदोलन करते हुए संघर्ष करते हैं एवम् गरीब छात्रों को उनका हक दिलाते हैं।गरीब छात्रों के लिए राज्य सरकार द्वारा शुल्क माफ करने का निर्णय होता है,परंतु उस निर्णय को विश्विद्यालय प्रशासन लागू करने में आनाकानी करती है।उनकी हक की मांग को लेकर मानस असम सरकार के शिक्षा मंत्री डॉ.रनोज पेगू से मिलकर ज्ञापन सौंपते हैं एवम् राज्य सरकार के निर्णय को विश्विद्यालय प्रशासन द्वारा टालने के विषय को लेकर अवगत कराते हैं। विश्वविद्यालय परिसर में भी मानस इस विषय को लेकर आंदोलन का नेतृत्व करते हैं।अंत में प्रशासन गुवाहाटी विश्वविद्यालय में फ़ी वेवर नोटिफिकेशन भी जारी करती है, जिसमें छात्रों को फ़ीस में छूट देने के प्रावधान किए गए जाते हैं। यह कदम गरीब छात्रों को सस्ती शिक्षा प्रदान करने के लिए उठाया गया है। छात्र संघ चुनाव में मानस प्रतीम कलिता ने एनएसयूआई के प्रत्याशी अंकुर ज्योति भराली को 573 मतों से करारी शिकस्त दी है। चुनाव में कुल हुए 2483 मत में विद्यार्थी परिषद के निर्वाचित अध्यक्ष मानस प्रतीम कलिता को 50 प्रतिशत से भी अधिक यानी 1258 मत प्राप्त हुए। वहीं एनएसयूआई के प्रत्याशी अंकुर ज्योति भराली एवं आसू के प्रत्याशी कीर्ति कमल डेका को क्रमशः 685 और 447 मत प्राप्त होते हैं। गुवाहाटी विश्विद्यालय जिसे आसू एवं एनएसयूआई का गढ़ माना जाता था, वहां छात्रों ने आसू एवं एनएसयूआई को परास्त करते हुए विद्यार्थी परिषद को चुना। गौहाटी विश्वविद्यालय जहां कहा जाता था कि छात्रावास के बाहर रहने वाला छात्र कभी चुनाव नहीं जीतता वहां मानस प्रतीम कलिता जिन्होंने पहले ऐसे अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद पर निर्वाचित होने वाले छात्र बने, जो छात्रावास प्रत्याशी नहीं थे।छात्रावास नेक्सस को ध्वस्त करते हुए मानस प्रतीम कलिता ने बड़ी जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया एवं सभी छात्र चाहे वह छात्रावास का निवासी हो या न हो उनकी बुलंद आवाज के रूप में उभरा है।

छात्र राजनीति ले रही अलग करवट

आज गुवाहाटी विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति अलग करवट लेती हुई दिखाई दे रही है। विश्वविद्यालय कि एक लंबी परंपरा जहां आम छात्र अपना स्वतंत्र रूप से प्रतिनिधि नहीं चुन पाते थे तो विश्वविद्यालय के मठाधीश बने सीनियर सुपर सीनियर चुनाव को प्रभावित करते थे। वहीं दूसरी विद्यार्थी परिषद द्वारा परिसर में किए गए कार्य जैसे चाहे वह विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए मुफ्त स्वास्थ्य शिविर हो या प्रतिभा सम्मान समारोह का आयोजन हो आम छात्र आज ऐसे कार्यक्रमों के माध्यम से विद्यार्थी परिषद के विचारों से जुड़ता प्रतीत होता है। हाल ही में महान संत श्रीमंत शंकरदेव जी की पुण्यतिथि पर विश्वविद्यालय परिसर में विद्यार्थी परिषद द्वारा नाम कीर्तन का आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय का आम छात्रों के बीच ऐसे कार्यक्रम के माध्यम यह संदेश गया कि श्रीमंत शंकरदेव सिर्फ असम के संत नहीं तो पूरे देश को भक्तिमार्ग का दिशा देने वाले संत हैं। महावीर लाचित बरफूकन के जन्म के 400वें वर्ष में पूरे देश में लाचित बरफूकन के कार्यक्रम आयोजित किए गए। लाचित बरफूकन सिर्फ असम के नायक नहीं अपितु उनका शौर्य,पराक्रम,त्याग,उत्कट राष्ट्रप्रेम पूरे देश को प्रेरित करने वाला है। जयपुर में आयोजित विद्यार्थी परिषद के 68 वें राष्ट्रीय अधिवेशन में महावीर लाचित बरफूकन की प्रतिमूर्ति लगाकर देश भर को उनकी वीरता, साहस एवम् राष्ट्रप्रेम का संदेश दिया गया। आज सिर्फ असम नहीं अपितु पूरा देश महावीर लाचित बरफुकन के पराक्रम के बारे में जनता है इसमें विद्यार्थी परिषद की भी एक बड़ी भूमिका रही है।आज असम का छात्र अपनी वास्तविक पहचान को लेकर के सजग दिखता है। जिस प्रकार से महावीर लाचित बरफूकन ने मुगलिया ताकतों को कभी पूर्वोत्तर भारत में पैर रखने नहीं दिया इस शौर्य पर वह गर्व करता है। आज गुवाहाटी विश्वविद्यालय स्नातकोत्तर छात्र संघ चुनाव 2024 का परिणाम यह दिखाता है कि अगर छात्र हितों के लिए संघर्ष किया जाए एवम् अपनी परंपरा संस्कृति महापुरुषों की गरिमा की रक्षा की न सिर्फ बातें की जाए तो इस हेतु कार्य किए जाएं तो आम छात्र ऐसे विचारधारा को प्रचंड बहुमत से जिताने का कार्य करता है। आज समय बदलता हुआ दिखाई देता है।आज का छात्र बदलते हुए पूर्वोत्तर एवम् असम को अपनी आंखों से देख रहा है।एक समय बार बार बंद एवं हड़ताल की भेंट चढ़ने वाला असम विकाश के रास्ते पर देश से कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा है।चाहे सड़क मार्ग हो या हवाई मार्ग या जलमार्ग हर तरह से असम विकाश के सही रास्ते पर है।स्वावलंबिता की दृष्टि से देखे तो सेमीकंडक्टर का प्लांट असम में लगना असम में युवाओं को रोजगार प्रदान करने की दृष्टि से बहुत बड़ा कदम है।आज असम का छात्र राष्ट्रवाद के विचार से जुड़कर आत्मनिर्भर,स्वावलंबी एवं अपनी असमिया परंपरा संस्कृति की रक्षा करते हुए समृद्ध असम के सपने को साकार होता हुआ देख रहा है।

 

(लेखक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद,असम प्रदेश के प्रदेश संगठन मंत्री हैं।)

Share
Leave a Comment

Recent News