नरेला (दिल्ली) के पास स्थित घोगा गांव के पं. हरी प्रकाश भारद्वाज और श्रीमती धनपति ने अपने छह बेटों और एक बेटी में बचपन से ही जो संस्कार रोपे, आज उनका सुखद प्रतिफल सामने आया है। दुनिया भले कितनी ही ‘मॉडर्न’ हो नई चाल-ढाल में ढल गई हो, लेकिन भारद्वाज परिवार की नींव अपने पुरखों की पुण्याई से ऐसी ठोस है कि गांव के आसपास का पूरा इलाका भारद्वाज परिवार का गुणगान करता है।
पं. हरी प्रकाश जी ने अपने बच्चों को सदैव यही सिखाया कि मिलकर रहो, मजबूत रहो। उनके छह सुपुत्रों में दूसरे नंबर के पुत्र, श्री मुकेश भारद्वाज सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ वकील हैं, लेकिन बाल-बच्चों के अपने पैरों पर मजबूती से खड़े हो जाने के बाद, वकालत पर कम, समाज सेवा पर अधिक ध्यान देते हैं। मुकेश जी बताते हैं, ‘‘हमारे पिताजी के जीवित रहने तक यानी 2015 तक हम सब भाई, भाभियां, बच्चे माता-पिता की छत्रछाया में एक ही छत के नीचे रहे। 26 लोग साथ रहते-खाते-बढ़ते आए हैं, किसी तरह का भेद कभी जाना ही नहीं। कपड़े-लत्ते से लेकर जूते-चप्पल तक किसका कौन सा है, पता ही नहीं रहा। कोई भी किसी की पैंट पहन सकता है, किसी का जूता बांध सकता है।’’
लेकिन 2015 के बाद समाजिक कार्यों की बाध्यता के कारण दो भाई दिल्ली में ही परिवार के अन्य दो मकानों में रहने लगे हैं। पीतमपुरा में रह रहे मुकेश जी आगे बताते हैं, ‘‘मकान भले अलग हों, लेकिन सब अपनी कमाई हर हफ्ते गांव में सबसे बड़े भाई श्री विनोद भारद्वाज के हाथ में सौंप देते हैं, जो सभी के लिए राशन आदि जरूरी चीजों की चिंता करते हैं और गांव के बाहर वाले दोनों मकानों में पहुंचवा देते हैं। उत्सव-त्योहार तो सब साथ मनाते ही हैं, हर शनिवार और रविवार को पूरा परिवार एक ही छत के नीचे रहकर आनंद मनाता है। सबकी सहमति से यह नियम बांध दिया गया है कि सब दो दिन साथ ही रहेंगे, एक ही वक्त पर साथ खाएंगे, चाय पिएंगे, सोएंगे, हंसी-ठिठोली करेंगे, घर-द्वार को लेकर जरूरी परामर्श करेंगे और माता जी और विनोद जी के तय किए रास्ते पर आगे बढ़ेंगे। चंडीगढ़ में नौकरी कर रहे एक भाई भी दल-बल सहित गांव आते रहते हैं, विशेषकर शनिवार-रविवार को।’’
‘‘11 कमरों वाले गांव के घर में यूं तो सभी सुख-सुविधाएं हैं, लेकिन टेलीविजन बस एक ही कमरे में है, जिससे सब साथ मिलकर ही टेलीविजन देखें, दूसरे शहरियों की तरह अपने-अपने कमरों में बंद न हो जाएं। दो दिन के लिए घर के सभी जन मोबाइल बंद करके एक कोने में रख देते हैं और दिन भर अपनी-अपनी टोलियों में सुख-दुख को लेकर बतियाते हैं। जैसे, सारे भाई एक कमरे में, बहुएं एक कमरे में और बालक एक कमरे में। दोनों वक्त खाना बनाकर बहुएं रसोई के औसारे मेें ही साथ परोसती हैं, किसी को किसी अलग कमरे में नहीं।’’
घर की सभी बहुएं शिक्षित हैं इसलिए परिवार के सभी बालक-बालिकाओं का सर्वोत्तम शिक्षा पाकर अपने पैरों पर खड़े होते जाना स्वाभाविक है। सभी 6 भाइयों के बालक अपनी-अपनी कक्षा में नाम कमा रहे हैं। मुकेश जी की बेटी गुड़गांव की एक बड़ी कंपनी में चार्टर्ड अकाउंटेंट है, तो बेटा दिल्ली में वकील, तीसरा बेटा वकालत पढ़ रहा है। विनोद जी की बेटी भी पेशे से वकील हैं और पिछले साल विवाह करके अपने पति के साथ आस्ट्रेलिया में रह रही हैं।
छह भाइयों के अलावा सबसे बड़ी एक बहन हैं, जो दिल्ली में ही अपनी ससुराल में रहती हैं। राखी जैसे त्योहारों पर जब वे अपने बच्चों वगैरह के साथ गांव आती हैं तो रौनक देखते ही बनती है। लेकिन पिछले महीने इस परिवार को जाने किसकी नजर लगी कि छह भाइयों में से एक 48 साल के श्री जितेन्द्र भारद्वाज की क्षत-विक्षत देह संदिग्ध परिस्थितियों में गांव के पास ही रेल पटरी के किनारे मिली। जितेन्द्र जी रा.स्व.संघ के जिला कार्यवाह के नाते समाज के कामों में रत थे, उत्तर-पूर्व में असम में भी संघ के प्रचारक रहे थे, वे हिन्दू धर्म के प्रति समाज में स्वाभिमान जगाने का काम करते थे, संभवत: इसलिए धर्म विरोधी तत्वों ने उन्हें रास्ते से हटाने की योजना बना रखी थी।
स्व. जितेन्द्र यूपीएससी का कोचिंग सेंटर चला रहे थे जिसमें एक बैच उन्होंने गरीब बच्चियों को निशुल्क पढ़ाने के लिए बनाया हुआ था। मुकेश जी स्वयं भी धर्म जागरण मंच के प्रांत प्रशासन संपर्क प्रमुख के नाते समाज कार्य में लगे हैं। वे बताते हैं कि, अपने स्वर्गस्थ भाई की स्मृति में अब पांचों भाइयों ने यह तय किया है कि वे हर वर्ष दिल्ली में करीब एक हजार गरीब बच्चियों को विश्वविद्यालयों की भर्ती परीक्षा की तैयारी निशुल्क कराएंगे और वजीफा देंगे।
अनूठा परिवार है, पं. हरी प्रकाश जी का। मिलकर रहना हो तो इसके रास्ते निकाले जा सकते हैं, बड़े शहरों में रहकर भी। साथ-साथ रहने से दुख-दर्द का पता नहीं चलता और सुख के पल तो मानो कई गुना बढ़ जाते हैं।
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